आयु और देव की कहानी
आयु और देव की कहानी
एक छोटा सा गांव था, जहां एक परिवार रहता था। इस परिवार में दादा-दादी, माता-पिता और एक अनोखा लड़का था, जिसका नाम आयु था। आयु की सोच दूसरों से थोड़ा अलग थी। वह एक विद्यार्थी था और उसे हर बात पर तर्क करने की आदत थी। भगवान का बहुत बड़ा भक्त था, सुबह उठते ही अपने हाथों को देखकर "कराग्रे वसते लक्ष्मी" मंत्र का जाप करता और धरती मां को प्रणाम करता।
आयु को एक फोबिया था, जिसके कारण वह कभी किसी को दुख नहीं देना चाहता था। यदि उसके पांव किसी चीज पर लग जाते, तो वह उसे प्रणाम करता।
एक दिन, जब वह स्कूल जा रहा था, रास्ते में उसे एक लॉकेट मिला, ज उसे यह लॉकेट पसंद आया और उसने इसे गले में पहन लिया। हालांकि, उसे एक हल्का झटका सा लगा, लेकिन उसने इस पर ध्यान नहीं दिया।
जब वह स्कूल पहुंचा, तो उसका दोस्त देव ने उसे लॉकेट के बारे में पूछा। देव ने कहा, "यह लॉकेट तुम्हारे पास पहले नहीं था।" आयु ने कहा, "मुझे यह रास्ते में मिला।" तभी उसे हल्की आवाज सुनाई दी, "यह कितना कबड्डी है, कुछ भी उठा लेता है।" आयु ने देव से कहा, "तूने कुछ कहा?" देव ने कहा, "नहीं, मैंने कुछ नहीं कहा।" फिर आयु को एक और आवाज सुनाई दी, "इसने कैसे सुन लिया?"
आयु को समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है, और उसने लॉकेट छोड़ दिया।
छुट्टी के बाद जब वह घर आया, उसकी मां ने लॉकेट को देखा। उसने कहा, "यह मुझे रास्ते में मिला।" उसकी मां ने चेतावनी दी, "रास्ते में जो भी मिलता है, उसे नहीं उठाना चाहिए।" अचानक आयु को हल्की आवाज सुनाई दी, "कैसा बेटा है हमारा, कुछ भी उठा लेता है।"
आयु ने मां से पूछा, "आपने कुछ बोला?" मां ने कहा, "नहीं।" अब आयु को कुछ समझ में आने लगा था, लेकिन वह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं था।
अगले दिन, आयु ने यह बात अपने दोस्त देव को बताई। देव, जो जादुई फिल्में देखता था, चौंक गया और बोला, "कहीं यह जादुई लॉकेट तो नहीं?" आयु हंसने लगा। देव ने कहा, "एक बार मुझ पर ट्राई कर।"
जब देव ने लॉकेट को देखा, तो वह बोला, "अब मैं मन में क्या सोच रहा हूं, तुम्हें सुनाई दे रहा है?" आयु ने कहा, "कुछ भी नहीं हो रहा है।" फिर मजाक में आयु ने कहा, "मैं तेरे सामने ऐसा घुमाऊंगा और तू बेहोश हो जाएगा।"
देव ने मन में सोचा, "हो भी सकता है," और अचानक आयु ने बताया, "तूने अभी क्या कहा?" देव चौंका, "तुझे कैसे पता चला?"
आयु ने लॉकेट छोड़ दिया। देव ने कहा, "अब बता, मैंने क्या कहा मन में?" लेकिन आयु को कुछ सुनाई नहीं दिया। देव ने कहा, "अभी सुनाई दिया था, ना?"
आयु ने कहा, "बस लॉकेट पकड़ रखा था और तुझे दिखा रहा था।"
अब देव ने कहा, "फिर वैसा ही कर।" आयु ने वैसा ही किया, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। देव ने कहा, "मैंने तो कुछ मन में सोचा ही नहीं।"
इस प्रकार, आयु और देव ने लॉकेट की जादुई शक्तियों के बारे में और जानने का निर्णय लिया। क्या यह लॉकेट वास्तव में जादुई था? या यह सिर्फ एक संयोग था? यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती; आयु की खोज अभी बाकी थी।
इस प्रकार, आयु के जीवन में एक नया मोड़ आया, जिसमें उसे अपने विश्वास और सोच की गहराई में उतरना था।

