चलते-चलते
चलते-चलते
एक दिन चलते-चलते वक़्त से मुलाक़ात हो गयी
उसने पूछा, कहो भाई कैसे हो?
कुछ ठीक नहीं, तुम हो कि मेरा साथ नहीं देते, हमेशा मेरे खिलाफ रहते हो, मैंने नाराज़ होते हुए जवाब दिया
उसने मेरी तरफ देखा और ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा जैसे मेरी हंसी उड़ा रहा हो
बस फिर क्या था, मुझे भी गुस्सा आ गया, मैंने तलवार निकाली और उसके दो टुकड़े कर दिए
वो धरती पर पड़ा था, एकदम लहुलुहान
मैंने झुक कर देखा
वो मेरा ही खून था
कुछ अच्छा
कुछ बुरा.
बिल्कुल वक्त के जैसा