चर्चा: मास्टर&मार्गारीटा 26.3

चर्चा: मास्टर&मार्गारीटा 26.3

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अध्याय - 26।3 

अफ्रानी ने हौले से कहा, “मैं यह बात सोच भी नहीं सकता कि जूडा शहर की सीमा में, चहल-पहल में किसी सन्देहास्पद व्यक्तियों के हाथों में पड़ेगा। सड़क पर छिपकर मारना सम्भव नहीं है। इसका मतलब है, उसे फुसलाकर किसी तहख़ाने में ले जाया गया। मगर मेरे सैनिकों ने उसे निचले शहर में ढूँढ़ा, और ढूँढ़ ही लिया होता। मगर वह शहर में नहीं है, इस बात की मैं हामी देता हूँ। अगर उसे शहर से दूर मारा जाता तो पैसों वाली यह थैली इतनी जल्दी धर्मगुरू के घर नहीं फेंकी जाती। वह शहर के नज़दीक ही मारा गया है। उसे शहर से बाहर ले जाने में वे कामयाब हो गये।"

“मैं समझ नहीं पा रहा, यह कैसे हुआ होगा।”

 “हाँ, न्यायाधीश, पूरी घटना में यही सबसे कठिन प्रश्न है और मैं नहीं जानता कि मैं उसे सुलझा सकूँगा या नहीं।”

 “सचमुच, पहेली ही है! त्यौहार की रात को, एक ईश्वर में विश्वास रखने वाला प्रार्थना और दावत को छोड़कर न जाने क्यों शहर से बाहर जाता है, और वहाँ ख़त्म हो जाता है। उसे कौन, कैसे फुसला सका? कहीं यह किसी औरत का काम तो नहीं है?” न्यायाधीश ने अचानक जोश से पूछ लियाअफ्रानी ने शांति से ज़ोर देते हुए कहा, “किसी हालत में नहीं, न्यायाधीश। यह सम्भावना तो है ही नहीं। ज़रा तर्कसंगत ढँग से देखिए। जूडा को मारने में किसे दिलचस्पी थी? कोई आवारा स्वप्नदर्शी ही हो सकता है, कोई ऐसा समूह, जिसमें कोई औरत थी ही नहीं। शादी करने के न्यायाधीश, चाहिए; मानव को पृथ्वी पर लाने के लिए उनकी ज़रूरत है; मगर एक औरत की सहायता से किसी आदमी की हत्या करने के लिएतो बहुत सारे धन की आवश्यकता होती है, और किसी भी घुमक्कड़ के पास इतना धन नहीं है। इस काम में औरत थी ही नहीं, न्यायाधीश, मैं तो यह भी कहूँगा कि इस दिशा में सोचने से मैं दिशा में हटकर भूलभुलैया में पड़ जाऊँगा।

“मैं देख रहा हूँ कि आप एकदम सही हैं, अफ्रानी,” पिलात ने कहा, “मैं तो सिर्फ मन की बात कह रहा था।”

 “मगर, अफ़सोस, यह बात गलत है, न्यायाधीश।” “तो फिर, तो फिर क्या ?” न्यायाधीश उत्सुकतावश अफ्रानी के चेहरे की ओर देखते हुए चहका।

 “मैं समझता हूँ कि वही धन ही इसका कारण है।”

 “बहुत अच्छा ख़याल है! मगर शहर के बाहर रात को उसे किसने पैसे देने की बात कही होगी?” 

“ओह नहीं, न्यायाधीश, ऐसा नहीं है। मेरा सिर्फ एक ही निष्कर्ष है और यदि वह गलत है तो और कोई निष्कर्ष मैं नहीं निकाल सकता,” न्यायाधीश के निकट झुककर फुसफुसाया, “जूडा अपने धन को किसी सुनसान जगह पर छिपाना चाहता था, जिससे सिर्फ वही परिचित था।”

 “बहुत बारीकी से समझा रहे हैं। शायद ऐसा ही हुआ होगा। अब समझ रहा हूँ: उसे लोगों ने नहीं, अपने ही ख़यालों ने फुसलाया। हाँ, ऐसा ही है।” 

 “हाँ, मैं पूछना भूल गया। ”न्यायाधीश ने माथा पोंछते हुए कहा, “उन्होंने कैफ का पैसा वापस कैसे फेंका?”

