डॉक्टर डूलिटल - 1.14

डॉक्टर डूलिटल - 1.14

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लोगों ने त्यानितोल्काय को कभी नहीं देखा, क्योंकि त्यानितोल्काय लोगों से डरते हैं: किसी आदमी को देखा नहीं कि – फ़ौरन झाड़ियों में छुप जाते हैं !

दूसरे जानवरों को तो आप पकड़ सकते हैं, जब वे सो रहे हों या उन्होंने अपनी आँखें बन्द की हों। आप पीछे से उनके पास पहुँचकर उन्हें पूँछ से पकड़ सकते हैं। मगर त्यानितोल्काय के पास आप पीछे से पहुँच ही नहीं सकते, क्योंकि त्यानितोल्काय के पीछे भी बिल्कुल वैसा ही सिर होता है, जैसा सामने होता है।

हाँ, उनके दो सिर होते हैं: एक आगे, दूसरा पीछे।                         

जब उन्हें सोना होता है तो पहले एक सिर सोता है, और फिर दूसरा।

वह पूरा का पूरा एकदम कभी भी नहीं सोता। एक सिर सोता है, दूसरा इधर-उधर देखता है जिससे कोई शिकारी दुबकते हुए न आ जाए। इसीलिए एक भी शिकारी आज तक किसी त्यानितोल्काय को पकड़ नहीं पाया; इसीलिए यह जानवर न तो किसी सर्कस में, न ही किसी ज़ू-पार्क में दिखाई देता है।

बन्दरों ने डॉक्टर डूलिटल  के लिए एक त्यानितोल्काय को पकड़ने का निश्चय किया।

वे जंगल की गहराई में भागे और वो जगह ढूँढ़ निकाली जहाँ त्यानितोल्काय आराम कर रहा था।

उसने बन्दरों को देखा और लगा भागने, मगर उन्होंने उसे चारों ओर से घेर लिया, उसके सींग पकड़ लिए और बोले:

 “प्यारे त्यानितोल्काय ! क्या तुम डॉक्टर डूलिटल  के साथ दूर-दूर के देस में जाकर उसके घर में दूसरे जानवरों के साथ रहना पसन्द करोगे? वहाँ तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा: पेट भरा रहेगा, ख़ुश रहोगे।”

त्यानितोल्काय ने दोनों सिर हिलाए और दोनों मुखों से कहा:

“नहीं !”

“डॉक्टर बहुत भला है,” बन्दरों ने कहा। “वह तुम्हें हनीकेक खिलाएगा, और, अगर तुम बीमार पड़ गए, तो तुम्हें बिल्कुल ठीक कर देगा।”

“फिर भी,” त्यानितोल्काय ने कहा, “ मैं यहीं रहना चाहता हूँ।”

तीन दिन तक बन्दर उसे मनाते रहे, और आख़िर में त्यानितोल्काय ने कहा:

“मुझे इस क़ाबिले तारीफ़ डॉक्टर को दिखाओ। मैं उसे देखना चाहता हूँ।”

बन्दर त्यानितोल्काय को उस घर पे ले गए जहाँ डॉक्टर रहता था, और उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया।

“अन्दर आ जाओ,” कीका ने कहा।

चीची बड़े गर्व से दो सिरों वाले जानवर को कमरे के भीतर लाई।

“ये क्या है?” डॉक्टर ने अचरज से पूछा।

उसने ऐसी आश्चर्यजनक चीज़ पहले कभी नहीं देखी थी।

“ये त्यानितोल्काय है,” चीची ने जवाब दिया। “वह तुमसे मिलना चाहता है।

त्यानितोल्काय हमारे अफ्रीका के जंगलों का सबसे बिरला जानवर है। इसे अपने साथ जहाज़ पर ले जाओ, और अपने घर में रहने दो।”

“मगर क्या ये मेरे साथ आना चाहता है?”

“मैं बड़ी ख़ुशी से तुम्हारे साथ चलूंगा,” अचानक त्यानितोल्काय ने कहा। “मैंने फ़ौरन देख लिया कि तुम भले इन्सान हो: तुम्हारी आँखें इतनी दयालु हैं। जानवर तुमसे कितना प्यार करते हैं ! और मुझे ये भी मालूम है कि तुम भी जानवरों से प्यार करते हो। मगर मुझसे वादा करो कि अगर तुम्हारे यहाँ मेरा दिल न लगा तो तुम मुझे वापस घर छोड़ दोगे।”

“बेशक, छोड़ दूँगा,” डॉक्टर ने कहा। “मगर तुम्हें वहाँ इतना अच्छा लगेगा, कि तुम वापस आना ही नहीं चाहोगे।”

“सही है, सही है ! ये बिल्कुल सच है !” चीची चिल्लाई। “डॉक्टर इतना ख़ुश मिजाज़, इतना बहादुर है ! उसके घर में हम कितनी आज़ादी से रहते हैं ! और पड़ोस में ही, दो क़दम की दूरी पे, रहते हैं तान्या और वान्या – वे, तुम देखना, तुम्हें इतना ज़्यादा प्यार करेंगे, कि तुम्हारे पक्के दोस्त बन जाएँगे।”

“अगर ऐसी बात है, तो मैं तैयार हूँ। मैं चलूंगा !” त्यानितोल्काय ने ख़ुशी से कहा और बड़ी देर तक कभी एक, तो कभी दूसरा सिर हिलाता रहा।


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