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दूरदर्शी

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दूरदर्शी

                    गंगू तेली बहुत वर्षों से भगवान विष्णु की तपस्या में लीन था।एक दिन भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दे ही दिया और मुस्कराकर बोले ,“वत्स—तुम वर्षों से मेरी तपस्या कर रहे हो।मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं।बोलो,तुम्हें कौन सी वस्तु चाहिये---धन ?”

गंगू बोला—“नहीं देव”।

भगवान विष्णु बोले, “तो---ऐश्वर्य ले लो”---।

गंगू बोला,--- “देव केवल ऐश्वर्य लेकर कोई मनुष्य जीवित नहीं रह सकता।”

विष्णु ने पुनः उसे लालच दिया—“अच्छा तो फ़िर ---तुम शक्ति ले लो।”

गंगू ने कहा,--- “नहीं देव शक्ति से मनुष्य के मन में अहंकार उत्पन्न होता है----और अहंकार मनुष्य को नष्ट कर देता है।”

“अच्छा तुम्हें अगर सम्पूर्ण पृथ्वी का स्वामी बना दिया जाय? ”

गंगू ने धैर्य पूर्वक उत्तर दिया,--- “क्षमा करें देव मैं अपने इस शरीर का ही बोझ नहीं उठा पा रहा हूं ----तो इस सम्पूर्ण पृथ्वी का बोझ कैसे उठा पाऊंगा ? ”

अन्त में भगवान विष्णु खीझ कर बोले,----- “फ़िर तुम मुझसे चाहते क्या हो? ”

गंगू तेली अपने स्वरों में लोटा भर शहद उड़ेलता हुआ बोला,-- “मेरे आराध्य देव---यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो यह वरदान दें कि मैं जल्द ही एक ‘नेता’ बन जाऊं।”

        विष्णु भगवान कुछ क्षणों तक गंगू तेली के चेहरे पर आ चुकी चालाकी और कुटिलता को अपलक निहारते रहे फ़िर मुस्कराकर बोले,--- “तथास्तु”---और अन्तर्ध्यान हो गये।

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