हरि शंकर गोयल

Comedy Fantasy

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हरि शंकर गोयल

Comedy Fantasy

धारावाहिक : बहू पेट से है

धारावाहिक : बहू पेट से है

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भाग 13 : अपने पति के साथ घूमने में क्या आनंद है 


लाजो जी का मन कहीं लग नहीं रहा था। मन लगता भी कैसे ? जबसे चौधराइन ने "खुशखबरी" सुनाई है तब से लाजो जी की नींद हराम हो गई है। पड़ौस में तो किलकारियां गूजेंगी मगर यहां "ताने" मारे जायेंगे। आजकल जमाना ऐसा है कि बहू से कुछ कह नहीं सकते। अगर कुछ कह दिया तो दहेज प्रताड़ना के मामले में अंदर करा सकती है वह। इसलिए जिनको जेल की चक्की पीसनी हो, जेल की अधजली रोटियां खानी हो, पानी वाली दाल सुड़कनी हो तो बहू से कुछ कहने की रिस्क ले सकता है कोई। मगर लाजो जी को तो जेल से बहुत डर लगता है। फिर आजकल की बहुएं एक के बदले चार सुनाती हैं। बेचारी सास को ही चुप होना पड़ता है वरना बहू का "तूम्बा" तो बजता ही रहता है। लाजो जी कुछ भी सुनने और सुनाने के मूड में नहीं थी फिलहाल। 

दिल में लावा उठ रहा था उनके लेकिन वह बाहर निकल नहीं पा रहा था। किस पर निकाले ? टीया सेमीनार में थी। लाजो जी का ध्यान टीया की ओर गया "कितनी देर हो गई है उसे ? इतनी देर चलती है क्या सेमीनार?" 


लाजो जी ने टीया को फोन लगाया तो वह स्विच ऑफ आया। सेमीनार में तो फोन बंद ही रखना पड़ता है। अब क्या करें ? उन्हें याद आया कि रिया ने ही उसे सेमीनार के बारे में बताया था। तो क्यों नहीं रिया से ही बात कर पता करें ? उन्होंने रिया को फोन लगाया 

"हलो" रिया की आवाज आई 

"रिया बेटा, मैं टीया की मम्मा बोल रही हूं। ये सेमीनार कब तक चलेगी?" 


रिया सेमीनार के नाम से एकदम से चौंक गई। वह भूल गई थी कि सुबह ही टीया को उसके ब्वाय फ्रेंड से मिलाने के लिए उसने सेमीनार के बहाने से टीया को बाहर निकलने का मौका दिलवाया था। भूलचूक में वह पूछ बैठी "कौन सी सेमीनार आंटी?" 


लाजो जी एकदम से चौंक पड़ी। "कौन सी सेमीनार मतलब ? क्या बहुत सारी सेमीनार हो रही हैं वहां पर ? तुमने ही तो फोन पर कहा था आज सुबह"। झल्ला पड़ी थीं लाजो जी रिया पर। 


रिया को अब याद आ गया सुबह का सारा वाकया। फोन पर बात करते समय वह भूल गई थी। पर अब उसे पता चल गया था और अपनी लापरवाही का नमूना भी मिल गया था उसे। अब तो रायता फैल गया था। अब सब कुछ संभालना भी उसे ही था। आजकल बच्चे वैसे भी बहुत तेज होते हैं। झूठ सच से सब संभाल लेते हैं। माना कि एक झूठ को छुपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं मगर रिया ने कौन सी कसम खा रखी थी कि वह एक ही झूठ बोलेगी ? 


रिया अपने वाक् चातुर्य का प्रदर्शन करने के लिए तैयार हो गई  

"आंटी, दो सब्जेक्ट पर थी आज की सेमीनार। दोनों अलग अलग जगह पर हो रही हैं। टीया ने दूसरी वाली में भाग लिया है और मैंने पहली वाली में। हमारी वाली तो अभी और चलेगी। टीया वाली का पता नहीं है। कहो तो मालूम करके बता दूं?" 


इस जवाब से लाजो जी थोड़ी संतुष्ट लगीं "मैंने टीया को फोन लगाया था पर उसका मोबाइल बंद आ रहा है?" 

"आंटी, इतने दिनों बाद ये मुलाकात हुई है तो फोन तो बंद आयेगा ही। मेरा मतलब है कि जब जब भी सेमीनार होती है तो सबका फोन स्विच ऑफ करवा लेते हैं ये लोग। कोई नहीं आंटी, सेमीनार खत्म होते ही आ जायेगी टीया। मैं और कह दूंगी उसे"। 

"हां बेटा, कह देना। मुझे चिंता हो रही है उसकी"। 


घर पर टीया भी नहीं है। बेटे से बात हो ही चुकी है अमोलक जी की। अब तो बहू ही बची है पर बहू से कह नहीं सकते हैं और अमोलक जी भी अभी नहीं हैं यहां जिन पर सारा इल्ज़ाम थोपा जा सके कि आपने ही सिर पर बैठाया है रितिका को। पेट में लावा खौल रहा था। उसका बाहर आना बहुत जरूरी था। अखर वह बाहर नहीं आया तो पता नहीं क्या कुछ भस्म कर जायेगा वह ? पर लाख टके का सवाल है कि वह कैसे आए ? 


