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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Fantasy

गंदी बात

गंदी बात

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"राज तेरे कितने राज" मूवी अभी थोड़े दिन पहले ही रिलीज हुई थी। चंद दिनों में ही यह मूवी सुपर डुपर क्या "ब्लॉक बस्टर" मूवी बन गई। पूरे देश में इसकी धूम मच गई। "योग और भोग" का अद्भुत संगम था इस मूवी में। हमारा देश तो कला प्रेमी रहा है आदिकाल से। कला चाहे किसी भी विषय में क्यों ना हो, उसके सर्वोच्च स्तर तक पहुंचे हैं यहां के कला के पुजारी। और तो और "कामकला" के संबंध में भी ऋषि वात्स्यायन ने एक महान ग्रंथ "काम शास्त्र" की रचना कर दी। यह काम शास्त्र पूरी दुनिया में पढ़ा गया और इस विषय पर देश विदेश में अनेक मूवी भी बनी जो सुपर डुपर हिट रहीं। 

विदेशों में "पोर्न मूवीज" बनना एक सामान्य बात है मगर भारत में इस पर कानूनन रोक है। लेकिन जनता को तो चाहिए ऐसी मूवीज। अब प्रश्न उठता है कि जब "माल" की मांग बहुत ज्यादा हो और इस "धंधे" में मुनाफा भी तगड़ा हो तो ऐसा धंधा क्यों नहीं किया जाये ? "राज" जैसे बहुत सारे खिलाड़ी हैं जिन्होंने यह "मर्म" जान लिया और इस धंधे में कूद पड़े। 


ऐसी लड़कियों की कमी नहीं है जो पैसों के लिए "कुछ" भी करने को तैयार हैं। और इसे वे "नारी की स्वतंत्रता" का नाम देकर जायज ठहराती हैं। फिर जबसे सन्नी लियोनी इस देश में "आईकॉन" बनी हैं तबसे तो लड़कियों में होड़ लग गई है "सन्नी लियोनी" बनने की। इसमें डबल मजा है। "कपड़े उतारने" पर पैसे भी बहुत मिलते हैं और जब एक बार कोई लड़की "पोर्न एक्ट्रेस" बन जाती है तो वह बाद में "बॉलीवुड" में "सुपर स्टार" अपने आप बन जाती है। इसलिए बहुत सारी लड़कियों ने इस "नंगे" धंधे में कदम रख दिए। 


अब समस्या केवल एक रह गई कि भारत में "पोर्नोग्राफी" बैन है। अब मूवी कैसे बनाएं ? इस देश में "एकता कपूर" जैसी "पद्म श्री" हस्तियां बहुत हैं जो अश्लीलता को "कला" के नाम पर परोसने में दक्ष हैं। बस इतना सा काम करना है कि नाम बदल देना है। कोई अच्छा सा नया नाम रख देना है। 


तो, इस तरह एक नया नामकरण हुआ "इरोटिका"। मतलब पोर्न से कुछ कम। एक कहावत है ना कि मैं "नैक कम राजा" हूं। मतलब राजा तो नहीं हूं मगर उससे थोड़ा कम यानी नंबर दो हूं। इरोटिका भी पोर्न की छोटी बहन है। बस अंतर इतना है कि "पोर्न" में ऋषि वात्स्यायन के बताये गये "कामकला के 64 आसनों" को बहुत शानदार ढंग से दिखाया जाता है। मगर इरोटिका में उस विशेष "क्रियाविधि" को खुलकर नहीं दिखाया जाता, बाकी सब कुछ दिखाया जाता है। 


"बॉलीवुड" की "लेडी कोंडके" , एकता कपूर ने एक से बढ़कर एक "द्विअर्थी" मूवी "क्या कूल हैं हम" जैसी मूवी दी हैं। इन मूवीज को पूरा परिवार साथ बैठकर देखता है और पूरे "भक्ति भाव" में डूब जाता है। फिर परिवार में "छोटे बड़े" का "स्त्री पुरुष" का भेद खत्म हो जाता है और समाज में व्याप्त समस्त प्रकार की कुरुतियां समाप्त हो जाती हैं। एकता कपूर के घर तोड़ू धारावाहिक और ऐसी महान "समाज सुधारक मूवीज" के कारण ही उन्हें "पद्म श्री" प्रदान किया गया है शायद। 


एकता कपूर ने इस सम्मान से अभिप्रेरित होकर एक कदम आगे बढ़ने का निर्णय लिया और "गंदी बात" मूवी बना दी। इस देश में "अच्छी बात" ना तो कोई करता है , ना ही कोई सुनता है और ना ही कोई देखता है। गांधीजी कहकर गये थे कि बुरा मत कहो , बुरा मत देखो , बुरा मत सुनो। मगर तब अंग्रेजों का जमाना था। तब हम गुलाम थे। इसलिए बुरी बात कहना, सुनना और देखने पर मनाही थी। मगर अब हम आजाद हैं और इतने आजाद हैं कि "राष्ट्र गान" का अनादर करना अच्छा लगता है। "किसान" बनकर गणतंत्र दिवस पर "राष्ट्र ध्वज" का अपमान करने में आनंद आने लगा। प्रधानमंत्री को सरेआम गालियां निकालकर "अभिव्यक्ति की आजादी" पर रोक लगाने की बात करने लगे। 


इस बदले माहौल में लोगों की अभिरुचियां" भी बदलने लगीं। अब लोगों को "गंदी बात" अच्छी लगने लगी और तो और एक फिल्म में एक नायक बड़े फक्र से गाकर नायिका को कहता है "अच्छी बातें कर ली बहुत, अब करूंगा तेरे साथ, गंदी बात।" और नायिका उस पर रीझ जाती है।


मैं तो कहता हूं कि अब तो "गंदी बात" को "राष्ट्र की बात" घोषित कर देना चाहिए। "मन की बात" सुनते सुनते बोर हो गये हैं लोग। अब "गंदी बात" ही की जानी चाहिए। और "गंदी बात" जैसी मूवीज को देखना अनिवार्य कर देना चाहिए जिससे समाज में "आनंद" का माहौल बना रहे। फिर आदमी गरीबी , बेरोजगारी, मंदी और कोरोना तक को भूल जाएगा। 


अब धीरे धीरे "बॉलीवुड" में फैली सड़ांध बाहर आने लगी है। देखते हैं कि अब ये "गंदी बात" और कितनी "गंदी" होगी तथा और किस किस को "गंदा" करेगी। 



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