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दर्द का एहसास

दर्द का एहसास

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जैसे कहते है की इंसानों में दोस्ती होती है वैसे ही पत्थरों (Stones) में भी दोस्ती होती है। ऐसे ही दो पत्थरों में आपस में बहुत गहरी दोस्ती थी। एक बार एक पत्थर काफी दिनों से अपने दूसरे पत्थर दोस्त को रोता हुआ देख रहा था वो जब भी उसे देखता तो वो उदास रहता और रोने लगता था। पहले वाले पत्थर ने अपने दोस्त से पूछा के क्या बात है दोस्त में काफी दिनों से देख रहा हूँ तुम बहुत उदास रहते हो और कई बार तो मैंने तुम्हें रोता हुआ भी देखा है। क्या बात है दोस्त पहले तुम बहुत खुश रहते थे फिर अब अचानक ऐसे क्यों रोते रहते हो। यह सुन कर पत्थर फिर रोने लगा और रोते रोते कहता की आज मुझे एहसास हुआ की जब अपने दर्द देते है तो उस दर्द का एहसास क्या होता है। पहले वाले दोस्त ने पूछा अपने मतलब में समझा नहीं। दूसरे वाले दोस्त ने बताया जैसे की तुम भी एक पत्थर हो तुम्हें पता है हमे कितनी ठोकरें खानी पडती हैं। पहले कोई भी इंसान हमे उठा कर फेंक देता था, कभी हाथों से कभी पेरो से ठोकरें लगाता था, पहले दर्द का एहसास नहीं होता था क्योंकि वो इंसान हमारा अपना नहीं था क्योंकि वो पहले इंसान था और हम पत्थर।

पर अब बात कुछ और है अब वो इंसान नहीं रहा अब वो पत्थर बन चुका है। अब वो भी हमारे जैसे ही है। कहने का भाव अब हमारा उसके साथ रिश्ता बन गया है क्योंकि अब वो भी पत्थर है और हम भी पत्थर। इसीलिए अब जब वो मुझे ठोकर मरता है तो मुझे बहुत दर्द होता है। क्योंकि पत्थर होने के कारण उसके साथ मेरा रिश्ता बन चुका है। वो मेरा अपना बन चुका है। आज मुझे एहसास हुआ जब अपना अपने को मरता है तो कैसे दर्द होता है। यह कहते ही वो फिर रोने लगता है और रोते रोते कविता के रूप में हमे समझाने की कोशिश करता है। वो कहता है -   

रिश्ता न होने के कारण

मुझे दर्द का एहसास न था

ठोकर मारने वाला कोई अपना नहीं

गैर था जिसका नाम इंसान था

अब मुझे भी दर्द होता है

अब ठोकर मारने वाला इंसान नहीं

उसके रूप में पत्थर होता है

जब अपना अपने को मारे

वो आज मुझे पता चला

के फिर कैसे दर्द होता है”

                                                                                                                                                           


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