दुनिया/बाज़ार
दुनिया/बाज़ार


मैं और मीठी दोनों दूसरी मन्ज़िल वाले कमरे की चौखट पे यूँ ही बैठे थे।
दोपहर तक तो कोई ग्राहक आने वाला नहीं था लेकिन फिर भी मीठी की आँखे मानो किसी के इंतेज़ार में थी। मीठी यहाँ सबसे छोटी है तो इसको इसी नाम से बुलाते हैं सब यहाँ बाकी असली नाम मैंने इससे पूछा भी नहीं कभी और वो शायद मेरा काम भी नहीं।
मैंने पैर मार कर पूछा
"क्या बात है कोई आने वाला है क्या? हम को भी बता ज़रा।"
"नहीं दीदी कोई भी तो नहीं"
इतना कह कर मीठी नज़रे झुका कर मुस्कुराई। मैं समझ गई की ये उस टाई वाले नशेड़ी का ही इंतेज़ार कर रही है।
"क्या बात है मीठी दिल लगा बैठी क्या?" मैंने तंज़ भरे अंदाज़ में पूछा।
"नहीं नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं दीदी, आप युही मज़े लेलो मुझसे बस"
"देख ऐसा कोई भी चक्कर है तो तुझे याद दिला दूँ की उसमे और तुझमे कितना फर्क है" मैं आगे कुछ और बोलती उससे पहले मीठी उठ कर अंदर कमरे में जा बैठी।
मैंने अंदर जाकर उससे फिर यही बात कही तो मीठी ने मुझसे पूछा
"बस मेरे जिस्म की ही कीमत है यहाँ दिल का कुछ नहींं?"
मैं एक पल को चुप्पी साध गई।
"मीठी देख तुझे पता है ना मौसी कितनी हराम औरत है, उसको भनक भी लगी इस बात की तो ज़िंदा जला देगी तुझे"
"जला देने दो ना। मौसी के ही 3 हज़ार रोज़ के मरेंगे हाहाहाहा।"
"चल शांत हो जा और मुझे बता आज सारी कहानी अपनी"
"छोड़ो तुम मज़ाक समझोगी"
"आज़मा कर तो देख" मैंने तंज़ करते हुए कहा।
लेकिन इसके बाद जो कुछ भी मीठी ने मुझे बताया वो कोई फिल्मी कहानी से कम न था। वही रोज़ का इसका ग्राहक कोई कुछ 22-25 की उमर होगी लेकिन नशे में धुत आता है हमेशा हरामखोर। और वही एक ऐसा इंसान है जो इस कोठे पर टाई लगा कर आता है। मैंने कितनी बार हाथ डाला उस चिकने पर लेकिन वो मीठी के ही गीत गाता आता है। कहती है की कभी इसको छुआ नहींं बस दिल हलका करने आता है यहाँ। अरे मर्द आते है यहाँ खुद हल्का होने और ये पागल दिल हल्का करता है पैसा खर्च करके, अच्छा मज़ाक है।
"देखा तुमको मज़ाक ही लग रहा है सब"मेरी इस बात पर मीठी बोली।
"अरे तू बता ना आगे"
"दीदी इन सब भूखे आदमियों के बीच वो ही एक पहला इंसान ऐसा है जो पूरी रात का पैसा देता है सिर्फ मझसे बात करने के लिए, पहले मुझे अजीब लगा लेकिन फिर एहसास हुआ कि यहाँ इन चार दीवारों में है ही कौन मेरे पास भी जो दो पल बैठ कर इस मीठी से दो मीठी बात करले। परेशान है इसलिए नशे करता है। बीवी छोड़ कर चली गयी और सब कुछ अपने नाम करा ले गयी। जो कुछ है बस अपना एक दफतर है उस पर भी बीवी से मुकदमा लड़ रहा है जो पैसा बचता है उनका नशा करता है और बाकी इस मौसी के हलक में चढ़ा देता है।"
मैं अब उसकी बात ध्यान से सुनने लगी थी।
"तुम कहती हो ना दीदी की उसका और अपने बीच का फर्क देख। कोई फर्क नहीं है सब बराबर बर्बाद है इस दुनिया में। उस इंसान को जब दुनिया ने लात मार दी तो वो एक बाजार वाली के पास आता है अपना गम बाटने तो इस हिसाब से तो मेरा दर्जा ज़्यादा है। आज ये आंखे इंतेज़ार में इसलिए है क्योंकि आज कचहरी की तारिख है और उसने कहा था अगर मुकदमा जीत गया तो मेरे लिए गुलाब के फूल लाएगा।"
"मीठी तू तो बड़ी बड़ी बाठें करने लगी, क्या बात है अब तो फूलो का इंतेज़ार भी हो रहा है। लेकिन अभी भी वक़्त है संभल जा और उसको दूर रख खुद से ये सब सही नहीं।"
"गलत सही समझने का मौका दिया ही कहाँ है आज तक दुनिया ने। पहली बार कुछ ऐसा हुआ है मेरे साथ, मुझे तो सब सही ही लगे है वरना रहना तो यही इस कचरे में है।"
यही सब सुनते सुनते पीछे से शोर सुनाई पड़ा भीड़ का, मौसी बोली की लगता है आज फिर हलवाई किसी से लड़ पड़ा शायद। लेकिन ये शोर लड़ाई का ना था। ये अलग था। बाहर झाक कर देखा तो कुछ लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे तो कुछ गालिया दे रहे थे सड़क पर पड़े उस इंसान को जो हाथ में कुछ गुलाब लिए था और गले में एक टाई और शायद नशे की हालत मे गाड़ी के आगे आकर मर भी गया।