डर की छाया
डर की छाया
यह कहानी एक छोटे से गांव के लड़के राघव की है, जिसे OCD (ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर) नामक बीमारी थी। राघव का जीवन हमेशा एक रहस्य से भरा हुआ था। उसे लगता था कि अगर वह पूजा में कोई छोटी सी गलती कर देगा, तो भगवान उसे सजा देंगे। इस डर के कारण वह बार-बार पूजा करता, लेकिन जैसे ही कुछ गलत हो जाता, वह और अधिक पूजा करने की कोशिश करता, ताकि भगवान नाराज न हो जाएं।
राघव के मन में यह डर इतना गहरा था कि वह हमेशा मंत्र बड़बड़ाता रहता। रातों को वह चुपके से अपनी मां के मंदिर में जाकर घंटों पूजा करता। कभी वह गिनती भूल जाता, कभी कोई शब्द गलत बोलता, और फिर वह फिर से उसी मंत्र को दोहराता। इस आदत ने उसका जीवन नर्क बना दिया था। वह कहीं भी जाता, कुछ भी करता, हमेशा डर लगता था कि कहीं वह भगवान का दिल न दुखा दे।
एक रात, जब वह गांव के बाहर जंगल में चल रहा था, उसकी नज़र अचानक एक अजीब सी छाया पर पड़ी। वह ठिठक गया। छाया धीरे-धीरे एक पुरानी झोपड़ी की ओर बढ़ी। राघव की सांसें तेज हो गईं, लेकिन उसका मन कह रहा था कि उसे यह जानना होगा कि यह क्या था। वह धीरे-धीरे झोपड़ी के पास पहुंचा, और अचानक दरवाजा खुला। अंदर की ओर उसकी आंखें चौंधियाकर रह गईं—वहां एक साधु बाबा बैठे थे। उनकी आंखों में एक रहस्य था, और राघव के दिल की धड़कन तेज हो गई।
साधु बाबा ने उसे देखकर कहा, "तुम डरते हो, राघव। भगवान के नाम से डरना तुम्हारी समस्या नहीं, बल्कि तुम्हारा डर ही तुम्हारी समस्या है।" राघव चौंका, "कैसे जानते हैं आप?" साधु बाबा मुस्कराए और बोले, "तुम्हारा दिल बहुत शुद्ध है, पर तुम्हारी मानसिक उलझन तुम्हें परेशान कर रही है। भगवान नहीं चाहते कि तुम उनकी पूजा डर के साथ करो।"
साधु बाबा की बातों ने राघव को चौंका दिया। वह समझ नहीं पाया कि वह कितना सही था, और कितना गलत। बाबा ने उसे बताया कि भगवान कभी भी किसी से नाराज नहीं होते, वे तो केवल हमारी नीयत और भावना देखते हैं। राघव ने महसूस किया कि उसने जो सालों से सोचा था, वह सिर्फ एक भ्रम था।
वह अपने गांव लौट आया, लेकिन अब उसके मन में एक नई सोच जाग चुकी थी। उसने सोचा कि क्या सच में उसे अपनी पूजा के तरीके को बदलने की जरूरत है? क्या वह खुद को बेहतर समझ सकता था, बिना किसी डर के?
राघव ने साधु बाबा की बातों को ध्यान में रखते हुए अपने जीवन में बदलाव लाने की ठानी। उसने ध्यान करना शुरू किया और धीरे-धीरे अपनी ओसीडी को नियंत्रित किया। लेकिन कहानी में सस्पेंस अभी खत्म नहीं हुआ था—क्या राघव सच में अपने डर से मुक्त हो पाया था? क्या उसके अंदर की उलझन सुलझ पाई थी?
राघव की यह यात्रा एक तरह से आत्म-खोज की थी, और उसके जीवन के हर मोड़ पर एक नया रहस्य उसे चुनौती दे रहा था। क्या वह अंततः शांति पा सका, या उसका डर उसे फिर से जकड़ लेता? यह सवाल अब भी अनुत्तरित था, लेकिन राघव ने अपना रास्ता खोज लिया था—अब वह जानता था कि आत्म-संवेदनशीलता ही असली शक्ति है।
