चर्चा:मास्टर और मार्गारीटा 7

चर्चा:मास्टर और मार्गारीटा 7

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इससे पहले हम देख चुके हैं कि सोवियत संघ में साहित्यकारों को किस प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की जाती थीं। बुल्गाकोव इस दुनिया को बहुत अच्छी तरह जानते थे। उन्हें मालूम था कि सिर्फ प्रोलेटरियन लेखकों को ही सरकार द्वारा सर्वोत्तम सुविधाएँ प्रदान की जाती थीं। मगर उन्हें शासकों द्वारा निर्धारित नियमों का कड़ाई से पालन करना पड़ता था। जो ऐसा नहीं करते थे उन्हें काफ़ी तकलीफ उठानी पड़ती थी। बुल्गाकोव इन्हीं में से एक थे। अध्याय 7 से थियेटर-जगत के बारे में चर्चा आरम्भ होती है : कलाकारों, प्रशासकों, नाटककारों आदि के बारे में।

अध्याय 7 वेरायटी थियेटर के डाइरेक्टर स्तेपान लिखोदेयेव के बारे में है।

स्त्योपा (स्तेपान) सादोवाया स्ट्रीट पर बिल्डिंग नं। 302 के फ्लैट नं। 50 में रहता था। इसी फ्लैट में बेर्लिओज़ के पास भी दो कमरे थे।

यह फ्लैट बड़ा बदनाम था। यह जौहरी दे’फुजेर की विधवा पत्नी आन्ना फ्रांत्सेव्ना दे’फुजेर का था। अक्टूबर क्रांति के बाद उसने पाँच में से तीन कमरे दो लोगों को किराए पर दे दिए थे। वे बिना कोई नामोनिशान छोड़े गायब हो गए; आन्ना फ्रांत्सेव्ना गायब हो गई; उसकी धर्मभीरू नौकरानी अन्फीसा भी गायब हो गई। जो लोग गायब हो गए थे, वे फिर कभी भी दिखाई नहीं दिए। यहाँ यह बताना उचित होगा कि यह क्वार्टर, 50 नम्बर वाला, बदनाम तो नहीं, मगर फिर भी विचित्र रूप से चर्चित था। दो वर्ष पहले तक इसकी मालकिन जौहरी दे’फुझेर की विधवा थी। पचास वर्षीय अन्ना फ्रांत्सेव्ना दे’फुझेर ने, जो बड़ी फुर्तीली और आदरणीय महिला थी, पाँच में से तीन कमरे किराए पर दे दिए थे। एक ऐसे व्यक्ति को जिसका कुलनाम, शायद, बेलामुत था; और एक अन्य व्यक्ति को जिसका कुलनाम खो गया था।

और पिछले दो सालों से इस घर में अजीब-अजीब घटनाएँ होनी शुरू हो गईं। इस घर से लोग बिना कोई सुराग छोड़े गायब होने लगे।

