varsha chaudhary

Inspirational

4.5  

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डर

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संचित की सगाई कोमल से हो गई, बड़ा ही ख़ुशी का दिन था, घर वालों के लिए, इतनी सुन्दर और सुशील लड़की बहू, बन के आ जाएगी कुछ समय बाद, अब संचित की छुटी खत्म हो गई, और जल्दी आने के वादे के साथ संचित बापिस लौट गया. 

इधर कोमल ने सगाई कर तो ली पर दिल मे एक डर भी रहता, की कहीं पापा की तरहा मैं संचित को ना खो दूँ,(कोमल के पापा भी आर्मी मे थे और शहीद हो गए, कोमल ने और उसके घर बालो ने साफ मना कर दिया था की फौजी से रिश्ता नहीं जोड़ना, क्यों की कोमल के बचपन मे ही पिता की मौत ने कोमल के परिवार पर दुखों का पहाड़ ही गिरा दिया था, कोमल ने भी देखा है, माँ को बचपन से कैसे कैसे ज़िन्दगी गुजारी है, बिना सुहाग के, फिर भी संचित के प्यार के आगे, झुकना पड़ा कोमल के दिल को, और संचित के घर वालो ने कोमल की माँ को मना ही लिया). संचित माध्यम परिवार से है, पिता मेहनत मजदूरी कर परिवार का पोषण करते थे, फिर संचित के फौज मे जाने से परिवार के हालात सुधर गए, और बहन की शादी भी करवा दी, संचित के छोटे भाई की पढ़ाई अच्छे स्कूल मे होने लगी. कुछ दिनों बाद संचित का फ़ोन आया, माँ को, सचिन: "हैल्लो माँ कैसी हो? "

माँ - "बेटा मैं ठीक हूँ, तुम कैसे हो और कब आ रहे हो? घर की याद नहीं आती क्या ?. पंडित जी ने शादी की तारीख़ तय करदी है, "

संचित- "अरे अरे माँ, सांस तो लेलो, इतनी सारी बातें एक साथ ही,"

माँ- "तो और क्या करू, तुम फ़ोन भी कहां करते हो, कितनी बातें करनी होतीं हैं तुमसे करने की"

, संचित -"माँ यहाँ माहौल ठीक नहीं होता, रोज फायरिंग होती हैं और मोबाइल यूज़ नहीं करते ज्यादा, और ना टाइम होता है | ये छोड़ो, और बताओ पापा कैसे है, और मेरा भाई कैसा है?? ". 

माँ-"तेरा भाई ठीक है, पर, पापा की तबियत थोड़ी ख़राब है, वैसे तो ठीक है, बस, अब उम्र भी हो रही हैं ना, इसलिए तो ज़ोर दे रहे हैं की जल्दी शादी हो जाये. संचित-ठीक हैं माँ, जैसा आप सबको ठीक लगे, माँ-बेटा अब जल्दी घर आजा।"

"तुझे देखे बहुत दिनों हो गए, और घर मे अब शादी के काम भी तुम्ही को देखने हैं. "

संचित- "जी माँ, आ जाऊंगा जल्दी ही" संचित बस हाँ मे हाँ मिलाता जा रहा था, जैसे दिल मे कोई बात हो जो दबाये भी नहीं जा रही थी, और बयां भी नहीं हो रही थी।

पर माँ से कहां छुपती है, कोई परेशानी, माँ -"संचित बेटा कोई बात हैं क्या? ठीक तो हो ना? क्यों परेशान हैं मेरा बच्चा? वहां ठीक से खाना तो मिलता है ना?". 

संचित -"हाँ..माँ! खाना तो अच्छा होता है, बस नींद पूरी नहीं होती, अब घर आ के ही पूरी करूंगा नींद".

माँ -"ओहो....! मेरे बच्चा तू घर तो आ, मैं अच्छे से सुलाऊँगी तुझे, जैसे बचपन मे सुलाती थी, अपनी गोद मे।"

संचित के चेहरे पर मुस्कान आ जाती, माँ की मीठी बातों को सुनके, संचित -"ठीक है माँ, और तुम परेशान मत होना और पापा को भी कहना की मैं आके, सब काम देख लूंगा, 

आज ही छुटी की बात करता हूं." माँ -"ठीक है बेटा, हम तेरी राह देख रहे हैं, जल्दी आना, संचित "-ओ.के माँ बाय... "

घर बाले निश्चित हो गए की अब संचित आ के संभाल लेगा सब, दूसरे ही दिन, फिर संचित का फोन आ गया, संचित- "हैल्लो...! पापा कैसे हो आप? "

संचित के पापा-"मैं ठीक हुँ, पर तुम कैसे हो और आने का क्या प्रोग्राम है?"

