एक मौत
एक मौत
" भाभी परसों गुड़िया की सगाई है। मैं कल- परसों दो दिन काम पर नहीं आऊँगी ...." पोंछा लगाते हुए लकी ने कहा तो मैं सचमुच चौंक गई।
" गुड़िया की सगाई ....कब नक्की किया ।अभी तो बहुत छोटी है।" बधाई की औपचारिकता के बिना ही मैं बोल पड़ी।
" भाभी पिछले महीने ही नक्की कर दी पर आपको बताने से डर रही थी..." लकी ने पौंछे की धुलाई करते हुए कहा।
" डर ....कैसा डर...."मैंने पूछा।
" आप हमेशा ही उपदेश देने लगती हो।आगे पढ़ने का, कभी पैरों पर खड़े होने का,कभी....।"
" तो इसमें गलत क्या है? " पूछते हुए मेरी आवाज तेज हो गई थी।
" गलत तो नहीं है पर हमारे में नहीं चलता ये सब...." उसने शांत स्वर में कहा।
मुझे याद आया जब गुड़िया को बाहरवीं में अच्छे नम्बर आने परमैंने सीए करने की सलाह दी ....। तब भी लकी ने यही कहा था - ना बाबा ना....आगे पढाऊँगी तो शादी कैसे होगी और आगे नहीं पढ़ाया। फिर गुड़िया ने जिद करके पेटालून में आठ हजार माह की नौकरी पकड़़ी तब भी बहुत डर रही थी लकी। जैसे वो कोई नौकरी पर नहीं सीमा पर लड़ने जा रही हो।
" अच्छा नौकरी तो करने देंगें वे लोग गुड़िया को "मैंने पूछा।
" नहीं भाभी, लड़का अच्छा कमाता है। वे कहते हैं नौकरी नहीं करती हमारे घर की औरतें...।"
"अच्छा..."मैनें बेचारगी से लम्बी निःश्वास छोड़ी।
" भाभी आना सगाई में ", मेरी तमाम चिंताओं को दरकिनार करते हुए लकी ने कहा।
" नहीं लकी, मैं सगाई में नहीं आ पाऊगी।शादी में पक्का आऊँगी " मैनें धीमी आवाज में कहा।
" भाभी कुछ ......" लकी हथेली खुजलाते हुए बोली।
मैं उसका अभिप्राय समझ कर पैसे लेने भीतर चली आई। एक प्रतिभा की मौत मेरे सामने हो रही थी और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी।
समझ नहीं पा रही थी हँसूँ या रोऊँ.....।