अचानक उन्हें याद आया कि "लेडीज क्लब" का समय हो गया है। महफिल सज गई होगी। चलो चलते हैं। वहां पर इस आग को शांत करने की कोशिश करते हैं। 


और लाजो जी हल्का मेकअप करने के लिए आईने के सामने खड़ी हो गईं। चेहरा कैसा काला काला सा लग रहा था उनका। दिल में जब ईर्ष्या का लावा खौल रहा हो तब धुंआ चेहरे पर ही जमा होता है। जो जितना ईर्ष्या की आग में जलेगा, उसके चेहरे पर उतना ही धुआं जमा होता चला जायेगा। इस धुंआ को हटाने की बहुत कोशिश की लाजो जी ने मगर हटा नहीं। यह धुआं तो "आत्मिक खुशी" से ही मिट सकता है। वो "आत्मिक खुशी" कहां से लाएं ? वह तो लेडीज क्लब जैसी महफिलों में "निन्दा रस" से ही आ सकती है। तो लाजो जी ने अपने चेहरे पर कुछ लीपा पोती की और धम्म से पहुंच गई लेडीज क्लब में। 

"आओ, आओ सांभा, आ जाओ। आखिर आ ही गए हो 'डेरे' में" चौधराइन गब्बर की तरह से बोलीं। 


"गम ही गम बिखरा है जानी जमाने में 

चैन मिलता है चौधराइन तेरे मैखाने में" 


लाजो जी ने मूड हल्का करते हुए इस शेर से माहौल बना दिया था। 

"वाह वाह। क्या बात है। आते ही छक्का जड़ दिया। क्या कमाल की बात कही है भाभी आपने। परकटी बिपाशा ने कहा। "आज तो फुल मस्ती में लग रहे हो आप। तो हो जाए एक और शेर"। हंसते हुए परकटी बोली 

"अरे नहीं नहीं। हमें कहां आती है ये शेरो शायरी ? 


हम तो जमाने की उल्फत के मारे हुए हैं 

तू बचा ले साकी, अब तेरे सहारे हुए हैं।। "


इस बार और जोर से शोर हुआ। "वो मारा साले पापड़वाले को ! हिप हिप हुर्रे। हिप हिप हुर्रे"। भांगड़ा सिंह की वाइफ डिस्को सिंह जोर जोर से भाखड़ा करने लगी। 


आधुनिक सी दिखने वाली लीजा बोली "ऐ री डिस्को, तू तो खुद डिस्को है तो "भांगड़ा" क्यों करती है ? हम औरतों का भी तो एक व्यक्तित्व होता है ना। उसे पकड़ कर रखना चाहिए।" वह हमेशा नारीवाद को बीच में ले ही आती है। 


इतने में लक्ष्मी जी बात बदलते हुए बोली "ऐ जिज्जी, बहुत दिनों से छमिया भाभी नहीं दिख रही हैं। क्या बात है, कछु नाराज चल रही हैं क्या?" 

"अरे, इस पर तो हमारा ध्यान गया ही नहीं कभी। लक्ष्मी जी, भला हो आपका जो आज आपने छमिया का जिक्र कर दिया।आज वह है भी नहीं। आज उसकी खूब बुराई भलाई कर लो यहां। कल का क्या पता ? अगर वह कल आ गई तो ऐसा मौका फिर नहीं मिलने वाला है। क्यों है ना लाजो भाभी"। सविता जी बोलीं 


लाजो जी को भी पसंद नहीं आती थी छमिया भाभी। लाजो ने उसे एक दो बार अमोलक जी को ताड़ते देख लिया था। ये तो गनीमत थी कि अमोलक जी का ध्यान कहीं और था इसलिए लाजो जी खामोश ही रहीं। आज अच्छा मौका हाथ लगा था। आज छमिया यहां है नहीं तो खूब भड़ास निकल सकती है उनकी। वैसे भी यहां पर एक सिद्धांत काम करता है कि जो भी अनुपस्थित हो बस उसी की बुराई शुरु कर दो और खूब मजे लो। यह फॉर्मूला ऐसी गोष्ठियों में बहुत काम आता है। सब यही "बुराई -बुराई" गेम खेलते हैं।


लाजो जी कूद पड़ी मैदान में "कहां चली गई है वह छम्मक छल्लो?" 


परकटी बोली "कोई बता रहा था कि शिमला गई है घूमने" 

"शिमला घूमने ? पर भुक्खड़ सिंह भाईसाहब को तो मैंने आज सुबह ही देखा था सब्जी लाते हुए" ! बबीता जी बोल पड़ी। 

"भुक्खड़ सिंह को ही तो देखा था न छमिया को तो नहीं देखा ? भुक्खड़ सिंह को साथ नहीं ले गई होंगी छमिया भाभी" सोनिया जी बोलीं 


"बिना हसबैंड के भी कोई घूमने जाता है क्या?" 


बहुत देर से लक्ष्मी चुपचाप सुन रही थी। मगर अब उससे चुप नहीं रहा गया तो वह चट से बोल पड़ी "लो कर लो बात ! अपने हसबैंड के साथ घूमने में क्या आनंद है ? मजा तो औरों के साथ घूमने में है। घर में भी वही और बाहर भी वही। ये भी कोई बात हुई भला ? बोर हो जाती हैं बेचारी बीवियां। उन्हें भी तो एनजॉय करने का अधिकार है कि नहीं?" बड़ी मासूमियत के साथ कह गई लक्ष्मी जी।


लक्ष्मी जी की बात पर हंगामा मचना स्वाभाविक था, तो खूब हंगामा हुआ। सब महिलाएं पेट पकड़कर जोर जोर से हंसने लगीं 

। लाजो जी ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी पर काबू पाया तो लक्ष्मी जी से पूछ बैठी 

"एक बात बता लक्ष्मी, तू कितनों के साथ घूम आई है अब तक?" 


लक्ष्मी जी को अब पता चला कि वह क्या बोल गई थी। लेकिन छूटा तीर कमान से और निकली बात जुबान से वापस आती हैं क्या ? अब तो फजीहत झेलनी पड़ेगी ही लक्ष्मी जी को। 


क्रमश: 



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