दीन
दीन
रामू की लड़की घर से क्या भागी झाड़-झाड़ उसका बैरी हो गया। गांव में पंचायत बैठी, मुखिया जी ने पूरे रौब झाड़ते हुए कह दिया - "जीतना कसूर लड़की का है उससे ज्यादा कसुरवाल रामू है, रामू ने लड़की को अच्छे संस्कार नहीं दिए, लड़की हमारे भी है, खूब पढ़ी लिखी, अच्छी गुणवान, कभी नजर उठाकर बात तक नहीं की और एक रामू की लड़की..., अपने बराबरी वाले का रिश्ता देख चट मगनी पट ब्याह कर देता, क्यों पैसे वाले के सपने देख रहा था, अब तो करा गई वो कलमुंही मुंह काला। गांव का नाम डुबा दिया सो अलग, आस-पास के गांवों में हमारी बिरादरी की थू थू हो रही है।"
पंच मैम्बरों ने सहमती से रामू को बिरादरी से बहिष्कार कर दिया। रामू पंच मैम्बरों का फैसला बेहिचक स्वीकार लिया, आखिरकार करता भी क्या, गरीब ठहरा, पैसे वाले के बीस लगवाल होते हैं, गरीब का तो भगवान भी नहीं होता।
कुछ दिनों बाद मुखिया जी की लड़की रूपये-पैसे, गहने लेकर नो दो ग्यारह हो गई , अब न बिरादरी की इज्जत खराब हुई और न पंचायत बैठी। सबके मुंह सीले के सीले रह गये। एक रामू के मुंह से ये बात जरूर निकली- "वो अमीर बाप की बेटी है, उसका सारा गुनाह माफ, मेरी बेटी गरीब बाप की ठहरी, बस यही उसका गुनाह है।