धागा
धागा
राखी का पर्व आते ही कनिका में अजीब सी ललक एवं कौतूहल फैल जाता था। उसे वो लम्हें याद जाते थे जब उसने मुँह बोले भाई सुदीप की कलाई में रक्षासूत्र बाँधा था। सुदीप के रक्षासूत्र बाँधते कई दशक बीत गये थे। सुदीप जब विदेश में रहता तब कई बार कनिका की आर्थिक सहायता कर चुका था आखिर कनिका मुँह बोली बहन थी आज राखी के पर्व पर कनिका का हृदय भारी हो गया बरबस नजरें आतुर हो उठी।
बचपन की तूँ – तूंँ , मैं -मैं साथ – साथ खेलना, हठपूर्ण शैतानी से सुदीप को मारना, उसे बरबस ही याद आ गया। सुुदीप भी कनिका का हौसला बढ़ाए रखता था, लेकिन कनिका के पति को शक होने लगा इसलिये समय के अन्तराल पर भाई – बहन के इस पावन रिश्ते को शक ने धूमिल कर दिया था। मर्ज का इलाज है पर शक का नहीं। कनिका के पति की शक भरी नज़रों ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया था।
जिसे तोड़ने की कसक कनिका के अन्तस् में आज भी है, धागा जो कनिका के पति ने तोड़ा फिर न जुड सका। आज भी उसे तोड़ने का दर्द हृदय में उठता है तो पति के साथ रिश्ते को स्वीकार कर भाई के रिश्ते को दफ़न करना पड़ता है।