एक बार किसी छुट्टी के दिन घर में एक पुलिसवाला आया। उसने दूसरे किराएदार को (जिसका कुलनाम खो चुका था) बाहर ड्योढ़ीं पर बुलाया और कहा कि उसे एक मिनट के लिए किसी कागज़ पर दस्तखत करने के लिए पुलिस थाने बुलाया गया है। किराएदार ने अन्ना फ्रांत्सेव्ना की वफादार नौकरानी अन्फीसा से कहा कि वह दस मिनट में लौट आएगा। इतना कहकर वह सफ़ेद दस्ताने पहने चुस्त-दुरुस्त पुलिसवाले के साथ चला गया। मगर वह न केवल दस मिनट बाद नहीं लौटा, बल्कि कभी भी नहीं लौटा। इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह हुई कि उसके साथ-साथ वह पुलिसवाला भी सदा के लिए लुप्त हो गया। ईश्वर में विश्वास करने वाली, और स्पष्ट कहा जाए तो अंधविश्वासी, अन्फीसा ने बेहद परेशान अन्ना फ्रांत्सेव्ना से साफ-साफ कहा, कि यह काला जादू है और वह अच्छी तरह जानती है कि किराएदार और पुलिसवाले को कौन घसीट कर ले गया है, मगर रात में उसका नाम नहीं लेना चाहती। मगर काला जादू यदि एक बार शुरू हो जाए तो फिर उसे किसी भी तरह रोका नहीं जा सकता। दूसरा, बिना कुलनाम का किराएदार, जहाँ तक याद पड़ता है, सोमवार को ग़ायब हुआ था, और बुधवार को बेलामुत को मानो ज़मीन गड़प कर गई, मगर भिन्न परिस्थितियों में। सुबह आम दिनों की तरह उसे काम पर ले जाने वाली कार आई और ले गई, मगर न उसे और दिनों की तरह वापस लाई और न ही फिर कभी इस तरफ दिखाई दी। बेलामुत की पत्नी का दु:ख और भय अवर्णनीय है। मगर, अफ़सोस, दोनों ही अधिक दिनों तक नहीं रहे। उसी शाम अन्फीसा के साथ दाचा (शहर से बाहर बनाई गई समर क़ॉटेज) से, जहाँ कि अन्ना फ्रांत्सेव्ना जल्दबाजी में चली गई थी, लौटने पर उन्हें बेलामुत की पत्नी भी घर में नज़र नहीं आई। यह भी कम है : बेलामुत के दोनों कमरों के दरवाज़े भी सीलबन्द पाए गए । किसी तरह दो दिन गुज़रे। तीसरे दिन अनिद्रा से ग्रस्त अन्ना फ्रांत्सेव्ना फिर से जल्दबाजी में दाचा चली गई।।।यह बताना पड़ेगा कि वह वापस नहीं लौटी।अकेली रह गई अन्फीसा। जी भर कर रो लेने के बाद रात को दो बजे सोई। उसके साथ आगे क्या हुआ, मालूम नहीं, लेकिन दूसरे क्वार्टरों में रहने वालों ने बताया कि क्वार्टर नं। 50 में जैसे सुबह तक बिजली जलती रही और खटखटाहट की आवाज़ें आती रहीं। सुबह पता चला कि अन्फीसा भी नहीं है।

ग़ायब हुए लोगों के बारे में और इस शापित घर के बारे में इमारत के लोग कई तरह के किस्से कहते रहे, जैसे कि दुबली-पतली, ईश्वर भीरु अन्फीसा एक थैले में अन्ना फ्रांत्सेव्ना के पच्चीस कीमती हीरे ले गई; कि दाचा के लकड़ियाँ रखने के कमरे में उसी तरह के कई हीरे और सोने की कई मुहरें पाई गईं, और भी इसी तरह के कई किस्से; मगर जो बात हमें मालूम नहीं, उसे दावे के साथ नहीं कहेंगे।जो कुछ भी हुआ हो, यह क्वार्टर सीलबन्द और खाली सिर्फ एक हफ़्ते तक रहा। उसके बाद उसमें रहने आए मृतक बेर्लिओज़ – अपनी पत्नी के साथ और यही स्त्योपा – अपनी बीबी के साथ। स्वाभाविक है कि जैसे ही वह इस घर में रहने लगे, उनके साथ भी शैतान जाने क्या-क्या होने लगा। केवल एक महीने के भीतर ही दोनों की पत्नियाँ ग़ायब हो गईं, मगर कुछ सुराग छोड़े बिना नहीं। बेर्लिओज़ की पत्नी के बारे में सुना गया कि वह खारकोव में किसी बैले प्रशिक्षक के साथ देखी गई; और स्त्योपा की पत्नी बोझेदोम्का में मिली, जहाँ, जैसी कि ख़बर है, वेराइटी थियेटर के डाइरेक्टर ने अपने असीमित प्रभाव के बल पर इस शर्त पर उसे कमरा दिलवा दिया कि सादोवाया रास्ते पर उसका नामोनिशान न रहे।

