चंद्रनगर के विक्रमसिंह
चंद्रनगर के विक्रमसिंह
चंद्रनगर के विक्रमसिंह पराक्रमी एवं उदार दिल वाले राजा थे। उनका राज्य चंद्रनगर धरती पर स्वर्ग जैसा था। प्रजा बहुत सुखी थी। किसी को कोई भी अभाव न था।
चंद्रनगर की प्रसिद्धि का एक और कारण था। वह था वहां का वसंत उत्सव। राजा विक्रमसिंह को तो फूलों से बेहद प्यार था ही, उनकी प्रजा भी इस उत्सव को पूरे मन से मनाती थी।
तीन दिन तक चलने वाला यह उत्सव हर साल मनाया जाता था। वसंत आगमन से कुछ समय पूर्व प्रजा स्वयं अपने हाथों से क्यारियां बनाती, पौधे लगाती। हर रोज पूजा-अर्चना के साथ उन्हें जल से सींचती। प्रत्येक नगरवासी का अपने घर-आंगन एवं निकट के उद्यान से बहुत लगाव हो जाता था। इन तीन दिनों में राज्य के हर उद्यान में रंग-बिरंगे फूल खिले रहते थे। इस तरह के असंख्य पौधों को साथ-साथ देखकर लगता था, मानो प्रकृति ने धरती पर सतरंगी चादर बिछा दी हो।
राजा विक्रमसिंह अपने दरबारियों के साथ तीनों दिन प्रजा के बीच रहते। प्रजा द्वारा उगाए फूलों की साज-सज्जा के अनुसार पुरस्कार देते और सराहना करते थे।
इस बार के उत्सव का आज आखिरी दिन था। सारे नगरवासी खुशी में झूम रहे थे। उत्सव समाप्त हुआ, तो राजा ने अचानक घोषणा कर दी, “अगले साल यह उत्सव नगर में नहीं, राजमहल में मनाया जाएगा और प्रजा भी उसमें भाग लेगी।”
प्रजा ने प्रसन्नता प्रकट की। सबको लगा कि जब यह उत्सव राजकीय स्तर पर मनाया जाएगा, तो और भी अच्छा होगा।
समय बीतते देर नहीं लगी। वसंत उत्सव का दिन भी निकट आने लगा और प्रजा बेसब्री से आयोजन का इंतजार करने लगी। लेकिन इस बार भी प्रजा ने अपने स्वभाववश, अपने-अपने आंगन में और निकट के बगीचों में फूलों को उगाया था।