Ratna Pandey

Drama Inspirational

5.0  

Ratna Pandey

Drama Inspirational

देश भक्ति की लौ

देश भक्ति की लौ

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रघुवीर सिंह भारतीय सेना में, कर्नल के ओहदे पर कार्यरत थे। वह अपने बेटे अभिनव को हमेशा ही देश भक्ति की कहानियां सुनाया करते थे। उनकी पत्नी योगिता भी फ़ौजी अस्पताल में डॉक्टर की हैसियत से कार्यरत थी। वह भी अपने बेटे अभिनव को कर्नल जी के वीरता के किस्से सुनाया करती थी। यहां तक कि उनकी लोरियां भी देश भक्ति के गानों पर आधारित होती थीं। पूरा घर देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत था। कर्नल रघुवीर सिंह अपनी ही तरह अपने बेटे को भी फ़ौजी बनाकर देश की सेवा करवाना चाहते थे। अभिनव बड़ा होकर कर्नल रघुवीर सिंह की ही तरह फौज में ही शामिल हो गया। 


कर्नल रघुवीर सिंह के मित्र कर्नल योगेंद्र जीत की बेटी जान्हवी के साथ अभिनव का विवाह हुआ। अपने पिता की तरह अभिनव भी बहुत ही बहादुर और निडर था। मुश्किल से मुश्किल घटना को भी सोची समझी रणनीति के तहत अंजाम तक पहुंचाता और सफल भी होता था। कर्नल रघुवीर सिंह अभिनव की निष्ठा और लगन से बहुत प्रभावित और खुश थे। 


धीरे धीरे वक़्त आगे निकलता गया। अभिनव और जान्हवी भी अब माता पिता बन गए। जान्हवी ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया, एक बेटा और एक बेटी। बेटे का नाम उन्होंने गौतम रखा और बेटी का गौरी। देश भक्ति के माहौल में पल रहे बच्चे भी हमेशा घर में उसी तरह के खेल खेलते रहते थे। कभी गौतम और गौरी सिपाही बन जाते, कभी दादा जी जैसे कर्नल, कभी दादी जैसे डॉक्टर और कभी पिता जैसे मेजर। रघुवीर सिंह के पड़ोस में धीरज कुमार रहते थे, जो एक कॉलेज में प्रोफ़ेसर थे और उनकी पत्नी कोकिला स्कूल में अध्यापिका थी। उनका बेटा अक्षत और अक्षत की पत्नी अक्षिता दोनों ही डॉक्टर थे। कर्नल रघुवीर सिंह के परिवार से उनके बहुत ही घनिष्ट संबंध थे। आना-जाना साथ घूमना फिरना सभी चलता रहता था। अक्षत और अक्षिता के भी दो बच्चे थे वैशाली और वेद। गौतम, गौरी, वैशाली और वेद सभी बच्चे हमेशा साथ में खेलते थे, एक साथ बड़े हो रहे थे। कई बार दोनों परिवार साथ में ही पिकनिक पर भी छुट्टियां मनाने जाया करते थे। 


एक बार जब वह ऊटी में अपनी छुट्टियां मना रहे थे, तभी देश में बड़ा आतंकवादी हमला हुआ। अभिनव और कर्नल को अचानक ही छुट्टियों के बीच में से ही अपनी नौकरी पर वापस जाना पड़ा। देश में कई जगह आतंकवादी हमले हो रहे थे। उस समय अभिनव को कश्मीर में तैनात किया गया था, जहां एक घर में चार आतंकवादी छुपे हुए थे। वहां पर अभिनव और उसके साथी आतंकवादियों को खत्म करने की कोशिश में लगे हुए थे। अंदर से अंधाधुंध गोलियां चलाई जा रही थी और अभिनव के साथी भी मुंह तोड़ जवाब दे रहे थे। तभी एक आतंकी की गोली अभिनव के साथी को आ लगी और वह फौजी शहीद हो गया। 5 - 6 घंटों की मशक्कत के बाद अभिनव ने चारों आतंकियों को मार गिराया। लेकिन इस घटनाक्रम में उनका भी एक जवान शहीद हो गया।


