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PASSIONATELY PØËT

Drama Inspirational

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Drama Inspirational

दादा जी and me

दादा जी and me

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यह कहानी है मेरी मेरे वास्तविक जीवन से संबंधित इस कहानी में मैं यह साफ-साफ देख पा रहा हूं कि मेरे दिमाग ने लोगों की सोचने कैसे मेरे ऊपर असर किया है जो कि मेरी ताकतों को बढ़ने से रोक रहा है।


यह वाक्य मेरे साथ तब हुआ जब मैं अपने नानी के घर से अपने घर जा रहा था,, मेरा घर ज्यादा दूर नहीं था रास्ते में एक बाजार पड़ती है मजार के उस तरफ नानी का घर है बाजार की दूसरी तरफ मेरा घर मैं पैदल था मुझे टेंपो से जाना था घर मैंने एक ई-रिक्शा किया जिसको फोड़े दादा चलाने वाले थे वहां पर कई सारे रिक्शा लगे थे जिससे मुझे अपने राज्य की बेरोजगारी पर तरस आ रहा था तो मैं दादा की रिक्शा पर बैठा क्योंकि घर पर सब लोग बात कर रहे थे कि e-रिक्शावाला पूरी दूरी का घर तक का ₹40 लेता है लेता है और किराया काफी महंगा पड़ता है। मैंने सोचा पहले बाजार तक ₹10 में चलता हूं फिर उसके बाद मजार से रिक्शा बदलकर अपने घर तक ₹10 में चला जाऊंगा ऐसे मैं अगर मुझे 15,15 रुपे देने पड़ जाए तो ₹10 बचेगा तो फिर मैं दादा के रिक्शा पर बैठ गया और बीच के चौक तक का ₹10 कहने लगा दादाजी ने कहा नहीं 15 तो लगेगा ही मैंने कहा अरे दादा ₹10 में ले चलो,, नहीं तो कहीं और e-रिक्शे में मैं देखता हूं मैंने सोचा आप बुजुर्ग हैं आपके e-रिकशे पर बैठता हूं।


दादा ने थोड़ी देर सोचा और फिर कहां अच्छा ठीक है बैठो बच्चा और मुझे अंदर ही अंदर खुद पर नाज हो रहा था मैंने सोचा मेरी ₹20 मैं घर तक पहुंचने वाली टेक्निक काम कर जाएगी लगता है, तो फिर एक गद्दी पर बैठा और दूसरे गद्दी पर पैर फैला कर रखा फिर मैंने कान में लीड लगाई और गाना सुनने लगा और बाहर के नजारे देखने लगा चौक दो-तीन किलोमीटर दूर थी रास्ते में क्रॉसिंग आई मैं देख रहा था चौक के पास पहुंचने पर काफी भीड़ हो चुकी थी फिर चौक जब आई तो मैंने सोचा e-रिक्शा बदलने से अच्छा है दादा जी से पूछता हूं क्या वह मेरे घर तक दो 3 किलोमीटर आगे और ₹10 में चलने को तैयार होंगे या नहीं तो मैंने दादा जी से पूछा कि दादा जी आप मेरे घर तक ₹10 में चलेंगे या नहीं तो उन्होंने कहा नहीं कम से कम ₹15 तो लगेंगे ही लेकिन मैं मन ही मन जानता था कि ये चलेंगे क्योंकि वहां अगल-बगल बहुत ढेर सारी रिक्षित है और कोई सवारी नहीं थी तो मैंने कहा अगर ₹10 में चलिए तो ठीक है वरना मैं रिक्शा बदल लेता हूं तो फिर दादा ने कहा अच्छा चलो ठीक है चलता हूं।


मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था मैं अब ₹20 में आसानी से अपने घर तक पहुंचने वाला था मैंने सोचा घर जाकर सबको यह कहानी सुनाऊंगा तो सब दंग रह जाएंगे मेरा थोड़ा और भौकाल बनेगा फिर सबको मैं यह बता दूंगा तो सब लोग ₹20 में घर जाने को सोचेंगे, तो फिर से मैंने अपने कान में लीड लगाई और गाना सुनने और मेरे गाने के लिस्ट में सभी गाने एक ही प्लेयर में भरे हुए हैं इमोशनल लव पेट्रियोटिक मोटिवेशनल तो फिर अचानक से एक इमोशनल सॉन्ग आया मैं सुनने लगा मैं सोच ही रहा था कि ₹20 में घर पहुंच जाऊंगा और मैं पहुंचने भी वाला था तभी मेरे मन में एक ख्याल आया कि दादाजी ने सुबह से केवल ₹20 कमाया है और यह रिक्शा चला रहे हैं इनकी भी मजबूरी होगी इनके भी नीचे कई लोग का पेट इनके द्वारा भर रहा होगा तो फिर मैंने सोचा कि मुझे तो पैसे का कुछ काम भी नहीं है कहीं पर जाकर समोसा खा लूंगा कुछ भी करके उड़ा दूंगा 10/ ₹20 मुझे फर्क नहीं पड़ेगा और मेरे पास समय भी भरपूर था तो मैंने सोचा की यह रुपए जिसके पास होने चाहिए उसके पास क्यों नहीं है मैं थोड़ा सोच में पड़ गया इमोशनल हो गया मुझे मेरी चालाकी पर बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे मेरे घर में होने वाली बातों पर गुस्सा आ रहा था कि रिक्शेवाले बहुत पैसे लेते हैं लगभग 11:30 बज चुकी थी और दादाजी की पहली कमाई ₹20 थी उस दिन की कहानी तो फिर मुझे यह भी बहुत दुख हो रहा था कि मैंने दादाजी से पंद्रह ₹15 कम करवा करके 10 ₹10 में यात्रा की है मैं कितना गिरा हुआ इंसान हूं कमजोर की कमजोरी का दूसरे की मजबूरी का फायदा फायदा उठा रहा था जबकि मैंने यह सोचा था कि मैं बहुत दिमाग भरा काम कर रहा हूं और यह जानकर मेरे घरवाले मुझे शाबाशी देंगे और बचे हुए ₹20 में कहीं कुछ खा कर उड़ा दूंगा तो फिर इतना सोचने में घर के बाहर की रोड आ चुकी थी और मुझे उतरना था फिर मैंने दादा जी को ₹50 दिए और फिर दादा जी मुझे पैसे वापस करने के लिए अपनी पुरानी नोटों को गिनने लगे उनको₹30 वापस करने थे और फिर उन्होंने मुझको ₹30 वापस किया और और फिर मैंने सोचा चलो रहने दो दुनिया में यह सब होता रहता है ₹20 का कोई टॉफी चॉकलेट लेता हूं घर पर चाचा के बच्चों को खरीद कर दे दूंगा तो फिर मेरे मन में ख्याल आया कि दूसरे की मजबूरी का फायदा उठाने से कमाए हुए पैसे को बच्चे की कोमल पेट में पेट में जाने से क्या फायदा।

  

   दादा जी वही खड़े थे दूसरी कोई सवारी ढूंढ रहे थे मुझे खुद की सोच पर बहुत पछतावा हो रहा था मुझे मेरा दिल कह रहा था बेटा तुमने पढ़ लिखकर बहुत ज्यादा दिमाग दारी सीख ली है तुमसे अच्छा तो कोई अनपढ़ ही सही है मैं खुद ही खुद को घुसने लगा था वही खड़े-खड़े 1 मिनट से तो फिर मैं दादा जी के पास गया उनको मैंने ₹20 और दिए और हाथ जोड़ा माफी मांगी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं कुछ भी दादाजी के सामने बोल पाऊं क्योंकि उनको पता था कि मैं कितना धूर्त इंसान हूं,, फिलहाल मैं तो यही सोच रहा था खुद को तो दादा जी ने कहां अरे ठीक है बच्चा तुम जाओ खुश रहो सब लोग ऐसे ही करते हैं बल्कि तुमने वापस कर दिया पैसा यही अच्छी बात है मेरी आंखें भर आई थी और फिर मैं अंदर ही अंदर बहुत खुश था।


मैंने अपनी चालाकी को उस समय ध्यान से और सर किया और मुझे खुद पर बहुत तरस आ रही थी मैं खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहा था मुझे खुद से नफरत हो रही थी कि मेरे पास पैसे होते हुए भी मैंने यह काम किया फिर मैं घर आया फिर घरवालों ने पूछा कितना किराया लगा तो मैंने बताया 15 15 रुपया लगा तो फिर मम्मी ने कहा ठीक तो है, लेकिन वह यह कहानी नहीं जानते आपे कहां नहीं जानते हो कि मैं ₹40 देकर घर आया था।


           उस दिन मैंने खुद को बेवकूफ बनाया था लेकिन खुद को जिताया था मुझे पता था कि अगर मैं ₹20 देकर घर जाऊंगा तो मैं रात को सो नहीं पाऊंगा मुझे पता चला कि कैसे मेरा दिमाग मेरे साथ कितना बड़ा खेल खेलने वाला था लेकिन मैं बाल-बाल बचा मैंने खुद ही खुद को खंजर मारने वाला था और ₹20 के चक्कर में मेरा बुजुर्गों के प्रति और बुजुर्गों का बच्चों के प्रति सम्मान ही चला जाता और उसके बदले में मुझे मिलता क्या केवल 20।


हम अपने जीवन में ऐसे छोटे-छोटे बहुत लड़ निर्णय लेते हैं अगर इन सभी निर्णय को अगर हम इमोशनल तरीके से लें तो काफी हम स्ट्रांग बनेंगे और इसमें इतने भी पैसे खर्च नहीं होते कि जो कि हमारे जीवन चर्या को प्रभावित करें।


तो मुझको लगता है यह सभी के जिंदगी में होता होगा हम लोग छोटी-छोटी बातों पर बहस करने लगते हैं अगले से लड़ने लगते हैं और अपना मूड खराब कर लेते हैं जिसका असर हमारी सोच और जीवन पर बहुत पड़ता है लेकिन इसको हम लोग महसूस नहीं कर पाते।


कैसा लगा पढ़कर आपको जरा कमेंट बॉक्स में कमेंट करें।



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