गरीबी वाली जवानी

गरीबी वाली जवानी

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हमारी बात चल ही रही थी कि अचानक धड़ से दरवाज़ा खुला एक लड़की रणचंडी की तरह दाखिल हुई। इसमें जोशी साब कोण आहे। जोशी जी ने कहा मैं हूँ। तुमारा कोई भेन-बाई नई है। तुम भी तो जवान है। तुम भी तो मरद हो। उस भड़वे के पास मैं नहीं जाती, तो नहीं जाती। वो ऐसाइच प्यासा मरेंगा साला। तुम बोलो मेरे भाई को छोड़ने का तुमको क्या मांगता? मेरे को मांगता... चलो मैं दी... पर उस भड़वे के हाथ तो मैं आने से रही। मेरे भाई का अक्खा लाइफ उस भड़वे जलगाँवकर ने खराब किया। वह जैसे एक ही सांस में बोले जा रही थी। बोलती ही जा रही थी। उसको मवाली किसने बनाया, उसी ने, शराबी किसने बनाया, उसी ने, चुनाव में मारपीट किसके लिए, उसी के लिए। उसी हरामी ने हमारा घर बर्बाद किया। वो मेरे को बहुत फुसलाना चाहा, पर मैं उसके हाथ नई आयी। अब वो कुत्र्या मेरे भाई को मोहरा बनाया। पर वो मेरे को पायेगा नहीं। बोलो साब, मैं बी जवान, तुम बी जवान। तुम बी खुपसुरत मैं भी। मैं खुपसुरत नई तो हरामी मेरे पिच्छू हाथ-पेर धो के काईको पड़ता। कुछ तो अपुन में है। मेरे को भी पता है। वरना साला सबकी आँख में मेरे को ही देख के अंगार क्यूँ लगता? नई तो मैं इसी पोलिस स्टेशन के सामने खुद को आग लगाएगी। अब बोलो- पर सबकी बोलती बंद।


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