ऐसी घटनाएं तो देश में होती रहती थीं और अभिनव तथा कर्नल को किसी भी वक़्त अपनी नौकरी पर वापस जाना पड़ता था। धीरज कुमार का पूरा परिवार इस बात को लेकर हमेशा ही डरता रहता था। वह आपस में कभी कभी अपने घर पर बात भी करते थे कि अभिनव और कर्नल साहब की ज़िंदगी के अंदर तो हमेशा ही खतरा मंडराता रहता है। वक़्त अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रहा था, कर्नल रघुवीर सिंह सेवानिवृत्त हो गए थे। अभिनव और जान्हवी के बच्चे भी बड़े हो गए, परिवार की देशभक्ति गौतम और गौरी में भी कूट-कूट कर भरी थी।


जब भी गौतम फौज में जाने की बात करता गौरी भी हमेशा तैयार रहती। कभी-कभी जान्हवी गौरी से कहती, "तुम लड़की हो बेटा तुम फौज में नहीं जा सकती।" तब गौरी गुस्सा होकर अपने दादा दादी के पास जाकर जान्हवी की शिकायत किया करती थी। रघुवीर सिंह हमेशा एक ही बात कहते थे, "लड़की हो तो क्या हुआ आपकी मम्मी को हम समझाएंगे और आपको भी भारतीय सेना में अवश्य ही शामिल करवाएंगे।" 


गौतम ने भी बड़ा हो कर भारतीय सेना को ज्वाइन कर लिया और वह कमांडो बन गया। साथ में खेलते खेलते गौतम और वैशाली एक दूसरे से प्यार करने लगे थे। जब कर्नल साहब को यह बात पता चली तो वह बहुत खुश हुए और उन्होंने धीरज कुमार और कोकिला से गौतम और वैशाली के बारे में बात करने का निश्चय किया। सभी लोग धीरज कुमार के घर रिश्ता लेकर गए लेकिन धीरज कुमार ने साफ इंकार कर दिया।


"कर्नल साहब, गौतम भी आप लोगों की ही तरह भारतीय फौज का ही हिस्सा है। मैं अपनी बेटी का भविष्य ऐसी जगह पर नहीं करना चाहता, जिनकी ज़िंदगी बंदूक की नोक पर लगी होती है। जो आज हैं, कल होंगे या नहीं इस बात का कोई ठिकाना नहीं। मैं जान बूझकर उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहता।"


कर्नल साहब ने धीरज कुमार को समझाते हुए कहा, " ज़िंदगी तो किसी की भी कब तक है, नहीं मालूम। मरना तो सभी को है, एक ना एक दिन लेकिन किस की मौत कैसे होती है यह कोई नहीं जानता। धीरज साहब जो देश के लिए अपनी जान देते हैं, उनकी मौत अमर हो जाती है। वह शहीद कहलाते हैं इतिहास के पन्नों में उनका नाम हमेशा के लिए अंकित हो जाता है। पूरा देश उनकी शहादत पर आंसू बहाता है और तिरंगे का कफ़न एक देशभक्त को ही नसीब होता है। इससे ज्यादा मैं आपसे क्या कहूं, मुझे ही देखो पूरी ज़िंदगी फौज में रहा पर जीवित हूं। मेरे साथ के कितने ही लोग, अब इस दुनिया में नहीं है जबकि वह सेना में तो नहीं थे।" 


"धीरज साहब, वैशाली और गौतम एक दूसरे से प्यार करते हैं हम उन्हें अलग कैसे कर सकते हैं"


धीरज कुमार ने रघुवीर सिंह के कंधे पर हाथ रख कर कहा, "रघुवीर तुम ठीक कहते हो लेकिन मुझे एक बार घर पर सभी से बात करने दो, मुझे बहुत डर लगता है।" 


