दुब्रोव्स्की - 13

दुब्रोव्स्की - 13

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कुछ और वक्त बगैर किसी ख़ास घटना के गुज़र गया मगर अगली गर्मियों में किरीला पेत्रोविच के जीवन में काफ़ी परिवर्तन आए।

उसकी जागीर से तीस मील दूर सामन्त वेरेइस्की की समृद्ध जागीर थी। सामन्त काफ़ी अर्से तक परदेस में रहा, उसकी जागीर का इंतज़ाम एक पेन्शनयाफ़्ता मेजर देखा करता, और पक्रोव्स्कोए तथा अर्बातवो के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं रहा। मगर मई के अन्त में सामन्त विदेश से वापस लौटा और अपने गाँव आया, जिसे उसने आज तक कभी देखा भी नहीं था। लापरवाही की आदत होने के कारण वह अकेलापन बर्दाश्त नहीं कर पाया और अपने आगमन के तीसरे ही दिन त्रोएकूरव के यहाँ भोजन करने पहुँच गया, जिससे उसका कभी परिचय हो चुका था।

सामन्त की आयु लगभग पचास वर्ष थी, मगर वह कहीं अधिक बड़ा नज़र आता था। हर चीज़ की अति ने उसके स्वास्थ्य को ख़राब कर दिया था और उस पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी थी। मगर फिर भी, उसका व्यक्तित्व आकर्षक था, प्रभावी था, और हमेशा उच्च-भ्रू समाज में रहने की आदत ने उसे कुछ प्यारी सी चीज़ प्रदान कर दी थी, विशेष कर महिलाओं के साथ। उसे अपनी बेपरवाही, भुलक्कड़पन और उकताहट के लिए हमेशा किसी बहाने की तलाश रहती थी। किरीला पेत्रोविच उसके आगमन से अति प्रसन्न हुआ, उसने इस भेंट को उस व्यक्ति द्वारा दिया गया सम्मान समझा, जो दुनिया देख चुका था, उसने अपनी हमेशा की आदत के मुताबिक अपने सारे अस्तबल आदि उसे दिखाना आरम्भ कर दिया, उसे श्वानगृह में भी ले गया। मगर उस कुत्तोंवाले वातावरण में सामन्त का दम घुटने लगा और वह वहाँ से अपनी नाक पर इत्रों से सना रुमाल रखे, फ़ौरन बाहर निकल आया। विचित्र उद्यान,उसमें स्थित काट-छाँट किए चीड़ के वृक्षों सहित चौकोर तालाब और साफ़-सुथरी वृक्ष-वीथियाँ उसे ज़रा भी नहीं भायीं। उसे अंग्रेज़ी ढंग के बाग एवम् ऐसी ही प्राकृतिक छटा पसन्द थी, मगर उसने तारीफ़ ख़ूब की और प्रसन्नता से फूट पड़ने का नाटक भी किया। सेवक यह निवेदन करने आया कि खाना लग चुका है। वे भोजन करने चले। सामन्त अपनी सैर से थक कर लंगड़ा रहा था और इस मुलाकात पर उसे पश्चात्ताप भी हो रहा था।

मगर हॉल में उनका स्वागत किया मारिया किरीलव्ना ने। औरतों का दीवाना बूढ़ा उसके सौंदर्य से हतप्रभ रह गया। त्रोएकूरव ने मेहमान को उसकी बगल में बिठाया। उसकी उपस्थिति ने सामन्त में मानो नई जान डाल दी,वह ख़ुश था, और कई बार अपनी मनोरंजक कहानियों से उसका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफ़ल हो गया। भोजन के बाद किरीला पेत्रोविच ने घुड़सवारी का प्रस्ताव रखा, मगर सामन्त ने अपने मखमली जूतों की ओर इशारा करते हुए माफ़ी माँग ली और अपनी जोड़ों की सूजन की बीमारी का मज़ाक भी उड़ाया उसने गाड़ी में घूमने का प्रस्ताव रखा,जिससे वह अपनी प्रिय पड़ोसन से जुदा न हो सके। गाड़ी तैयार करवाई , दोनों बूढ़े और सुन्दरी उसमें बैठकर चल पड़े। बातचीत चलती रही। मारिया किरीलव्ना बड़ी प्रसन्नता से इस आदमी के चापलूसीभरे और ख़ुशनुमा अभिवादन स्वीकार करती रही अचानक वेरेइस्की ने किरीला पेत्रोविच की ओर मुड़कर पूछा कि यह जली हुई इमारत किसकी है और उसकी ऐसी हालत क्यों है? किरीला पेत्रोविच ने नाक-भौंह चढ़ा लिये, जले हुए घर को देखने से उत्पन्न हुई यादें उसे अप्रिय थीं। उसने जवाब दिया कि यह ज़मीन अब उसकी है और पहले वह दुब्रोव्स्की की थी।