 “देखिए, न्यायाधीश। यह इतना कठिन नहीं है। बदला लेने वाले कैफ के महल के पिछवाड़े गए, जहाँ से एक गली निकलती है। वहीं उन्होंने चारदीवारी के ऊपर से थैली फेंक दी।” 

 “चिट्ठी के साथ ?”“हाँ, ठीक वैसा ही जैसा आपने कहा था, न्यायाधीश। हाँ, देखिए,” अफ्रानी ने थैली पर लगी मुहर तोड़कर उसके अन्दर की चीज़ें पिलात को दिखाईं।।क्ष

"मेरे इस प्रश्न के जवाब में कि कैफ के महल से किसी को पैसा तो नहीं दिया गया, उन्होंने दृढ़ता से कहा कि ऐसा नहीं हुआ।"

 “ओह, यह बात है? हो सकता है, जब कह रहे हैं कि नहीं दिया, तो शायद नहीं दिया होगा। तब तो हत्यारों को ढूँढ़ना और भी मुश्किल हो जाएगा।”

“बिल्कुल ठीक कहते हैं, न्यायाधीश।”

“हाँ, अफ्रानी, अचानक मुझे ख़याल आया कि कहीं उसने आत्महत्या तो नहीं की?”

“ओह, नहीं, न्यायाधीश!” विस्मय से कुर्सी की पीठ से टिकते हुए अफ्रानी ने जवाब दिया, “माफ कीजिए, मगर यह बिल्कुल असम्भव है!”

“आह, इस शहर में सब सम्भव है! मैं बहस करने के लिए तैयार हूँ कि कुछ देर बाद यह अफ़वाह पूरे शहर में फैल जाएगी।”

अब अफ्रानी ने अपनी विशिष्ट नज़र से न्यायाधीश की ओर देखा और सोच कर बोला, “यह तो हो सकता है, न्यायाधीश।”

अफ्रानी समझ गया था कि जूडा की मृत्यु के कारण का कैसा प्रचार करना चाहिए।

और इस तरह बुल्गाकोव पाठकों को जूडा की मृत्यु के पवित्र बाइबल में दिए गए वर्णन पर ले आते हैं।

इसके बाद अफ्रानी तीनों अभियुक्तों को दफ़नाने का विवरण देता है। वह कहता है कि लेवी मैथ्यू येशुआ के शरीर को उठाकर एक गुफ़ा में ले गया था और उसे छोड़ने को तैयार ही नहीं था। उसे यक़ीन दिलाया गया कि येशुआ को विधिपूर्वक दफ़नाया जाएगा, तब जाकर अंतिम संस्कार पूरा हुआ।

पिलात लेवी मैथ्यू से मिलता है और उनके बीच यह बातचीत होती 

“क्या बात है?” पिलात ने उससे पूछा।

“कुछ नहीं,” लेवी मैथ्यू ने जवाब दिया और ऐसी मुद्रा बना ली मानो कुछ निगल रहा हो। उसकी कमज़ोर, नंगी, गन्दी गर्दन कुछ फूलकर फिर सामान्य हो गई।

 “तुम्हें हुआ क्या है, जवाब दो,” पिलात ने दुहराया। 

“मैं थक गया हूँ,” लेवी ने जवाब दिया और निराशा असे फर्श की ओर देखने लगा।

 “बैठो,” पिलात ने उसे विनती के भाव से देखकर कुर्सी की ओर इशारा कर दिया।

लेवी ने अविश्वास से पिलात की ओर देखा, वह कुर्सी की तरफ बढ़ा। डरते-डरते उसने सुनहरे हत्थों को छुआ और फिर कुर्सी के बजाय उसके निकट ही फर्श पर बैठ गया।

“बताओ, तुम कुर्सी पर क्यों नहीं बैठे?” पिलात ने पूछा।

 “मैं गन्दा हूँ, मेरे बैठने से कुर्सी गन्दी हो जाएगी।” लेवी ने ज़मीन की ओर देखते हुए जवाब दिया।