रघुवीर सिंह ने कहा, "ठीक है धीरज, मैं तुम्हारी हां का इंतजार करूंगा।"


लगभग दो-तीन दिन गुजर जाने के बाद धीरज कुमार ने रघुवीर सिंह और उनके पूरे परिवार को अपने घर खाने पर बुलाया। खाने के बाद धीरज कुमार ने कहा, "कर्नल मैंने घर में सभी से विचार-विमर्श किया है, गौतम से वैशाली की शादी के लिए सभी डर रहे थे। लेकिन वैशाली से पूछने पर उसने जो शब्द कहे, हम सब का रोम रोम कांप गया। हम सब निःशब्द हो गए क्योंकि उसके बाद कहने सुनने और समझने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। 


कर्नल साहब, वैशाली ने कहा कि दादाजी एक साधारण इंसान चाहे वह किसी भी जगह पर हो, कुछ भी करता हो, कितना भी नामी हो और कितना भी रईस क्यों ना हो, जीवन भर उसकी सुहागन बनकर रहने से ज्यादा में एक देशभक्त वीर नौजवान, जो देश के लिए जीता है और देश के लिए मरता है उसकी विधवा बनकर रहना ज्यादा पसंद करूंगी। कर्नल साहब हमें यह रिश्ता मंजूर है। लेकिन कर्नल एक बात मैं तुमसे अवश्य ही पूछना चाहूंगा कि क्या गौरी का विवाह, तुम किसी फौजी से करोगे।"


धीरज कुमार की बात पर कर्नल मुस्कुराए उनके चेहरे से वीर रस टपक रहा था उन्होंने धीरज कुमार से कहा, "धीरज, जब वैशाली इतनी बड़ी बात कह सकती है तो तुम सोचो गौरी तो मेरी पोती है, वीरों की कथाएं सुन सुन कर बड़ी हुई है। शायद तुम्हें नहीं मालूम लेकिन वो खुद भी भारतीय सेना में शामिल होने जा रही है। रही बात शादी की तो जहां शरीर की रग रग में देश प्रेम बहता हो, वहां ऐसे निर्णय डर के कभी नहीं लिए जाते, मेरे दोस्त। मेरी गौरी की शादी चाहे जिस से भी हो लेकिन इतनी बात अवश्य है कि वह कोई वीर देशभक्त ही होगा क्योंकि और किसी की तरफ गौरी की नज़र जाएगी ही नहीं। वह केवल उसे ही चुनेगी जो देश के लिए जीता हो और देश के लिए मरने के लिए भी तैयार हो।" 


इतना सुनकर रघुवीर सिंह और धीरज कुमार एक दूसरे के गले लग गए। घर में शहनाई बज गई और दोनों परिवार जो घनिष्ट मित्र थे, अब रिश्तेदार बन गए। गौतम और वैशाली हमेशा के लिए एक हो गए। परिवार में खुशियों का ठिकाना ना रहा। अक्षत और अक्षिता भी बेहद खुश थे कि उनकी बेटी अब हमेशा पास में ही रहेगी क्योंकि वह पड़ोसी जो थे।


गौरी भी अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के उपरांत सेना का हिस्सा बन गई। गौतम हमेशा ही अपने कार्य में अत्यधिक व्यस्त रहता था। गौतम और वैशाली की शादी को लगभग 5 वर्ष बीत गए थे। अब वैशाली गर्भवती थी डॉक्टर ने उन्हें गर्भ में जुड़वां बच्चे हैं, इस बात से अवगत कराया। पूरे घर में ख़ुशी की लहर दौड़ गई, सभी वैशाली का बहुत ख्याल रखते। गौरव को भी अपने दोनों बच्चों का बेसब्री से इंतजार था।


