गांव की प्रतिष्ठा
गांव की प्रतिष्ठा
ये उन दिनों की बात है जब लोग पूरे गांव को अपना परिवार एवं गांव के सम्मान को अपना सम्मान समझा करते थे। मेरे गांव में एक लोहार का परिवार रहता था, उस परिवार के मुखिया किसुन जी थे। मेरे परिवार के राम किसुन बाबा जो रिश्ते में मेरे बाबा के चाचा लगते हैं , राह चलते एक दिन उनकी मुलाकात किसुन जी से हुई , किसुन जी अपनी बेटी की शादी की तैयारी में व्यस्त थे, पूछने पर पता चला की बारात पड़ोस के परसनी गांव से आने वाली है। राम किसुन बाबा ने घर आकर इस बात की चर्चा मेरे बाबा विक्रमा सिंह से की। मेरे बाबा ने किसुन जी को अपने यहां बुलाया और शादी की तैयारी इत्यादि की जानकारी प्राप्त की, किसुन जी ने बताया की तैयारी तो लगभग पूरी ही है , क्योंकि बारात में ज्यादा से ज्यादा ५ या १० लोग ही होंगे। बाबा ने उनको घर भेज दिया और हमलोगों के पड़ोसी इयार मुहम्मद बाबा को परसनी भेजा , परसनी गांव अपने यहां शादी इत्यादि में बड़ी बारात ले जाने के लिए जाना जाता था , बाबा का अंदाजा सही हुआ, इयार बाबा ने बताया की बारात में लगभग २०० से २५० लोगों के आने की तैयारी है ।
किसुन जी की आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ नही थी कि इतने बड़े बारात की व्यवस्था कर पाते। इयार बाबा मेरे बाबा को भईया कह कर संबोधित करते थे। बारात अपने गाँव में ही आ रही थी इसपर इयार बाबा ने मेरे बाबा से पूछा कि "का करे के होइ भईया"। बाबा बोले की "तू सैदपुर चल जा अउर बारात ख़ातिर मिठाई का प्रबंध करा"। उन दिनों हमलोगो के यहां आटा चक्की हुआ करती थी , उस समय जितने लोगों का आटा वहां पड़ा था, सबको आग्रह कर रोक दिया गया, अब बात गांव के सम्मान और प्रतिष्ठा की थी सो सभी सहर्ष राजी भी थे। उस समय कटहल और कोहड़ा की सब्जियां ही बारातों की शोभा बढ़ाती थी , जिसके लिए हमलोगो के बगीचे में उपलब्ध कटहल और खेत से कोहड़े को उपयोग में लाया गया। पूरी प्रक्रिया की खास बात ये थी की किसुन जी को इन सबकी जानकारी नही थी। बारात में आने वालों की सूचना जब उनको मिली तो वो घबरा गए , पर गांव तो इसके लिए तैयार था। सभी बारातियों का शानदार स्वागत हुआ , कुछ बाबू साहेब लोग जो परसनी से आये थे उनके लिए अलग से व्यवस्था भी हमारे घर पर थी। बारात जब वापस गई तो सबने बोला की बासूचक वाले शानदार आवभगत करते हैं। गांव और अपने समाज के लिए प्रेम और त्याग ही बाबा को एक ऐसी शख्सियत देती है जिसको हम सबको आज भी चाहे कही भी हों, अपने गांव और समाज के लिए कुछ न कुछ करने के लिए प्रेरित करते रहता है। अब ऐसे गांव और ऐसे लोग कहाँ हैं? अपने पूर्वजों को याद करते हुए एक दिन ऐसे ही गाँव की फिर से कल्पना और उसे ऐसा बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए।