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Charumati Ramdas

Drama

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Charumati Ramdas

Drama

चर्चा:मास्टर&मार्गारीटा33.1

चर्चा:मास्टर&मार्गारीटा33.1

7 mins
286

उपसंहार

वोलान्द के मॉस्को से जाने के साथ हर चीज़ समाप्त नहीं हो गई। वह अफ़वाहों के माध्यम से लम्बे समय तक लोगों की याददाश्त में रह गया। अफ़वाहें देश के दूर-दराज़ के इलाकों तक फैल गई थीं।

अनेक गिरफ़्तारियाँ की गईं। वे लोग जिनके नाम कोरो- या वोल- से आरम्भ होते थे, अपरिहार्य रूप से गिरफ़्तार कर लिए गए: इनमें नौ कोरोविन, चार कोरोव्किन, दो कोरोवायेव थे; वोल्मन, वोल्पेर, वोलोदिन, वोलोख, वेत्चिन्केविच। भी गिरफ़्तार किए गए। यह बात बुल्गाकोव व्यंग्य से नहीं कह रहे हैं, ऐसा उन दिनों वाक़ई में होता था जब एक ही नाम के सैंकड़ों आदमियों को बन्द कर दिया जाता था ताकि असली मुजरिम छूट न जाए।

बहुत सी बिल्लियों को भी पकड़ा गया।

पिछले तीन दिनों की घटनाओं के कारणों को समझाने की कोशिश की गई और यह बताया गया कि मॉस्को में लुटेरों का एक बहुत ही ताक़तवर गैंग आया था जो विशेष प्रकार की सम्मोहन-विधियाँ भी जानता था।

इस तरह काफ़ी सारी चीज़ें समझा दी गईं।उन्होंने स्वीकार किया कि मॉस्को में कोई था तो ज़रूर, जो इन सब घटनाओं का संचालन कर रहा था : ग्रिबोयेदोव-भवन का आग में नष्ट होना; बेर्लिओज़ और सामंत माइकेल की हत्या – इन घटनाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता था; उन्होंने कहा कि मार्गारीटा और नताशा को उनकी सुन्दरता के कारण अगवा कर लिया गयाजो बात वे समझा नहीं पाए वह थी स्त्राविन्स्की के क्लीनिक से 118 नं। के मरीज़ का अजीब तरीक़े से गायब हो जाना, जिसका नाम तक किसी को मालूम नहीं था।

आइए, बुल्गाकोव के जादुई शब्दों में परिस्थिति को जानें:

“मगर जिस बात का कोई प्रमाण नहीं पाया जा सका, वह यह थी कि मानसिक रूप से बीमार, अपने आपको मास्टर कहने वाले व्यक्ति को ये मण्डली अस्पताल से उड़ाकर क्यों ले गई। इसकी वजह वे नहीं ढूँढ़ सके और न ही पता लगा सके उस मरीज़ के नाम का। वह ‘नम्बर एक सौ अठारह’ वाले सम्बोधन के साथ ही हमेशा के लिए गुम हो गयाइस तरह हर चीज़ समझा दी गई और जाँच का काम खत्म हो गया, वैसे ही जैसे और सब कुछ खत्म होता है।कुछ साल बीत गए। लोग वोलान्द को, कोरोव्येव को और अन्य लोगों को भूलने लगे। वोलान्द और उसकी मण्डली के कारण दुःख पाए लोगों के जीवन में कई परिवर्तन हुए और ये परिवर्तन कितने ही मामूली क्यों न रहे हों, उनके बारे में बता देना अच्छा रहेगा।