इसी दौरान पड़ोसी देश की गोलाबारी और हरकतें बहुत ही ज्यादा बढ़ गई थीं। ऐसी हरकतों की आड़ में वह आतंकियों को हमारी सीमा के अंदर भेज देते थे। एक दिन अचानक कुछ आतंकी हमारी सीमा के अंदर आ गए और शहर में भीषण तबाही मचाने लगे। कम से कम आठ नौ आतंकी थे। वह कुछ स्थानीय लोगों की मदद से एक बड़े होटल में जाकर गोलियां बरसा रहे थे। गौतम को आतंकियों का मुकाबला करने और उन्हें अंज़ाम तक पहुंचाने का काम सौंपा गया। गौतम अपने कुछ साथियों के साथ अपने लक्ष्य में जुट गया और बहादुरी से उनका मुकाबला करने लगा। 


गौतम और उसकी टीम बाहर थी और आतंकी होटल के अंदर। गौतम की यह ज़िम्मेदारी थी कि उसे अंदर के सभी लोगों को बचाना था और आतंकियों को भी मौत के घाट उतारना था। गौतम ने अपनी रणनीति से होटल के सभी लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। अब उसे व उसकी टीम को आतंकियों को जो इधर-उधर छुपे हुए थे, ठिकाने लगाना था। लंबा वक़्त निकलता जा रहा था, धीरे-धीरे सात आतंकी गौतम की टीम का शिकार हो गए, जिसमें से लगभग 4 को तो गौतम ने ही मारा था। इसी मुठभेड़ के चलते अचानक एक गोली आकर गौतम के सीने को पार कर गई। 


गौतम के शरीर से रक्त बह रहा था लेकिन वह अपनी बंदूक को झुकने नहीं दे रहा था। घायल होते हुए भी गौतम गोलियां चला रहा था। रक्त की बूंदें धरती पर गिर रही थीं। गौतम ने बड़ी ही चालाकी से अपनी जगह बदली और दूसरी तरफ जाकर वहां से एक आतंकी को अपनी गोली का शिकार बना डाला। तभी गौतम के साथी ने आकर उसके घाव को कपड़े से बांधकर रक्त को रोकने की कोशिश की। गौतम ने हार नहीं मानी और सभी आतंकियों का काम तमाम हो गया। गौतम को उसके साथियों ने अस्पताल पहुंचाया। पूरे होटल की चारों तरफ से घेराबंदी कर ली गई थी। जैसे ही अंतिम आतंकी के मरने की खबर आई सभी ने राहत की सांस ली।


अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों ने गौतम का इलाज़ शुरु कर दिया परंतु डॉ गौतम को नहीं बचा सके। रघुवीर सिंह के पास जब यह दुःखद समाचार पहुंचा तो वह तुरंत ही आ गये। पूरे घर में मातम छा गया, गर्भवती वैशाली ने हिम्मत से काम लिया। उसके अपने माता-पिता और दादा दादी जो हमेशा इस बात से इतना डरते थे, उन्हें संभाला। वैशाली का भाई वेद घर पर नहीं था, वह कॉलेज में लेक्चर अटेंड कर रहा था । तभी उसे यह दुःखद समाचार मिला, वेद यह सुनते ही अपनी बाइक से घर की तरफ आने के लिए निकला। उसके हाथ-पांव कांप रहे थे, वह अपनी सुध बुध खोने लगा। जल्दी से जल्दी घर आने के चक्कर में बाइक की रफ़्तार की तरफ उसने ध्यान ही नहीं दिया। तीव्र गति की वजह से वेद की बाइक दुर्घटना का शिकार हो गई और उसकी दुर्घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई। 


पुलिस ने वेद की मृत्यु की खबर उसी के मोबाइल फोन से उसके घर पर दी। धीरज कुमार और कोकिला तो यह खबर सुनकर बेहोश हो गए। अभिनव और अक्षत तुरंत ही दुर्घटना स्थल पर पहुंचे। वह दोनों वेद की मृत देह को पहले अस्पताल ले गए तथा वहां पर सब कार्यवाही पूरी करने के बाद उसे घर लाया गया। तब तक धीरज और कोकिला को होश आ गया था। परिवार में एक ही दिन में दो जवान मौत, इससे बड़ा दुख कोई हो ही नहीं सकता था।