“क्या? दुब्रोव्स्की की? उस शानदार डाकू की?” वेरेइस्की ने पूछा।

“उसके पिता की”, त्रोएकूरव ने जवाब दिया, “हाँ, मगर पिता भी तो एक शरीफ़ डाकू ही था। ”

“हमारा रिनाल्डो कहाँ छिप गया है? क्या वह जीवित है? क्या वह पकड़ा गया है?"

“ज़िंदा भी है, और आज़ाद भी, और जब तक हमारे पुलिस अफ़सरों की चोरों के साथ साँठ गाँठ रहेगी, वह पकड़ा नहीं जाएगा, मगर सामन्त दुब्रोव्स्की तुम्हारे अर्बातवो में आया था?”

“हाँ, पिछले साल, शायद, उसने कुछ जला दिया था या लूट लिया था। । । मारिया किरीलव्ना, ऐसे रोमांटिक हीरो से मुलाकात करना कितना रोमांचक होता है, है न?”

“कहाँ का रोमांच!” त्रोएकूरव ने कहा, वह उसे जानती है : उसने पूरे तीन हफ़्ते इसे संगीत की शिक्षा दी है,मगर ख़ुदा का शुक्र है किउसने इसके लिए कुछ पैसे नहीं लिए। ” अब किरीला पेत्रोविच ने अपने फ्रांसीसी शिक्षक की कहानी सुनाना आरंभ कर दी। मारिया किरीलव्ना यूँ बैठी रही मानो काँटों पर बैठी हो। वेरेइस्की बड़ी दिलचस्पी के साथ सुनता रहा,उसे यह सब बड़ा विचित्र प्रतीत हुआ और उसने बातचीत का विषय बदल दिया। वापस आकर उसने गाड़ी तैयार करने की आज्ञा दे दी, और रात को वहीं रुक जाने के किरीला पेत्रोविच के ज़ोरदार आग्रह के बावजूद वह चाय पीने के फ़ौरन बाद वहाँ से चल पड़ा। मगर जाने से पहले उसने किरीला पेत्रोविच को मारिया किरीलव्ना समेत अपने यहाँ आने का निमंत्रण दिया और घमण्डी त्रोएकूरव ने वादा कर लिया, क्योंकि सामन्त द्वारा, जो दो सितारों और 3000 बंधकों का स्वामी था, आदरभाव प्रदर्शित किए जाने से वह स्वयम् को उसकी बराबरी का समझने लगा था।

इस भेंटयात्रा के दो दिन बाद किरीला पेत्रोविच बेटी को साथ लेकर वेरेइस्की के यहाँ गया। अर्बातवो पहुँचते हुए वह किसानों की साफ़-सुथरी प्रसन्न झोंपड़ियों एवम् अंग्रेज़ी शैली के महलों की शैली में पत्थरों से बनाए गए ज़मीन्दारों के घर की मन ही मन तारीफ़ किए बिना न रह सका। घर के सामने घना हरा लॉन था, जिस पर चौकीदार की गायें अपने गले की मधुर घंटियों की मधुर आवाज़ करते हुए चर रही थीं। घर को चारों ओर से एक विस्तीर्ण उद्यान ने घेर रखा था।