उदाहरण के लिए, जॉर्ज बेंगाल्स्की अस्पताल में तीन महीने बिताने के बाद ठीक हो गया और घर भेज दिया गया, मगर उसे वेराइटी की नौकरी छोड़नी पड़ी; और वह भी खास तौर से भीड़ के सीज़न में, जब जनता टिकटों के लिए टूटी पड़ रही थी – काले जादू और उसका पर्दाफाश करने वाली बात की स्मृतियाँ एकदम ताज़ा थीं। बेंगाल्स्की ने वेराइटी छोड़ दिया, क्योंकि वह समझ गया कि हर शाम दो हज़ार दर्शकों के सामने जाना, हर हालत में पहचान लिए जाना और इस चिढ़ाते हुए सवाल का सामना करना कि उसके लिए क्या अच्छा रहेगा : सिर वाला शरीर या बिना सिर वाला? – यह सब बड़ा पीड़ादहाँ, इसके अलावा सूत्रधार अपनी खुशमिजाज़ी भी खो बैठा, जो उसके पेशे के लिए निहायत ज़रूरी है। उसे एक अप्रिय और बोझिल आदत पड़ गई : हर पूर्णमासी की रात को वह व्याकुल होकर अपनी गर्दन पकड़ लेता, भय से इधर-उधर देखता और फिर रो पड़ता। यह सब धीरे-धीरे कम होता गया, मगर उनके रहते पुराने काम को करना असम्भव ही था; इसलिए सूत्रधार ने वह नौकरी छोड़ दी, वह खामोश जीवन बिताने लगा, अपनी बचत पर जीने लगा, जो उसकी साधारण जीवन शैली की बदौलत पन्द्रह वर्षों के लिए काफवह चला गया और फिर कभी भी वारेनूखा से नहीं मिला जो थियेटर प्रबन्धकों के बीच भी, अपनी अविश्वसनीय सहृदयता, शिष्ट व्यवहार, और हाज़िरजवाबी के कारण लोकप्रिय हो गया था। मुफ़्ट टिकट पाने वाले तो उसे ‘दयालु पिता’ कहकर ही बुलाते थे। कोई भी, कभी भी वेराइटी में फोन करे, हमेशा टेलिफोन पर नर्म, मगर उदास आवाज़ सुनाई देती, “सुन रहा हूँ” - और जब वारेनूखा को टेलिफोन पर बुलाए जाने की प्रार्थना की जाती तो वही आवाज़ जल्दी से आगे कहती, “मैं हाज़िर हूँ, कहिए क्या सेवा करूं।” मगर इवान सावेल्येविच अपनी शिष्टता के कारण भी दुःख उठाता रस्त्योपा लिखोदेयेव को भी अब वेराइटी में टेलिफोन पर बात नहीं करना पड़ता। अस्पताल से छूटने के फौरन बाद, जहाँ उसने आठ दिन बिताए थे, उसे रोस्तोव भेज दिया गया। वहाँ उसे एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर का डाइरेक्टर बना दिया गया। कहते हैं कि अब उसने पोर्ट वाइन पीना पूरी तरह छोड़ दिया है, और केवल वोद्का पीता है – वह भी बेदाने की, जिससे उसकी तबियत भी काफी अच्छी हो गई है। यह भी कहते हैं कि वह एकदम खामोश तबियत का हो गया है और औरतों से भी दूर रहता हस्तेपान बोग्दानोविच को वेराइटी से निकालकर रीम्स्की को इतनी खुशी नहीं हुई, जिसके वह पिछले कई सालों से इतनी अधीरता से सपने देखता रहा था। अस्पताल और किस्लोवोद्स्क के बाद बूढ़े, जक्खड़ बूढ़े, हिलते हुए सिर वाले वित्तीय डाइरेक्टर ने भी वेराइटी से बाहर जाने के लिए दरख्वास्त दे दी। मज़े की बात तो यह है कि इस दरख्वास्त को वेराइटी लेकर आई उसकी बीवी। ग्रिगोरी दानिलोविच को दिन में भी उस इमारत में जाने की हिम्मत नहीं हुई, जहाँ उसने चाँद की रोशनी में खिड़की के चटकते शीशे को देखा था और उस लम्बे हाथ को जो निचली सिटकनी की ओर बढ़ा आ रहवेराइटी छोड़कर वित्तीय डाइरेक्टर बच्चों के कठपुतलियों वाले थियेटर में आ गया। इस थियेटर