अक्षत और अक्षिता अपने बेटे की मृत देह के पास बैठकर फूट-फूट कर रो रहे थे। दोनों डॉक्टर होते हुए भी अपने बेटे के लिए कुछ नहीं कर पाए। सोच रहे थे कि काश हम वहां होते और वेद के लिए कुछ कर पाते। वह बार-बार ऐसा कह कर विलाप कर रहे थे।


तभी गौतम का पार्थिव शरीर घर लाया गया वह तिरंगे में लिपटा हुआ था। अपने जवान बेटे का पार्थिव शरीर देख कर कर्नल और अभिनव मानो पत्थर की मूर्ति बन गए थे। उनकी आंखे लाल थीं लेकिन आंसू नहीं थे। योगिता और जान्हवी की आंखों से आंसुओं की ऐसी धारा बह रही थी मानो बाढ़ ही आ गई हो। यह एक ऐसा नज़ारा था, जहां आंसू थे, सन्नाटा था, गर्व था और वीरता का परचम लहरा रहा था। तिरंगे में लिपटा हुआ गौतम का चेहरा अब भी चमक रहा था और अपने लक्ष्य में कामयाबी का संतोष उसके चेहरे में दिखाई दे रहा था। वैशाली की हालत तो बहुत ही ख़राब थी वह कभी अपने भाई तो कभी अपने पति के पार्थिव शरीर को देखती लेकिन घर के बुजुर्गों की हालत देखकर उसे स्वयं को भी संभालना पड़ रहा था।


तिरंगे में लिपटे हुए गौतम के पार्थिव शरीर के दर्शनों के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ा था। सभी उसे भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पण कर रहे थे। बड़े-बड़े सेना के ऑफिसर उस मृत देह के आगे फूल चढ़ाकर सेल्यूट कर रहे थे। इधर वेद के पार्थिव शरीर के पास परिवार के लोगों के अलावा कुछ मित्र थे। उस दिन दोनों का अंतिम संस्कार किया गया, लेकिन दोनों अंतिम संस्कार में कितना अंतर था। धीरज कुमार को आज रघुवीर सिंह की वह बात याद आ रही थी जो उन्होंने वैशाली का हाथ मांगते समय कही थी कि मौत तो सभी को आती है धीरज साहब लेकिन वह कैसे आती है यह महत्वपूर्ण है। फौजी की मृत्यु उन्हें शहीद बना जाती है, अमर कर जाती है। पूरा देश उनकी शहादत पर नाज़ करता है, भाव भीनी श्रद्धांजलि देता है। तिरंगे का कफ़न नसीब होता है। धीरज कुमार अपने बेटे और दामाद के अंतिम संस्कार के अंतर को देख रहे थे।


इतना बड़ा दुख सहन करना हर परिवार के लिए मुश्किल होता है। वैशाली और गौरी ने दोनों परिवारों को संभाला। वैशाली के 9 माह पूरे हो चुके थे, वैशाली ने भी जुड़वां बच्चों को जन्म दिया एक बेटा और एक बेटी। इन दोनों छोटे बच्चों को नाना-नानी, दादा-दादी, सभी का प्यार मिलता रहा। रघुवीर सिंह तो सुनाते ही थे किंतु अब धीरज कुमार भी दोनों बच्चों को देश प्रेम से भरी वीरता की कहानियां सुनाने लगे। वह हमेशा कहते कि मेरे दोनों बच्चे बड़े होकर भारतीय फौज में भर्ती होंगे और अपनी मातृभूमि के लिए ही जिएंगे। अब धीरज कुमार और उनके परिवार का डर समाप्त हो गया था। अब वह भी रघुवीर सिंह के परिवार की तरह देश प्रेम और वीर रस से सराबोर थे।




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