Ratna Pandey

Inspirational

4.6  

Ratna Pandey

Inspirational

ख़ुद को हम सक्षम कर लें

ख़ुद को हम सक्षम कर लें

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रम्भा अपने घर से साइकिल पर निकली। वह कुछ ही दूरी पर पहुँची कि अचानक उसके कानों में दर्द से कराहती ज़ोर की चीख़ें सुनाई दीं बचाओ-बचाओ। रम्भा की साइकिल में ब्रेक मानो अपने आप ही लग गया। जिस तरफ़ से आवाज़ आई, उसने वहाँ साइकिल खड़ी कर दी। स्ट्रीट लाइट नहीं थी, चारों तरफ़ अंधकार पसरा हुआ था, रास्ता सुनसान था। नई बन रही सोसाइटी सूनी पड़ी थी, जहाँ आधे-अधूरे बने मकान अपनी हाज़िरी दिखा रहे थे। होली का समय था, इसलिए सभी मज़दूर अपने गाँव को पलायन कर चुके थे।


अँधेरे में ज़्यादा कुछ रम्भा को समझ नहीं आ रहा था। क्योंकि वह दर्दनाक चीख़ें भी आना बंद हो चुकी थीं। अचानक गई स्ट्रीट लाइट का और आधे अधूरे अंधकार में खड़े खाली मकानों का फायदा उठाकर किसी ने तेरह वर्ष की छोटी-सी पूर्वी को सड़क से खींच लिया और अँधेरे घर में लेकर चले गए। नई-नई सोसाइटी बन रही थी इसलिए आवाजाही भी कम थी। रम्भा की सेंस इंद्रियाँ बड़ी ही शक्तिशाली थीं। उसे हल्की-सी आहट भी कहीं हो तो पता चल जाता था।


रम्भा अंदर की तरफ़ गई तो उसने देखा दो लड़के पूर्वी के साथ ज़बरदस्ती कर रहे थे। एक ने उसका मुँह दबा रखा था ताकि बाहर से कोई उसकी आवाज़ सुनकर आ ना जाए। वह बच्ची अपने आप को बचाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही थी, संघर्ष कर रही थी ताकि उन हैवानों के चंगुल से छूटकर वह भाग जाए। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था।


इतने में रम्भा वहाँ पहुँच गई और ज़ोर से चिल्लाई, "छोड़ो उसे . . . "


अठारह साल की रम्भा बिल्कुल दुबली पतली, छोटी हाइट की लड़की थी। जिसे देखकर कभी कोई यह अंदाज़ा लगा ही नहीं सकता था कि वह तो शक्ति का भंडार है। उसकी आवाज़ सुनकर वे लड़के चौंक गए लेकिन एक नाजुक-सी लड़की को देखकर वे बिल्कुल भी डरे नहीं।


एक ने कहा, "चल यार अच्छा हो गया बिना माँगे यह भी मिल गई। अब कौन पहले वाला झंझट ही ख़त्म हो गया।"


"अब तो हम दो और ये भी दो," कह कर उनमें से एक हँसते हुए रम्भा की तरफ़ आया।


जैसे ही उसने रम्भा को हाथ लगाने की कोशिश की, वह सोच भी नहीं सकता था, उसके पेट पर इतनी ज़ोर की किक पड़ी कि वह फुटबॉल की तरह उछल कर दूर जा गिरा। वह हैरान था कि यह क्या हो गया। दूसरा लड़का उस बच्ची के साथ ज़बरदस्ती कर रहा था।


रम्भा उस तक पहुँचे तब तक वह लड़का उठ कर फिर रम्भा के पास आया और कहा, "अच्छा तू मारेगी मुझे? अब देख मैं क्या करता हूँ।"


वह जैसे ही रम्भा की तरफ़ बढ़ा उसने फिर से उसे उसी तरह से किक मारी किंतु इस बार वह लड़का संभल चुका था। अतः दोनों में हाथापाई होने लगी। रम्भा की शक्ति भले ही उससे थोड़ी कम हो किंतु बचने और मारने की फुर्ती उससे कहीं ज़्यादा थी। रम्भा ने उसकी जोरदार पिटाई शुरू कर दी। अपने साथी को इस तरह पिटता देखकर दूसरा लड़का भी इस लड़ाई में मुकाबला करने आ गया। तब तक पूर्वी उठकर एक कोने में जाकर छिप गई। वह बहुत डरी हुई थी और रो रही थी। रम्भा के अंदर इतनी शक्ति छिपी हुई थी कि उन दो लड़कों का मुकाबला भी वह अकेले ही करने लगी। रम्भा ने उन्हें इतना पीटा कि अब उन लड़कों ने वहाँ से भागना ही उचित समझा क्योंकि यदि कोई और यहाँ का शोर सुनकर आ जाएगा तो कितनी फज़ीहत होगी। इस डर से वे दोनों वहाँ से भाग निकले।


रम्भा उन्हें पकड़ कर पुलिस के हवाले करना चाहती थी किंतु ऐसा वह कर न सकी। रम्भा तुरंत ही पूर्वी के पास गई। वह रम्भा के गले लग गई और ज़ोर से रोने लगी।


रम्भा ने पूछा, "क्या नाम है तुम्हारा? और तुम यहाँ इस तरह अकेले इनके हाथ कैसे लग गईं?"