मेज़बान ने मेहमानों का ड्योढ़ी के निकट स्वागत किया और युवा सुन्दरी को गाड़ी से उतारने के लिए हाथ बढ़ाया। वे एक शानदार हॉल में प्रविष्ट हुए जहाँ तीन व्यक्तियों के लिए मेज़ सजी थी। सामन्त मेहमानों को खिड़की के पास ले गया और उन्हें एक दिलकश नज़ारा दिखाई दिया। खिड़कियों के सामने से होकर वोल्गा बह रही थी, उस पर पाल लगे, भार से लदे बजरे तैर रहे थे, नाविकों की नौकाएँ इधर-उधर डोलती दिखाई दे जाती थीं। नदी के उस पार थीं पहाड़ियाँ और फैले थे कुछ खेत। कुछ गाँव भी इस पूरे दृश्य को सजीवता प्रदान कर रहे थे। उसके बाद उन्होंने तस्वीरों के संग्रह को देखा, जिन्हें राजकुमार विदेशों से ख़रीदकर लाया था। सामन्त मारिया किरीलव्ना को हर तस्वीर का सारांश और उसका इतिहास बताता जा रहा था, उनकी कमियों और खूबियों की ओर इंगित करता जाता था। वह इन चित्रों के बारे में एक आलोचक या विशेषज्ञ की शैली में नहीं, अपितु कल्पना एवम् भावना सहित बता रहा था। मारिया किरीलव्ना विस्मित होकर उसकी बातें सुन रही थी।

वे मेज़ पर बैठे। त्रोएकूरव ने अपने मेज़बान की विभिन्न प्रकार की शराबों के साथ पूरा-पूरा न्याय किया और उनके रसोइए की कला का आस्वाद भी भरपूर चखा, और मारिया किरीलव्ना ने ज़रा-सी भी हिचक अथवा झिझक महसूस न की उस व्यक्ति के साथ बातें करने में, जिसे वह केवल दूसरी बार देख रही थी।

भोजन के बाद मेज़बान ने उद्यान में जाने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने विस्तीर्ण तालाब के किनारे पर बने विश्राम-घर में चाय पी। तालाब में अनेक छोटे-बड़े टापू थे। अचानक संगीत गूँज उठा और छह चप्पुओं वाली नौका विश्राम-घर के निकट आई। उन्होंने तालाब में नौका भ्रमण किया, टापुओं के निकट गए, उनमें से किसी-किसी पर उतरे भी, उनमें से एक पर उन्हें संगमरमर की मूर्ति दिखाई दी, दूसरे पर एकान्त गुफ़ा, तीसरे पर रहस्यमय लेख वाला एक स्मारक था, जिसने मारिया किरीलव्ना के कुँआरे हृदय में उत्सुकता जगा दी, जिसे सामन्त की अधकही बातें संतुष्ट न कर सकीं। । । समय न जाने कब बीत गया, अंधेरा होने लगा। ठण्डक और दूब का कारण बताकर सामन्त ने वापस घर पहुँचने में शीघ्रता की। समोवार उनका इंतज़ार कर रहा था। सामन्त ने मारिया किरीलव्ना को बूढ़े, कुँआरे घर में मेज़बानी करने की प्रार्थना की। उसने उस बातूनी की ख़त्म न होने वाली बातें सुनते हुए प्यालों में चाय डाली। अचानक तोप की आवाज़ सुनाई दी, और आसमान को आलोकित करता हुआ एक रॉकेट ऊपर की ओर उड़ा। सामन्त ने मारिया किरीलव्ना को शॉल दिया, और उसे तथा त्रोएकूरव को बाल्कनी में बुलाया। घर के सामने अंधेरे में विभिन्न प्रकार के पटाखे फोड़े जा रहे थे, घूमते हुए, ऊपर उठते हुए, अपने साथ फ़व्वारे लपेटे, रंगीन चिंगारियों की आकृतियाँ बनाते, बारिश की तरह, सितारों की तरह नीचे गिरते-बुझते, फिर जलते। । । मारिया किरीलव्ना बच्चों की तरह ख़ुश हो रही थी। सामन्त वेरेइस्की उसके उत्साह को देखकर आनन्दित हो रहा था और त्रोएकूरव उससे बड़ा ख़ुश हो गया, क्यॉकि उसके द्वारा किए गए आयोजनों को वह अपने प्रति दिखाए गए सम्मान के लक्षण समझ रहा था।

रात्रिभोज भी दोपहर के भोजन से किसी बात में कम नहीं था। मेहमान उनके लिए नियत कमरों में चले गए और दूसरे दिन सुबह ख़ुश मिजाज़ मेज़बान से विदा हुए, दोबारा शीघ्र ही मिलने का आश्वासन देकर।



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