mahak gupta

Comedy

5.0  

mahak gupta

Comedy

देर में देर

देर में देर

2 mins
303


सोमवार की सुबह हुई एक लंबी- चौड़ी काम की लिस्ट के साथ। सभी के लिए सुबह का नाश्ता, अनुज, वंदा और मेरा टिफिन, घर की साफ-सफाई, वंदा को स्कूल और अनुज को आफिस भेजना। हे भगवान! इतने सारे काम करने थे और रविवार की रात देर से घर आने के कारण मैं सुबह जल्दी नहीं उठ पाई। सुबह उठते ही मैंने मशीन की तरह एक के बाद एक काम निपटाने शुरू कर दिये क्योंकि मुझे भी आफिस जाने के लिए देर हो रही थी और आफिस जाने से पहले पासबुक में एंट्री कराने के लिए बैंक भी जाना था।


 सारा काम खत्म करने के बाद मैं भी बैंक जाने के लिए निकल गई। हे भगवान ! बैंक में भी लंबी लाइन। "जब आप पहले से ही देरी में होते हैं तो जैसे पूरी कायनात आपको और देर करने में लग जाती हैं"


 लाइन में काफी देर इंतजार करने के बाद आखिरकार मेरा भी नंबर आ ही गया। एंट्री कराने के लिए मैंने बैंक कर्मचारी को पासबुक दी। जब मैंने बैलेंस चैक किया तो देखा कि अकाउंट में 5 लाख रुपये की जगह 3 लाख रुपये ही थे। मैं घबरा गईं। आखिर, बात 2 लाख रुपये की थी। मैंने इस बारे में बैंक कर्मचारी से पूछा और उसकी एक न सुनते हुए गुस्से से सीधे बैंक मैनेजर के पास चली गई।


 मैनेजर को गुस्से से पासबुक दिखाते हुए मैंने बैलेंस में आई कमी का कारण पूछा। मैनेजर ने मुझे शांत करते हुए पासबुक को ध्यान से देखने के लिए कहा। मैनेजर के कहने पर मैंने फिर से पासबुक में देखा। पर, अभी भी 3 लाख रुपये का ही बैलेंस हैं, मैंने मैनेजर से कहा।


 मैनेजर हँसते हुए बोला- मैडम, ध्यान से देखिए! यह वंदा की पासबुक हैं, न कि आपकी। यह सुनकर मैं अचानक शांत हो गई और पासबुक पर लिखे नाम को देखा। मुझे अपनी इस नादानी पर बहुत शर्म आ रही थी। मुँह उठाकर ऊपर देखा तो, सभी एकाएक मेरी ओर ही देख रहे थे।


 फिर क्या था? मैंने मैनेजर से क्षमा माँगते हुए  धन्यवाद दिया और वहाँ से आफिस के लिए निकल गई। अब मेरी घबराहट दूर हो चुकी थी।

 

  



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