खुश हुआ दीनू
खुश हुआ दीनू


दीनू स्कूल से लौटा। मां बापू तो खेत पर काम के लिये गये हैं। अब क्या करे वह? कुछ देर सोचने के बाद वह जंगल कि ओर निकल पड़ा। उसके पीछे शेरू ने भी दौड़ लगा दी। दोनों बहुत दूर निकल आये। दीनू जब थक गया तो एक पेड़ के तने से टिक कर खड़ा हो गया। शेरू भी वहीं चिड़ियों के पास उछलने लगा।
इन दिनों दीनू का मन किसी काम में नहीं लग रहा है। न दोस्तों के बीच न घर पर ही। घर पर यों उसका बस दम ही घुटने लगता है। कभी अम्मा की डांट तो कभी बापू की फ़टकार। दोस्त हैं कि उसे कभी डरपोक कहेंगे कभी दब्बू। दीनू समझ नहीं पा रहा कि वह कहां जाए किसके साथ खेले?
उसने तुरन्त शेरू को आवाज लगायी। इतनी देर से घूमते-घूमते अब तो वह जंगल से भी ऊब गया। कुछ सोचता हुआ वह खेतों की ओर चल दिया।
खेतों में दूर दूर तक पीले पीले सरसों के फ़ूल दिख रहे थे। दीनू का मन हुआ कि सरसों के इन पीले पीले फ़ूलों के बीच में वह दूर तक दौड़े। उसे इस बात का मौका भी मिल गया। सरसों के पीले पीले फ़ूलों पर लाल, पीली बैंगनी सतरंगी कितने रंग की तितलियाँ मंडरा रही थीं। दीनू उन तितलियों के पीछे दौड़ने लगा। उसकी देखा देखी शेरू ने भी दौड़ लगा दी।
“अरे वाह—वो कितनी सुन्दर तितली –इन्द्रधनुष की तरह सारे रंग हैं इसमें।” दीनू खुद अपने से ही बोल पड़ा। दीनू ने झपट्टा मारा। उसे लगा कि बस अब तितली आ गयी उसके हाथ में। पर यह क्या वह तो और ही ऊपर उड़ने लगी। दीनू फ़िर उसके पीछे भागा।
उसने दुबारा जैसे ही तितली को पकड़ने के लिये हाथ उठाया, कहीं से आवाज आयी,--“अरे—रे—रे—मुझे मत पकड़ो। मेरे सारे पंख टूट जाएंगे। फ़िर मैं उड़ूंगी कैसे?”दीनू के हाथ वहीं रुक गये। उसने कुछ सोचा, फ़िर सरसों के फ़ूल वाली एक टहनी तोड़ ली।
उसने जैसे ही सरसों के पीले फ़ूलों से लदी वह टहनी सिर से ऊपर उठाई दो तितलियाँ उस पर भी मंडराने लगीं। फ़िर धीरे से दोनों तितलियाँ उस टहनी पर बैठ गयीं।
दीनू की खुशी का ठिकाना न रहा। दीनू ने दोनों के नाम भी सोच लिये।“वह जो पीले रंग की है उसका नाम पीलू और दूसरी वाली के पंखों पर तो कई तरह के रंग के धब्बे हैं तो फ़िर उसका नाम तो कबरी ठीक रहेगा। बड़ा मजा आएगा इनके साथ खेलने में।”दीनू ने मन ही मन सोचा। फ़िर हाथ में सरसों के फ़ूलों वाली टहनी लिये हुए तालाब की ओर दौड़ पड़ा। हाथ में झण्डे सी फ़हराती सरसों की टहनी। उस पर बैठी दो तितलियाँ दोनों तितलियों को भी खूब मजा आ रहा था। तालाब के किनारे पहुंच कर दीनू रुक गया। शेरू भी वहीं खड़ा रहा। दीनू तालाब को देखता हुआ कोई नया खेल सोच रहा था। इस बीच दोनों तितलियों ने फ़ूलों का पूरा रस चूस लिया था। अब उन्हें दूसरे फ़ूलों की तरफ़ जाना होगा।
“पीलू, सुन रही हो न, कल जरूर आना हम तुम्हारे लिये बहुत सारे फ़ूल ले आएंगे। कबरी तुम भी जरूर आना,”दीनू ने उड़ कर जाती तितलियों को पीछे से आवाज दी। वह दूर तक पीलू और कबरी को उड़ कर जाते देखता रहा—जब तक वो दोनों आंखों से ओझल नहीं हो गयीं।
“अब क्या किया जाय?”दीनू खड़ा होकर सोच ही रहा था कि तभी अचानक उसकी निगाह तालाब पर गयी। वाह इतनी ढेर सारी मछलियाँ। उसका चेहरा खुशी से खिल उठा। उसने अपनी नेकर की जेब में हाथ घुमाया। उसकी जेब में लाई और चुरमुरे के कुछ दाने पड़े थे। दीनू वहीं पड़े एक पत्थर पर बैठ गया। उसने लाई का एक-एक दाना तालाब में फ़ेंकना शुरू कर दिया।
पहले एक मछली किनारे की तरफ़ आई, फ़िर दूसरी भी खाने पर झपट पड़ी, फ़िर दो और आ गयीं। जब तक दीनू मछलियों को लाई के दाने खिलाता रहा मछलियाँ तालाब के बिल्कुल किनारे तक आती रहीं। शेरू भी उसके इस खेल में शामिल हो गया। जितनी बार मछलियाँ किनारे आतीं, शेरू उन्हें देख कर पूंछ हिलाने लगता।
दीनू ने तितलियों की ही तरह सभी मछलियों के भी नाम रख दिया—मोटी,छुटकी,लम्बू,चवन्नी,सपेरी और वह रही सोन मछरी। दीनू के जेब की लाई खत्म हो गयी। वह भी उठ कर खड़ा हो गया। मछलियाँ कुछ देर तक तो मुंह उठा उठा कर देखती रहीं। फ़िर एक कर वो तालाब में गहरायी की तरफ़ जाने लगीं। उन्हें जाता देखकर दीनू ने जोर से आवाज लगायी—“कल मैं खाने की बहुत सारी चीजें लेकर आऊंगा। ओ लम्बू, छुटकी, चवन्नी कल तुम सब जरूर आना।”
दीनू खड़ा खड़ा तालाब में खिले सुन्दर कमल के फ़ूल देख रहा था। तभी उसे पानी के बीच गोल गोल ---लाल रंग का कुछ दिखा ऽरे यह तो सूरज डूब रहा है उसी की इतनी सुन्दर छाया। अभी थोड़ी देर में ही अंधेरा हो जायेगा और घर में उसकी खोज शुरू हो जायेगी। दीनू ने एक कंकड़ उठा कर तालाब के पानी में फ़ेंका और तेजी से घर की ओर दौड़ लगा दी। अब उसका मन उदास नहीं था। इतनी सारी तितलियों और मछलियों से उसकी दोस्ती जो हो गयी थी।