“अभी तुम्हें कुछ खाने को देंगे।”

 “मैं खाना नहीं चाहता,” लेवी ने जवाब दिया।

 “झूठ क्यों बोलते हो?” पिलात ने शांतिपूर्वक पूछा, “तुमने पूरे दिन कुछ नहीं खाया है, शायद और भी ज़्यादा। ठीक है, मत खाओ। मैंने तुम्हें इसलिए बुलाया कि तुम्हारा चाकू देख सकूँ।”

 “जब मुझे यहाँ ला रहे थे तो सिपाहियों ने उसे छीन लिया।” लेवी ने जवाब देकर निराशापूर्वक कहा, “आप मुझे वह वापस दे दीजिए। मुझे उसे उसके मालिक को लौटाना है। मैंने उसे चुराया था।”

“किसलिए?”

 “ताकि रस्सियाँ काट सकूँ,” लेवी ने जवाब दिया।

“मार्क!” न्यायाधीश चीखा, और सेनाध्यक्ष स्तम्भों के नीचे प्रकट हुआ, “इसका चाकू मुझे दो।”

सेनाध्यक्ष ने कमर में बँधी दो म्यानों में से एक से गन्दा ब्रेड काटने वाला चाकू निकाला और न्यायाधीश को दे दिया, और स्वयँ दूर हट गया।

“चाकू लिया कहाँ से था?”

 “खेव्रोन्स्की दरवाज़े के पास वाली ब्रेड की दुकान से, जैसे ही शहर में दाखिल होते हैं। दाहिनी ओर। ”

पिलात ने चौड़े फल की ओर देखा। उँगली से उसकी धार आज़माई, न जाने क्यों, और कहा, “चाकू की फिक्र मत करो, वह दुकान में लौटा दिया जाएगा। अब मुझे दूसरी बात बताओ: मुझे तुम वह बस्ता दिखाओ जिसे तुम साथ लिए घूमते हो, और जिस पर येशू के शब्द लिखे हैं!”

लेवी ने घृणा से पिलात की ओर देखा और इतनी कड़वाहट से मुस्कुराया कि उसका चेहरा विकृत हो गया।

“सब कुछ छीन लोगे? उसकी आख़िरी निशानी भी, जो मेरे पास है?” उसने पूछा।

“मैंने तुमसे यह नहीं कहा कि ‘दो!’, पिलात ने उत्तर दिया, “मैंने कहा, ‘दिखाओ!’”

लेवी ने अपने झोले में हाथ डाला और ताड़पत्र का एक टुकड़ा निकाला। पिलात ने उसे लिया, खोला, लौ के सामने रखा और आँखें सिकोड़कर आड़े-तिरछे स्याही के निशानों को समझने की कोशिश करने लगा। इन बल खाती रेखाओं को समझना कठिन था, और पिलात आँखें सिकोड़े ताड़पत्र पर झुककर रेखाओं पर उँगली फिराने लगा। आख़िरकार वह समझ गया कि ताड़पत्र किन्हीं विचारों की, कहावतों की, किन्हीं तिथियों की, कुछ निष्कर्षों की, कविताओं की असम्बद्ध लड़ी है। कुछेक पिलात पढ़ पाया: ‘मृत्यु नहीं। कल हमने मीठे बसंती खजूर खाए। ’तनाव से चेहरा विकृत बनाते हुए पिलात ने आँखें सिकोड़कर आगे पढ़ा: ‘हम जीवन की स्वच्छ नदी देखेंगे। मानवता पारदर्शी काँच से सूरज देखेगी। ’

यहाँ पिलात काँप गया। ताड़पत्र की अंतिम पंक्तियों में उसने पढ़ा: ‘। महान पाप। कायरता।’पिलात ने ताड़पत्र लपेट दिया और झटके से लेवी की ओर बढ़ा दिया।

“लो,” उसने कहा और कुछ देर चुप रहकर आगे बोला, “जैसा कि मैं देख रहा हूँ, तुम पढ़े-लिखे मालूम होते हो। तुम्हें बिना घर के, फटे चीथड़ों में घूमने की कोई ज़रूरत नहीं है। केसारिया में मेरा एक बहुत बड़ा वाचनालय है, मैं बहुत अमीर हूँ, और तुम्हारी सेवाएँ लेना चाहता हूँ। तुम पुराने लेखों को पढ़ोगे, समझाओगे और सम्भालकर रखोगे। खाने-पहनने की कमी न होगी।”

लेवी उठकर खड़ा हो गया और बोला, “नहीं, मैं नहीं जाना चाहता।”

“क्यों?” न्यायाधीश ने पूछा। उसका चेहरा स्याह पड़ गया था, “तुम मुझसे नफ़रत करते हो? मुझसे डरते हो?”