में उसे ध्वनि संयोजन की समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता था, ज़ामस्क्वोरेच्ये में इस बारे में सम्माननीय अर्कादी अपोलोनोविच सिम्प्लेयारोव से बहस भी नहीं करनी पड़ती थी। उसे दो ही मिनट में ब्र्यान्स्क भेज दिया गया और मशरूम को डिब्बों में बन्द करने वाले कारखाने का डाइरेक्टर बना दिया गया। अब मॉस्कोवासी नमकीन लाल और सफेद मशरूम खाते हैं, और उनकी तारीफ करते नहीं थकते; वे इस तबादले से बेहद खुश हैं। बात तो पुरानी है और कह सकते हैं कि अर्कादी अपोलोनोविच से ध्वनि संयोजन का काम सँभलता ही नहीं था। उसने चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न की हो, वह जैसा था वैसा ही रहा।थियेटर से जिनका नाता टूटा उनमें अर्कादी अपोलोनोविच के अलावा निकानोर इवानोविच बोसोय को भी शामिल करना होगा, हालाँकि निकानोर इवानोविच का मुफ़्त के टिकटों को छोड़कर थियेटर से कोई वास्ता नहीं था। निकानोर इवानोविच अब कभी थियेटर नहीं जाता: न पैसों से, न मुफ़्त में; इतना ही नहीं, थियेटर का ज़िक्र छिड़ते ही उसके चेहरे का रंग बदल जाता है। थियेटर के अलावा उसे कवि पूश्किन से और सुयोग्य कलाकार साव्वा पोतापोविच कूरोलेसोव से भी बड़ी घृणा हो गई। उससे तो इतनी कि पिछले साल काली किनार के बीच यह समाचार देखकर कि साव्वा पोतापोविच अपने जीवन के चरमोत्कर्ष के काल में दिल के दौरे से परलोक सिधार गया – निकानोर इवानोविच का चेहरा इतना लाल पड़ गया कि वह स्वयँ भी साव्वा पोतापोविच के पीछे जाते-जाते बचा। वह गरजा, “उसके साथ ऐसा ही होना चाहिए!” इसके अलावा, उसी शाम को निकानोर इवानोविच ने, जिसे लोकप्रिय कलाकार की मृत्यु के कारण अनेक कड़वी बातें फिर से स्मरण हो आई थीं, अकेले, पूर्णमासी के चाँद के साथ सादोवाया में बैठ कर खूब शराब पी। हर जाम के साथ उसके सामने घृणित आकृतियों की श्रृंखला लम्बी होती जाती और इस श्रृंखला में थे दुंचिल सेर्गेइ गेरार्दोविच और सुन्दरी इडा हेर्कुलानोव्ना, और वह लाल बालों वाला लड़ाकू हंसों का मालिक, और स्पष्टवक्ता कानाव्किन निऔर उनके साथ क्या हुआ? गौर फरमाइए! जैसे कुछ हुआ ही नहीं, और हो भी नहीं सकता, क्योंकि उनका अस्तित्व ही नहीं था; जैसे कि खूबसूरत कलाकार सूत्रधार का, और खुद थियेटर का, और बूढ़ी बुआजी पोरोखोव्निकोवा का जिसने तहखाने में विदेशी मुद्रा छुपाई थी; और, बेशक, सुनहरी तुरहियाँ नहीं थीं, न ही थे दुष्ट रसोइए। निकानोर इवानोविच को शैतान कोरोव्येव के प्रभाव से इनका केवल सपना आया था। सिर्फ एक जीता-जागता इन्सान जो इस सपने में उपस्थित था, वह था केवल साव्वा पोतापोविच – कलाकार, और वह इस सपने से इसलिए जुड़ा था, क्योंकि वह निकानोर इवानोविच की स्मृति में अपने रेडियो कार्यक्रमों के कारण गहरे पैठ गया था। वह था, बाकी के नहीं थेइसका मतलब है कि अलोइज़ी मोगारिच भी नहीं था? ओह, नहीं! वह न केवल तब था, बल्कि अब भी है; उसी पद पर जिसे रीम्स्की ने छोड़ा था, यानी वेराइटी के वित्तीय डाइरेक्टर के पद पर।


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