दूसरों की खुशी में खुश
दूसरों की खुशी में खुश




दीवाली के दिन थे। मैं बाजार गया और वहां से कुछ पटाखे लाकर अपने दोस्तों के साथ जलाने लगा। अचानक मेरी नज़र एक लड़के पर पड़ी। मैं उसके पास गया और उसके बारे में पूछा। उसने बताया कि वह पास ही स्थित अनाथ आश्रम में रहता है। वह कॉलोनी में रहने वाले लोगों से चंदा माँग रहा है, ताकि वह भी अपने आश्रम को दीवाली पर दीपकों से रोशन कर सके और अपने साथ रहने वालों को दीवाली की खुशी दे सके। ये सारी बातें मेरे माता-पिता भी सुन रहे थे। उन्होंने मुझे कहा कि दीवाली की असली खुशी तो दूसरों को खुशी देने में है। इसके बाद मैं घर के अंदर गया और मेरे गुल्लक में रखे सारे पैसे निकाल कर उस लड़के को दे दिए। आज भी मैं दूसरों की यथासंभत्र सहायता करता हूँ।