डर का सामना
डर का सामना
कालेज का वार्षिक समारोह देर रात खत्म होना था, कुछ दोस्त घर के पास की कालोनी में रहते थे तो साथ पाकर समारोह में रुक गया।
आधी रात को समारोह खत्म होते ही दोस्तों के साथ घर के लिए निकल पड़ा, बाकी दोस्तों को अलविदा कह कालोनी के नजदीक पहुंच छोटे रास्ते से जाने के लिए मैदान में पैर रखा ही था तो याद आया कि माँ मैदान के किस्से कहानी सुना, इधर से आने को मना करती थी, लेकिन इन सब बातों को मानता कौन है ?....ये सोच मैदान से ही जाने के लिए चला ही था, तो अकेला होने से बेचैनी महसूस हुई, नजर घुमाई तो दूर सड़क लाइट की रोशनी टिमटिमा रही थी। अंधेरे में पैरों के नीचे प्लास्टिक की बोतलों, थैलियों के आने से, झींगुरों की आवाजें और दूर कहीं से रोते हुए कुत्ते की आवाज से दिल बैठ गया। आगे बढ़ने पर लगा माँ ठीक ही बोलती थी, ये रास्ता ठीक नहीं है। अब तो मन ही मन हनुमान चालीसा बोलता हुआ तेज कदमों से चलने लगा कि अचानक पीछे से आवाज आई,
"पवन बेटा रुको, मैं भी साथ चलता हूँ।"
अरे! यह तो चोपड़ा अंकल हैं, जो कुछ दिनों से घर से लापता थे ... तुरंत पलटा, बोलने ही वाला था कि देखा दूर-दूर तक कोई नहीं था... डर के मारे हालत खराब, माथे पर पसीने की तरावट, चेहरा सफेद, दिमाग सुन्न, शरीर पसीने से तर-बतर और डर से दिल अपनी दूनी रफ्तार से धड़क गया। फिर तो जैसे तैसे भागते-भगाते घर पहुँचा तो पिताजी और माँ घर से निकलते हुए बोले, "सुनो पवन! पुलिस को चोपड़ा जी की लाश नाले में पड़ी मिली है, हम आज रात उनके घर रुकेंगे... अंदर पहुंच कर देखा, छोटी बहन सहमी हुई थी, पर अपने दिल की बात दिल में ही रख, ध्यान ही नहीं रहा कब आँख लग गयी।
सुबह पापा ने बताया कि चोपड़ा जी को कुछ बदमाशों ने चाकुओं से गोदकर मार डाला, चुपचाप बैठा सुनता रहा और कालेज के लिए निकल गया।
कालेज में सारा दिन दिमाग में, मैदान में हुई घटना और चोपड़ा अंकल की बातें घूमती रही पर किसी को भी बताने की हिम्मत ही नहीं हुई और शाम को जल्दी ही घर के लिए निकल गया।
घर पहुँच दरवाजा खटखटाया पर बहुत देर तक किसी ने जब दरवाजा नहीं खोला तो सामने वाले अंकल बोले,
"पवन घर पर कोई नहीं है, चोपड़ा जी की पत्नी आई.सी.यू में भर्ती हैं।"
"अरे ! आंटी को क्या हुआ?"
"ज्यादा तो नहीं बताया तुम्हारे पापा ने, बता रहे थे कि उनकी पत्नी सदमे में हैं। उनको चोपड़ा जी की आवाजें सुनाई देती हैं।" घर की चाबी देते हुए वह बोले।
घर के अंदर पहुंच डर पर काबू पाने के लिए टी.वी. चालू कर दिया। तकरीबन दो-तीन घंटे बाद दरवाजे पर खटखटाने की आवाज सुनी तो चौंक गया और आवाज दे कर पूछा, तो छोटी बहन हास्पिटल से वापस आई थी। खाना खाते हुए आंटी के साथ हुई घटना के बारे में बता रही थी पर तब भी हिम्मत नहीं हुई कि बहन को अपने साथ हुए किस्से को बता सकूँ, तभी बहन बोली, "भैया आज यहीं बाहर वाले कमरे में सो जाते हैं, मुझे तो आंटी की हालत देख बहुत डर लग रहा है।" मैंने सहमति में सिर हिलाया तो बहन दीवान पर सो गई और मैं भी पास पड़े सोफे पर लेट गया।
अचानक रात को खट-खट की आवाज सुनकर मेरी आँख खुली, बहन को जगाने के लिए जैसे ही लाइट जलाई और पलटा तो देखा बहन की जगह चोपड़ा अंकल दीवान पर लेटे हुए हैं मेरी तो जुबान हलक में ही अटक गई।
सामने अंकल गुस्से से आँखें लाल किये हुए घूरते हुए बोले, " क्यों, क्या हुआ? डर गए... तुम्हारा यही डर मेरी मौत के लिए जिम्मेदार है... कल तुमने अगर अपने डर पर काबू पाकर थोड़ा पीछे आकर देख लिया होता तो शायद आज मैं जिंदा होता क्योंकि तुम्हारे जाते ही कुछ बदमाशों ने मुझे लूट कर चाकू से मार दिया ....अब तो तुम्हारे इस बेवजह डर का अंत तुम्हारी मौत के साथ होगा ...।"
इतना सुन पवन लड़खड़ाते हुए फर्श पर बेहोश हो गिर पड़ा...