यह तत्कालीन वस्तुस्थिति की ओर इशारा करता है, जब लोग अचानक गायब हो जाते थे, खासकर रातों में। उनका क्या हश्र होता था यह किसी को पता भी नहीं चलता था।

तो, बेर्लिओज़ की मृत्यु के दूसरे दिन सुबह स्त्योपा ने बड़ी मुश्किल से अपने शयन-कक्ष में आँखें खोलीं। अपने सामने वह एक विदेशी को देखता है, जो काले जादू के प्रोफेसर के रूप में अपना परिचय देता है। प्रोफेसर यह भी बताता है कि पिछले ही दिन उसने स्त्योपा के साथ एक एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके अनुसार वेरायटी में काले जादू के ‘शो’ का आयोजन किया जाना था। प्रोफेसर को वेरायटी की ओर से कुछ अग्रिम धन राशि भी दी गई थी।स्त्योपा ने सोचा कि यह कल रात की वोद्का का ही परिणाम है। उसने कल कुछ ज़्यादा ही पी ली थी, इसीलिए उसे इस जादूगर और उसके ‘शो’ के बारे में कुछ भी याद नहीं रहा। जादूगर उसे ‘कॉन्ट्रेक्ट’ दिखाता है।।।स्त्योपा वेरायटी के वित्तीय डाइरेक्टर को फोन करता है और उसे बताया जाता है कि जादूगर का ‘शो’ आज ही शाम को होने वाला है।

जब स्त्योपा फोन करने के बाद अपने शयन-कक्ष में वापस आता है तो देखता है कि जादूगर अब अपने सहयोगियों के साथ बैठा है, जिन्हें फोन करते समय स्त्योपा ने अपने शयन-कक्ष के शीशे से एक-एक करके बाहर आते देखा था:

शयनगृह में अब मेहमान अकेला नहीं था, बल्कि अपने पूरे गुट के साथ था। दूसरी कुर्सी में वही व्यक्ति था जो अभी-अभी आइने से प्रकट हुआ था। अब वह अच्छी तरह दिखाई दे रहा था : परों जैसी मूँछें, चश्मे की एक काँच चमकती हुई और दूसरी काँच गायब। शयनगृह में और भी बदतर चीज़ें दिखाई दे रही थीं : गद्देदार स्टूल पर पालथी मारे जो तीसरा प्राणी बैठा था वह कोई और नहीं बल्कि वही अकराल-विकराल बिल्ला था जिसने एक पंजे में वोद्का का पैग और दूसरे में नमकीन कुकुरमुत्ता टँका काँटा पकड़ रखा था।रोशनी, जो शयनगृह में वैसे ही कम थी, स्त्योपा को गुल होती नज़र आई – ‘शायद ऐसे ही पागल हुआ करते हैं!’ उसने सोचा और दीवार की सहारा लेकर अपने आप को गिरने से रोका।

 “मैं देख रहा हूँ कि आपको कुछ आश्चर्य हो रहा है, परमप्रिय स्तेपान बोग्दानोविच?” वोलान्द दाँत किटकिटाते हुए स्त्योपा से मुखातिब हुआ, “असल में अचरज करने जैसी कोई बात है ही नहीं। यह मेरे सहयोगी हैं।”

जैसे ही बिल्ले ने वोद्का का पैग खत्म किया, स्त्योपा का हाथ दरवाज़े की चौखट से सरककर नीचे गिर पड़ा। “और इन सहयोगियों को जगह चाहिए,” वोलान्द बोलता रहा, “मतलब यह कि हम चारों में से कोई एक इस क्वार्टर में फालतू है। मेरा ख़्याल है कि वह फालतू व्यक्ति हैं आप!”