वही कड़वी हँसी लेवी के मुख पर छा गई। वह बोला, “नहीं, क्योंकि तुम मुझसे डरते रहोगे। उसे मार डालने के बाद मेरी ओर देखना तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा।”

“चुप रहो,” पिलात ने कहा, “पैसे ले लो।”

लेवी ने इनकार करते हुए सिर हिलाया।

न्यायाधीश ने फिर कहा, “मैं जानता हूँ, तुम अपने आपको येशू का शिष्य समझते हो। मगर मैं तुमसे कहता हूँ, कि उसकी शिक्षा को तुम ज़रा भी नहीं समझ पाए। अगर ऐसा होता तो तुम मुझसे ज़रूर कुछ न कुछ ले लेते। याद करो, मरने से पहले उसने क्या कहा था – कि वह किसी पर भी दोष नहीं लगा रहा है,” पिलात ने अर्थपूर्ण ढंग से उँगली ऊपर उठाई, उसका चेहरा थरथराने लगा, “और वह स्वयँ भी कुछ न कुछ ज़रूर ले लेता। तुम बहुत कठोर हो, मगर वह कठोर नहीं था। तुम जाओगे कहाँ?”

लेवी अचानक मेज़ के नज़दीक आ गया। उस पर दोनों हाथ जमाकर खड़ा हो गया और जलती हुई आँखों से न्यायाधीश की ओर देखकर फुसफुसाया, “न्यायाधीश, तुम जान लो कि मैं येरूशलम में एक आदमी की हत्या करने वाला हूँ। मैं तुम्हें यह इसलिए बता रहा हूँ, ताकि तुम जान लो कि खून की नदियाँ अभी और बहेंगी।”

“मुझे भी मालूम है, कि बहेंगी,” पिलात ने जवाब दिया, “तुमने अपनी बात से मुझे ज़रा भी विस्मित नहीं किया। बेशक तुम मुझे ही मारना चाहते हो ?”

“तुम्हें मारना मेरे लिए सम्भव न होगा,” लेवी ने जवाब दिया। दाँत पीसकर मुस्कुराते हुए वह आगे बोला, “मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ कि मैं यह भी अपने मन में लाऊँ, मगर मैं किरियाफ के जूडा के टुकड़े कर दूँगा, मेरा शेष जीवन इसी कार्य को समर्पित होगा।”

न्यायाधीश की आँखों में संतोषभरी चमक दिखाई दी, और उसने उँगली के इशारे से लेवी मैथ्यू को अपने और नज़दीक बुलाते हुए कहा, “यह तुम नहीं कर पाओगे, तुम इसके लिए परेशान भी न होना। जूडा को आज ही रात को मार डाला गया है।”

लेवी उछल पड़ा। वहशीपन से देखते हुए वह चीख पड़ा, “किसने किया है यह ?”

“जलो मत, “दाँत दिखाते हुए पिलात ने जवाब दिया और उसने अपने हाथ मले, “मुझे डर है, कि तुम्हारे अलावा भी उसके कई और प्रशंसक थे।”

“यह किसने किया है?” लेवी ने फुसफुसाकर अपना सवाल दुहराया।

पिलात ने उसे जवाब दिया, “यह मैंने किया है।”

लेवी का मुँह खुला रह गया। उसने वहशीपन से न्यायाधीश की ओर देखा। पिलात ने कहा, “यह जो कुछ भी मैंने किया, बहुत कम है, मगर किया है यह मैंने। ” और आगे बोला, “तो, अब कुछ लोगे या नहीं?”