रोते-रोते पूर्वी ने अपना नाम बताते हुए कहा, "मेरा नाम पूर्वी है। मैं इधर पास की सोसाइटी में रहती हूँ। मेरा घर बिल्कुल पास में ही है। मैं अपनी सहेली जो बस अगली सोसाइटी में ही रहती है उसके पास 10 मिनट के लिए जा रही थी क्योंकि मुझे उस की नोटबुक चाहिए थी।"


"हाँ तो फिर क्या हुआ? तुम्हें अकेले नहीं आना चाहिए था। कितना अँधेरा है ऐसे में तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें आने कैसे दिया?"


"नहीं-नहीं जब मैं घर से निकली तब अँधेरा नहीं था। मैं रास्ते में थी तभी अचानक स्ट्रीट लाइट चली गई। मैं वापस पलटने वाली थी कि तभी उन गुंडों ने मुझे खींच लिया।"


"अच्छा बताओ कहाँ रहती हो? चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देती हूँ।"


उधर पूर्वी की मम्मी सोच रही थीं मना किया था रुकना मत, जल्दी आ जाना पर यह बच्चे . . . ऐसा सोचते हुए उसने दरवाज़ा खोला। बाहर अँधेरा देखते ही उनके मुँह से निकला, "ओ माय गॉड स्ट्रीट लाइट नहीं है। बाप रे. . .! इसीलिए पूर्वी अपनी सहेली के घर पर रुक गई होगी। मैं जा कर ले आती हूँ।"


तभी उनकी पड़ोसन भी बाहर निकली और उसने पूछा, "अरे क्या हुआ आरती?"


"नहीं कुछ नहीं, पूर्वी उसकी सहेली के घर नोटबुक लेने गई है। बस उसी की रास्ता देख रही थी।"


इतने में उन्होंने देखा पूर्वी अस्त-व्यस्त बालों और रोते हुए किसी लड़की के साथ आ रही है। वह घबरा गई और उनकी तरफ़ जाते हुए पूछा, "पूर्वी बेटा क्या हुआ तुम्हें? तुम रो क्यों रही हो और यह क्या हालत बना रखी है? कहीं गिर गई थीं क्या?"


पूर्वी रोते-रोते सिसकियाँ ले रही थी। वह दौड़ कर अपनी मम्मी के पास आकर उनसे चिपक गई और ज़ोर से फूट-फूट कर रोने लगी। अब आवाज़ सुनकर और भी अड़ोसी पड़ोसी बाहर निकल आए। क्या हुआ? सब पूछ रहे थे।


आरती ने रम्भा की ओर देखते हुए पूछा, "बेटा कौन हो तुम? पूर्वी तुम्हें कहाँ मिली और इसे क्या हुआ है? मुझे बहुत डर लग रहा है, जल्दी बताओ बात क्या है?"


"आंटी मेरा नाम रम्भा है मैं आगे की सोसाइटी में रहती हूँ। मैं हर रोज़ इस समय साइकिल चलाने के लिए निकलती हूँ। आज भी जब मैं साइकिल से घर की तरफ़ लौट रही थी तो उधर कुछ मकान बन रहे हैं ना, वहाँ काफ़ी अँधेरा था, सुनसान था। उधर से मुझे बचाओ-बचाओ की आवाज़ें सुनाई दी. . ."


इतना सुनते ही आरती की आँखों से आँसुओं की धारा तेजी से बहने लगी। सभी लोग शांत होकर रम्भा की बातें सुन रहे थे।


" . . . आंटी उस आवाज़ में दर्द था। मुझे लगा किसी को मेरी ज़रूरत है। मैंने उसी जगह साइकिल रोक दी और उस मकान की तरफ़ जाने लगी, जहाँ से आवाज़ आई थी। लेकिन अब तक तो वह आवाज़ भी गायब हो चुकी थी पर तब तक मेरे कानों में चीखें स्पर्श कर चुकी थीं । मैं जब अंदर पहुँची तो देखा कि दो लड़के इसके साथ ज़बरदस्ती कर रहे थे। एक तो इसका मुँह दबा रहा था ताकि इसकी चीखें बाहर ना जा सकें। दूसरा इसके पैर पकड़ने की कोशिश कर रहा था। यह बेचारी संघर्ष कर रही थी।"


अब पूर्वी ने भी अपने आँसू पोंछे और कहा, "मम्मा यह दीदी बहुत ताकत वाली हैं। इन्होंने उन्हें इतना मारा कि वह वहाँ से भाग ही गए।"


आरती ने पूछा, "रम्भा मेरी बच्ची को कुछ . . .! “


"नहीं-नहीं आंटी वह बिल्कुल ठीक है, आप चिंता मत करो। भगवान ने मुझे समय पर वहाँ भेज दिया।"


"लेकिन बेटा तुम तो एकदम दुबली पतली हो, तुमने कैसे उन्हें?"