 “वे ही! वे ही!” बकरी जैसी आवाज़ में चौखाने वाला लम्बू मिमियाया, स्त्योपा के लिए बहुवचन का प्रयोग करते हुए, “ख़ास तौर से पिछले कुछ दिनों से बहुत सुअरपना कर रहे हैं। शराब पीते रहते हैं, अपने पद का फ़ायदा उठाकर औरतों से सम्बन्ध बनाते रहते हैं, कुछ भी काम नहीं करते, और कुछ कर भी नहीं सकते, क्योंकि जो भी काम दिया जाता है, उसे ये समझ ही नहीं पाते। अधिकारियों की आँखों में धूल झोंकते रहते हैं “सरकारी कार को फालतू दौड़ाते रहते हैं!” कुकुरमुत्ते को चूसते हुए बिल्ले ने रूठे हुए स्वर में जोड़ा।और तभी इस क्वार्टर में चौथी और अंतिम घटना घटी, जब स्त्योपा ने लगभग फर्श पर घिसटते हुए दरवाज़े की चौखट को खरोचना शुरू किया।

शीशे में से सीधे कमरे में उतरा एक छोटा-सा मगर असाधारण रूप से चौड़े कन्धों वाला आदमी, जिसने सिर पर हैट लगा रखा था और जिसका एक दाँत बाहर को निकला था। इस दाँत ने वैसे ही गन्दे उसके व्यक्तित्व को और भी अस्त-व्यस्त बना दिया था। इस सबके साथ उसके बाल भी आग जैसे लाल रंग के थे।

 “मैं,” बातचीत में यह नया व्यक्ति भी टपक पड़ा, “समझ नहीं पा रहा, कि वह डाइरेक्टर कैसे बन गया!”

लाल बालों वाला अनुनासिक स्वर में बोले जा रहा था, “यह वैसा ही डाइरेक्टर है जैसा कि मैं बिशप!”

 “तुम बिशप जैसे बिल्कुल नहीं लगते, अज़ाज़ेलो!” बिल्ले ने सॉसेज के टुकड़े अपनी प्लेट में डालते हुए फिकरा कस “यही तो मैं भी कहता हूँ!” लाल बालों वाले की नाक बोली, और वोलान्द की ओर मुड़कर वह आदरपूर्वक बोला, “महाशय, उसे मॉस्को के सब शैतानों के बीच फेंकने की आज्ञा दें!” “फेंक दो!!!” अचानक अपने बाल खड़े करते हुए बिल्ला गुर्राया।

तब स्त्योपा के चारों ओर शयनगृह घूमने लगा, वह सिर के बल दहलीज़ से टकराया और होश खोते हुए सोचने लगा, ‘मैं मर रहा हूँ।

जादूगर स्त्योपा को समझाता है कि यह उसकी ‘टीम’ है और इसे रहने के लिए जगह चाहिए। सिर्फ एक ही व्यक्ति जो इस कमरे में फालतू है, किसी काम का नहीं है, वह है स्त्योपा, और इसलिए उसे जाना पड़ेगा।

स्त्योपा का फालतूपन बिल्ले द्वारा सिद्ध कर दिया जाता है : बिल्ला कहता है कि स्त्योपा गुण्डा, बदमाश है; कई लफ़ड़ों में उलझ जाता है; अपनी सरकारी कार का दुरुपयोग करता है; अपने शासकीय ओहदे का उपयोग करके अपने लिए काम करवा लेता है; औरतों के पीछे पड़ा रहता है; एक भी काम ढंग से नहीं करता क्योंकि उसे कुछ करना आता ही नहीं है। ये बुल्गाकोव केवल स्त्योपा के ही बारे में नहीं कह रहे हैं, उनका इशारा ऐसे अनेक निठल्ले, निकम्मे लोगों की ओर है जो थियेटर जगत में महत्त्वपूर्ण जगहों पर विराजमान हैं।

तो, स्त्योपा को फ्लैट नं। 50 से बाहर फेंक दिया जाता है और आँख खुलने पर वह पाता है कि वह याल्टा में समुद्र के एकदम किनारे पर पड़ा है !


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