 संचित- "सॉरी! पापा छुटी नहीं मिली, यहाँ माहौल ठीक नहीं है, आप शादी की तैयारी करो, मैं शादी से एक दिन पहले पहुँच जाऊंगा पक्का. "

पापा -"ओह्ह्ह¡ बेटा शादी की तैयारी तो कर लेंगे उसकी कोई टेन्शन नहीं, पर तुम तो ठीक हो ना? कोई तकलीफ तो नहीं?"

 संचित -"नहीं पापा यह एरिया ही ख़राब है।रोज फायरिंग होती है, रोज आतंकवादी आते हैं , रोज एक जवान शहीद होता है, इनसे तो फिर भी लड़ले पर जब अपने ही पत्थर उठाते है जिनके लिए हम सीने पर गोली खाते हैं, तब बहुत तकलीफ होती है।"

पापा -"ओह्ह्ह...¡ बेटा चाहे जितने भी पत्थर मारे, तुम खा लेना, पर अपनी भारत माता के बच्चों की हिफाज़त करने से पीछे मत हटना."

 संचित -"हांजी पापा, मेरा पहला फर्ज़ देश की रक्षा है, उसके बाद मेरा परिवार, ठीक है फिर पापा, आप अपना ख्याल रखना अब शादी के टाइम ही मिलते है तो, बाय..! "

मेहंदी का दिन आ गया संचित का इंतज़ार हो रहा था और काम की अफरा-तफरी मची थी घर मे, मेहमान भी आ गए थे ख़ुशी का माहौल था, 

उधर कोमल आँखों मे सपने, हाथों मे लाल चूड़ियाँ पहने बैठी थी, घर मे हसीं-मज़ाक चल रहा था, की अब तो कोमल हाथ ना आएगी, अपने फ़ौजी के साथ घूमती रहेगी मैडम जी, 

इधर संचित के परिवार वाले, मेहंदी की रसम की तैयारी कर रहे थे, की गांव के लोग कुछ, ग़ुम-सुम से लग रहे थे, मेहंदी ही तो है आज फिर भी, इतने लोग आ गए घर, बाहर देखा तो कुछ आर्मी के लोग, एक ताबूत मे किसी की लाश ले के आये है .. नहीं नहीं! ये पता नहीं कौन हैं, 

संचित की बहन ने ऐसा कहां, और वहां उस ताबूत को देख कर पापा को हार्टटैक आ गया, लोगो ने उन्हें हॉस्पिटल पहुँचाया, 

और माँ तो संचित का चेहरा देख, पागल सी हो गई, संचित के बदन से लिपटे तिरंगे को चूमती, तो कभी संचित के सर पे रखी, टोपी को उतार के खुद पहन के घूमती, उधर कोमल तक भी, खबर पहुंच जाती, जैसे ही कोमल को बताते हैं, कोमल सुनते ही, बेहोश हो जाती है, उसके वो लाल चूडियो वाले हाथ, मेहंदी को तरसते रह गए, वही अनहोनी हुई जिससे कोमल डरती थी, इधर संचित के पार्थिव शरीर को, दूल्हे की तरहा सजाया गया, उसे वो सेहरा पहनाया गया जो संचित का मामा बड़े चाव से लाया थे।

माँ अपनी होश में नही आई, वो तो झूमती रही अपने बेटे की शादी समझ कर, संचित की बहन जो कुछ ही पल पहले भाई के इंतज़ार मे गीत गुनगुना रही थी, औरतों के साथ, और अब सिसकियाँ भर रही है, संचित के छोटे भाई ने मुख्य अग्नि दी इस वादे के साथ की मैं भी फ़ौज मे जाऊंगा और अपने भाई की मौत का बदला लूंगा.. पापा हॉस्पिटल मे, माँ पागल सी हो गई और कोमल बेसुध हो गई।

बॉर्डर पर मौत सिर्फ एक फ़ौजी की नहीं होती, वो अपने पीछे कुछ लाशें भी छोड़ जातें हैं, संचित तो चैन की नींद सो गया, पर जिनको छोड़ गया, वो कभी सोने लायक नहीं रहे .  



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