"आंटी जब मैं 6 वर्ष की थी, तब से ही मेरी मम्मी ने मुझे कराटे की क्लास में डाल दिया था। उस बात को 12 साल हो गए। तब से मैं लगातार सीख रही हूँ। इसी कारण मैं ऐसे हैवानों का सामना कर पाई। मेरी मम्मी जानती थीं कि ज़माना कितना खराब है और हम सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए अपनी ख़ुद की रक्षा करना हमें ख़ुद ही सीखना चाहिए।"


यह सब चल ही रहा था कि पूर्वी के पापा भी बाहर से आ गए। अपने घर के सामने भीड़ देखकर वह घबरा गए। स्कूटर पार्क करते-करते ही उन्होंने पूछा, "आरती क्या हुआ?"


आरती ने उन्हें बताया तो उनका चेहरा गुस्से में तमतमा गया और उन्होंने कहा, "पुलिस में शिकायत दर्ज़ करवा देते हैं। ताकि पुलिस यहाँ गश्त लगाना शुरु कर दे और ऐसे लोफर गुंडों पर पैनी नज़र रख सके। यह तो अच्छा हुआ कि इस बहादुर बिटिया ने हमारी बच्ची को भेड़ियों के चंगुल से सही सलामत छुड़ा लिया।"


आरती ने कहा, "रम्भा बेटा मैं किस तरह से तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँ समझ नहीं आ रहा। आज तुमने वह काम कर दिखाया है, जिस पर हर स्त्री को गर्व होगा। अब मेरी बेटी भी अपनी रक्षा ख़ुद ही करना सीखेगी।"


"हाँ आंटी आपके घर के पास जो भी इस तरह की क्लास चलती हो चाहे कराटे हो, जूडो हो, बॉक्सिंग हो या कुछ और कुछ भी हो, वहाँ भेजना शुरू कर दीजिए। यह तो हर लड़की को आना ही चाहिए। आंटी आज के समय की मांग तो यही है कि भले ही लड़कियों को नृत्य, संगीत ना सिखाया जाए लेकिन उन्हें अपनी रक्षा के लिए ऐसी क्लास में अवश्य ही भेजना चाहिए। हम कद और काठी में मर्दों से छोटे दिखते हैं तो क्या हुआ लेकिन हमारे अंदर भी भगवान ने शक्तियों का खजाना दिया है।"


"तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो रम्भा, तुमने यह साबित भी कर दिया है।"


"हाँ आंटी पसीना ज़रूर बहाना पड़ता है लेकिन एक बार हमें ख़ुद को सक्षम कर ही लेना चाहिए क्योंकि लोग तो सुधरने वाले नहीं हैं। आंटी मेरी मम्मी कहती हैं कि अब वह ज़माना बीत गया जब स्त्री को छुई मुई समझा जाता था। वह जितनी नाज़ुक उतनी ख़ूबसूरत समझी जाती थी लेकिन समाज के इन भेड़ियों ने ही हमें यह एहसास दिलाया है कि नाज़ुक होना हमारी ख़ूबसूरती नहीं है। हमें उनके जितना ही शक्तिशाली बनना होगा, तभी हम अपनी अंदर और बाहर की सुंदरता की रक्षा कर पाएँगे। मन की भी और तन की भी।"


"तुम्हारी मम्मी ने एकदम सही समय पर सही निर्णय लिया था बेटा।"


"हाँ आंटी मेरी मासी जब 12 वर्ष की थी तब ऐसे ही किसी हैवान की हवस का शिकार हो गई थीं और वह ज़िंदा लौट कर वापस घर ना आ सकीं। घर पर केवल उनका छिन्न-भिन्न हालत में मृत शरीर ही वापस आया था। जिसने हमारे पूरे परिवार को दहला दिया था। मम्मी कहती हैं उसके बाद मेरे नाना-नानी कभी ख़ुश नहीं रह सके। अपनी बेटी के साथ हुए उस दर्दनाक हादसे की टीस हमेशा उनके मन को रुलाती ही रही।"


"तब से हमारे पूरे कुटुंब में हर लड़की को शक्तिशाली बनाने की प्रथा ही चल पड़ी। मेरी जितनी भी कजिन हैं, मेरी छोटी बहन भी जो अभी 15 साल की है। सब ऐसे ही किसी न किसी ट्रेनिंग से जुड़ी हुई हैं।"


वहाँ आरती के अड़ोस पड़ोस में रहने वाली सभी महिलाओं ने तभी यह निर्णय ले लिया कि यह लड़की कितनी सही बात कह रही है। हमें स्वयं को सक्षम कर लेना चाहिए क्योंकि लोग तो कभी सुधरने वाले नहीं हैं। कुछ बुरा होने के बाद पछताने से ज़्यादा अच्छा है पहले से ही सतर्क हो जाएँ।



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