Nadhia Gupta

Tragedy

4.6  

Nadhia Gupta

Tragedy

एक पल और!

एक पल और!

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18 साल की सिया जवानी के पड़ाव में थी। सिया अमीर माँ बाप की लाडली व इकलौती, पढ़ाई में होशियार, बेहद खूबसूरत, मस्त लड़की थी। सिया पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती थी। फिलहाल सिया m.a. की पढ़ाई कर रही थी जिस दिन उसकी m.a. की आखिरी परीक्षा थी उसी शाम को लड़के वाले उसे देखने आ रहे थे। सिया इस बात पर बिल्कुल खुश नहीं थी पर वह अपने माँ -बाप के खिलाफ भी नहीं जाना चाहती थी इसलिए वह चुपचाप उस शाम तैयार होकर बैठ गयी। लड़के वाले जब आए उन्होंने सिया को देखते ही हां कर दी। यह रिश्ता तो पक्का हो गया पर सिया की ख्वाहिशों का महल टूट गया। सिया के मंगेतर का नाम मानिक था। मानिक भी अपने अमीर माँ -बाप का इकलौता और लाडला बेटा था मानिक अपनी माँ के बहुत करीब था और माँ की ख़ुशियों को सबसे ज्यादा महत्व देता था। 6 मार्च 2003 को सिया और मानिक की शादी बड़ी धूमधाम से कर दी गई। अगले दिन वह सुबह उठी और सास के पाँव छूने लगी तो सास ने उसको देर से आने का ताना दिया। बस यहीं से शुरू हुआ सिया के समझौतों का दौर। सिया जो भी काम करती उसमें कोई ना कोई ग़लती निकाल कर उसको डांटना शुरू कर देती, पर सिया को इस बात की तसल्ली थी कि उसका पति उससे बहुत प्यार करता है। यहां तक कि सिया का जेब के लिए बहुत ही छोटा सा खर्च बांध दिया गया। जिससे सिया मुश्किल से ही अपना जरूरत का सामान ले पाती थी। पर सिया ने फिर भी धैर्य रखा।

एक साल बाद सिया को एक सुंदर बेटा हुआ। सिया अंदर से खुश थी पर चिंतित भी थी। क्योंकि वह घर के हालात जानती थी। जैसे जैसे बेटा बड़ा होने लगा तो उसकी जरूरतें भी बढ़ने लगी पर सिया के पास पैसों की कमी होने के कारण वह अपनी ही जरूरतों का मुश्किल से ध्यान रख पाती थी फिर बेटे का तो कहां से करती। उसने अपने पति मानिक को अपना खर्च बढ़ाने के लिए आग्रह किया पर मानिक ने उसकी बात ना सुनी। तब सिया ने मानिक से अपने बेटे को बाहर पढ़ने के लिए भेजने की बात करी और संयोग से मानिक भी इस बात पर राज़ी हो गया। यहां सिया ने अपनी ममता से समझौता करते हुए अपने बेटे को बाहर पढ़ने के लिए भेज दिया। अभी भी सास के व्यवहार में किसी तरह से कोई भी बदलाव नहीं आ रहा था। वह वैसे ही निरंतर उसके ऊपर ताने कसती रहती थी। धीरे धीरे सिया की सास ने मानिक को उसकी पत्नी के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया। जिस वजह से सिया और मानिक की शादीशुदा ज़िंदगी पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता। मानिक सिया से बात करना छोड़ देता और उसकी जरूरतों की तरफ ध्यान ना देता। कई बार तो वह सिया को बात-बात पर जलील करने लग जाता था। बस जिंदगी उसकी यूं ही चलती रही और सिया समझौतों में उलझी रही। उसके मायके में माता और पिता दोनों की तबियत भी अच्छी नहीं रहती थी। अब सिया के ऊपर मानसिक तनाव बढ़ रहा था। एक दिन सिया काम कर रही थी। काम करते-करते वह अचानक रसोई में चक्कर खाकर गिर पड़ी। जल्दी से उसे अस्पताल ले जाया गया। टैस्ट होने के बाद पता चला कि सिया को ब्लड कैंसर है वह भी आखिरी स्टेज पर बस फिर क्या ?  सिया अपने भविष्य के बारे में न सोचती हुई अब भी अपने परिवार का ही सोच रही थी। जिस कारण वह अपने घर के भविष्य के लिए बंदोबस्त करने में जुट गई। वीरवार की रात 12:30 बजे थे। सिया को खांसी आने लगी। हाथ से मुंह दबोचे बाहर को भागी ताकि पति की नींद में कोई खलल न हो।पर जब मानिक ने देखा कि सिया की तबियत ठीक नहीं है उसने जल्दी से एम्बुलेंस बुलाई और सिया को अस्पताल ले गया। अस्पताल ले जाते ही सिया का इलाज शुरू कर दिया गया। अगले ही दिन सिया की सेहत में थोड़ा सा ठहराव आया पर उसके के मन में नहीं। बेचैन सिया ने पास में पड़ा कागज़ कलम उठाया और पति के नाम एक खत लिखा .....


"अच्छा चलती हूं अपना ख्याल रखना। वक्त होता तो सुबह की चाय बना कर जाती पर तुम चिंता मत करना तुम्हारी चाय तुम्हें वैसे ही टेबल पर तैयार मिलेगी। कल बेटे की आखिरी परीक्षा है। इसलिए मेरी मौत के बारे में अभी उसे मत बताना परीक्षा होने दो। तुम भी मेरे संस्कार की रस्म रविवार को ही करना, तुम्हारी ऑफ़िस से भी छुट्टी होगी और मैं तुम्हारे साथ कुछ ज्यादा वक्त और गुजार सकूँगी। हां ,पर नाश्ता करते हुए आना वरना खाली पेट होने से तुम्हारा सिर दर्द होने लगेगा। एक काम और करना आते हुए मेरे सिरहाने पर रखे ख़्वाब उठा लाना। मेरे श्रृंगार पर ज़्यादा खर्च मत करना अब मुझे फिज़ूलखर्ची अच्छी नहीं लगती। मेरी अलमारी की बाईं तरफ एक चुन्नी पड़ी है। बस वही तुम मुझ पर ओढ़ा देना। कभी मुझ पर गुस्सा आए मेरी तस्वीर पर आकर निकाल देना पर मुझसे नाराज़ मत रहना। आप की कसम उफ्फ तक ना करूंगी। बस तुम अपना मन शांत रखना जो काम अधूरे छोड़ चली हूं। उन्हें अगले जन्म में ज़रूर पूरा करूंगी। इस बार तो मौत से समझौता कर लिया है पर अगली बार नहीं करूंगी। ये वादा रहा।"

सिर्फ तुम्हारी सिया


आखिरी शब्द सिया लिखते ही उसने जैसे ही एक लंबी सी सांस ली तब मौत ने उसको चलने का हुक्म दिया। तब सिया ने कहा एक पल और... ! यह कहते ही सिया ने जल्दी से कलम चलाते हुए 'तुम्हारी 'शब्द काट दिया और रह गया 'सिर्फ सिया।'

सिर्फ तुम्हारी सिया

ऐसा करते ही सिया के हाथों से कलम छूट गई और सिया इस जिंदगी से।

सिया की मौत ने मानिक को अन्दर तक झिन्झोर दिया। कुछ दिनों बाद मानिक ने एक ngo खोला और हर औरत को अपने स्वाभिमान और आत्मविश्वास की रक्षा करने की सलाह दी ताकि कोई भी बेटी, बहू या पत्नी ऐसा खत लिखने पर मजबूर न हो ।



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