लेवी ने कुछ सोचकर नरम पड़ते हुए कहा, “मुझे कुछ कोरे ताड़पत्र दो।” एक घण्टा बीता। लेवी महल में नहीं था। अब उषःकालीन स्तब्धता को केवल पहरेदार के कदमों की आवाज़ ही भंग कर रही थी। चाँद शीघ्रता से बेरंग होता जा रहा था, आकाश के दूसरे छोर पर सुबह का तारा चमक रहा था। दीप कभी के बुझ चुके थे। बिस्तर पर लेटा न्यायाधीश एक हाथ गाल के नीचे रखकर गहरी नींद सोया था, बेआवाज़ साँसें ले रहा था। उसके निकट सोया था बांगा।

इस तरह निसान माह की पन्द्रहवीं तिथि की सुबह का स्वागत किया जूडिया के पाँचवें न्यायाधीश पोंती पिलात ने।

उस स्थान के वर्णन पर गौर कीजिए जहाँ जूडा और अफ्रानी को घूमते हुए दिखाया गया है, इससे हमारी पहेली हल हो जाएगी:

मीनार के पास से गुज़रते हुए जूडा ने मुड़कर देखा कि मन्दिर की डरावनी ऊँचाई पर दो पंचकोणीय दीप जल उठे हैं। मगर जूडा को वे भी धुँधले ही नज़र आए। उसे यूँ लगा जैसे येरूशलम के ऊपर दस अतिविशाल दीप जल उठे थे, जो येरूशलम पर सबसे ऊपर चमकते दीप – चाँद से प्रतिस्पर्धा कर रहे थ।

चलते-चलते अंतोनियो की मीनार की ओर बढ़ा, कभी मन्दिर के ऊपर के उन पंचकोणी दीपों की ओर देखते हुए, जैसे दुनिया में और कहीं नहीं थे;  या फिर चाँद को देखते हुए, जो इन पंचकोणी दीपों के ऊपर लटक रहा था।

अंतोनियो की पंचकोणी दीपों वाली मीनार कुछ और नहीं बल्कि क्रेमलिन की पंचकोणी सितारों वाली मीनारें हैं। मतलब यह हुआ कि कथानक येरूशलम में नहीं अपितु मॉस्को में घटित हो रहा है; येरूशलम मन्दिर की मीनार पर सात मोमबत्तियाँ हैं, न कि पाँच।

मतलब, येशुआ वास्तविक येशू नहीं बल्कि एक सामान्य विचारक है रूस की बीसवीं सदी के तीसरे दशक में, और जूडा, कोई भी बेईमान व्यक्ति, जो बुद्धिजीवियों की झूठी चुगलियाँ करता है पैसे की ख़ातिर, अपने लाभ की ख़ातिर।पिलात कौन है? बुल्गाकोव उसका वर्णन करते हैं भविष्यवेत्ता सम्राट (सम्राट – रूसी में ‘कोरोल’; जर्मन में ‘कार्ल’ – कार्ल मार्क्स?) और मिलवाले की सुन्दरी पुत्री पिला (रूसी शब्द पिला – आरी- एक मज़दूर का द्योतक)। के पुत्र के रूप में। अर्थात पिलात समन्वय है कम्युनिज़्म और सर्वहारा वर्ग का – डिक्टेटरशिप ऑफ प्रोलेटेरिएट। कैफ़ को कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रतिनिधि माना जा सकता है।

अर्थात् ये जो संघर्ष चल रहा था वह था बुद्धिजीवी वर्ग, सामान्य आदमी; सर्वहारा वर्ग की डिक्टेटरशिप और कम्युनिस्ट विचारधारा के बीच, जो एक दूसरे को पसन्द नहीं करते, हर कोई अपना अपना श्रेष्ठत्व सिद्ध करना चाह्ता है। सीज़र दर्शाता है स्टालिन को जो इन सबके ऊपर है।  

तो, येशुआ – पोंती पिलात का प्रसंग इन तीनों के बीच के तत्कालीन संघर्ष को प्रदर्शित करता है। बुल्गाकोव खुल्लम खुल्ला इस बारे में लिख नहीं सकते थे इसलिए उन्हें बाइबल के कथानक का सहारा लेना पड़ा।


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