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PRAVIN MAKWANA

Inspirational

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PRAVIN MAKWANA

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धर्म की सीख

धर्म की सीख

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शिष्य : "गुरूजी धर्म क्या है।"

गुरूजी : "अच्छा तो सुन मेरी सीख।

मैं आपको देखता हूं तो दुख अनुभव करता हूं, क्योंकि किसी भी भांति बिना सोचे विचारे, मूर्छित रूप से जिए जाना जीवन नहीं, वरन धीमी आत्महत्या है। क्या आपने कभी सोचा कि आप अपने जीवन के साथ क्या कर रहे हैं? क्या आप सचेतन रूप से जी रहे हैं? क्योंकि यदि हम अचेतन रूप से बहे जा रहे हैं और जीवन के अचेतन सृजन में नहीं लगे है, तो सिवाय मृत्यु की प्रतीक्षा के हम और क्या कर रहे हैं? जीवन तो उसी का है जो उसका सृजन करता है।आत्मसृजन जहां नहीं, वहां आत्मघत है। मित्र, जन्म को ही जीवन मत मान लेना। यह इसलिए कहता हूं कि अधिक लोग ऐसा ही मान लेते हैं। जन्म तो प्रच्छन्न मृत्यु है। वह तो आरंभ है और मृत्यु उसका ही चरम विकास और अंत। वह जीवन नहीं, जीवन को पाने का एक अवसर भर है। लेकिन जो उस पर ही रुक जाता है, वह जीवन पर नहीं पहुंच पाता। जन्म तो जीवन के अनगढ़ पत्थर को हमारे हाथों में सौंप देता है। उसे मूर्ति बनाना हमारे हाथों में है। यहां कलाकार और कलाकृति और कला और कला के उपकरण सभी हम ही हैं। जीवन के इस अनगढ़ पत्थर को मूर्ति बनाने की अभीप्सा धर्म है। धर्म जीवन से भिन्न नहीं है.



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