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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Others

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Others

डायरी जून 22

डायरी जून 22

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आज तो गजब हो गया 


सखि, 

आज तो गजब हो गया। तुम तो जानती ही हो कि आजकल मेरी पोस्टिंग अजमेर चल रही है। इसलिए मैं हर सोमवार को जयपुर से सुबह आठ बजे निकल पड़ता हूं और हर शुक्रवार को शाम तक जयपुर वापस आ जाता हूं। आज भी मुझे सुबह जाना था। नहा धोकर, पूजा अर्चना कर और थोड़ा नाश्ता करके अजमेर जाने को तैयार हुआ। 


सामने ही मोबाइल पड़ा हुआ था , उसे उठाया और जेब में डालकर चल दिए। हमारी कार करीब दस पंद्रह किलोमीटर ही चली होगी कि जेब में रखा मोबाइल घनघना उठा। हमने कौतूहल से मोबाइल उठाया और देखा तो कुछ समझ में नहीं आया। स्क्रीन पर HS Goyal लिखा नजर आ रहा था। हम चकराये, थोड़ा घबराये और माजरा कुछ समझ नहीं पाये। ये एच एस गोयल, एच एस गोयल को क्यों फोन कर रहा है ? 


हमने आश्चर्य से फोन रिसीव किया तो श्रीमती जी की मिसरी सी मीठी आवाज सुनाई दी "आप अपना मोबाइल तो यहीं पर छोड़ गए और मेरा ले गए।" 


अब जाकर माजरा समझ में आया। होता है, ऐसा भी होता है। अब पक्का यकीन हो गया कि सरकार साठ साल की उम्र में क्यों रिटायर कर देती है ? पर अभी तो तीन महीने बाकी हैं रिटायर्मेंट में। अभी से ये हाल है तो बाद में क्या होगा ? सच में चिन्ता होने लगी। 


पर जिस बात की चिन्ता होनी चाहिए थी उसका क्या ? अरे भाई, मोबाइल श्रीमती जी के हाथ लग गया था और उन्हें पासवर्ड भी पता था। तो क्या आज हमारी पोल खुलने वाली थी। दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई थी। सोचा कि गाड़ी वापस घुमा लें। पता नहीं क्या होगा आज ? 


लेकिन अगले ही पल मन ने कहा "क्या होगा ? दो चार फोन ऑफिस के आयेंगे। उन्हें अटेंड करते करते देवी जी बोर हो जाएंगी। कुछ फोन हमारे यार दोस्तों के आएंगे। देवी जी की आवाज सुनकर वे भी सोच में पड़ जायेंगे कि मेरा "जेण्डर" बदल गया है क्या ?"


पर मुझे कितना नुकसान होगा, यह अंदाजा लगाना मुश्किल है। मैं रास्ते में "बहू पेट से है" धारावाहिक की अगली कड़ी लिखने वाला था, वो रह जाएगी। एक हास्य व्यंग्य की रचना लिखनी थी, वो भी रह जाएगी। और, आज की रचना "पथ का पत्थर" पर पाठकों की समीक्षाएं भी नहीं पढ़ पाऊंगा। इसके अलावा और क्या होगा ? 


एक दिन मोबाइल से दूर रहना बहुत भारी पड़ता है ना सखि, यह आज महसूस हुआ। मोबाइल किस कदर हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गया है , यह तभी पता चलता है जब हम उससे दूर रहते हैं। मैंने तो महसूस किया है कि मोबाइल, लेखन और गायन तीनों ही मेरी जिंदगी के अटूट हिस्से हैं। इनके बिना अब गुजारा नहीं है। 


वो तो आज मुझे शाम को वापस जयपुर आना था इसलिए कोई बड़ी बात नहीं थी। वर्ना मोबाइल लेने वापस आना ही पड़ता। हर हाल में। शाम को वापस आकर सबसे पहले मोबाइल ही हाथ में लिया, जल भी उसके बाद ही ग्रहण किया।



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