चित्तौड़ की रानी पद्मिनी
चित्तौड़ की रानी पद्मिनी
राजस्थान को वीरो एवं बलिदानों की धरती से नवाजा जाता है। यह "धरती धोरा री" के साथ-साथ "कण कण सु गूंजे जय जय राजस्थान" की धुन संपूर्ण भारत में सुनाई देती है जहां राजपूताना में मेवाड़ वीर प्रताप की गाथा हमें सुनाई पड़ती है वही गोरा और बादल जिन्होंने अपनी महारानी की रक्षार्थ अपने प्राण त्याग दिए उनके कहानी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आज मैं आपको राजपूताना की चित्तौड़ की धरती पर ले जाऊंगी जहां गोरा और बादल की मृत्यु से लेकर रानी पद्मिनी के जौहर की गाथा है।
रानी पद्मिनी का जन्म 12 से 13वी शताब्दी के मध्य माना जाता है उनका बचपन जैसलमेर के महल में ही बिता उन्हें किसी भी व्यक्ति से मिलनेे की इजाजत नहींं थी इसी बीच उन्होंने हीरामणि नामक एक तोते सेे दोस्ती की एवं अपना बचपन उसी के साथ बिताया।जिस प्रकार राजस्थान मेंं वीरों ने कई बलिदान दिए उसी प्रकार यहांं की जालियों नेव अनेक प्रकार से अपनी जान की बाजी लगाई है कई स्त्रियों नेे युद्ध करके तो कई स्त्रियोंं ने जोहर करके राजपूताना की आन बाााान शान को बना कर रखा है।
चित्तौड़ के राजा रतन सिंह कई वर्षों पश्चात सेे योगी के वेश में रानी पद्मिनीी से विवाह कर उसे चित्तौड़ ले आए। उनके दरबारी कवि राघव चेतन को राजाा ने किसी कारणवश देश निकाला दे दिया जिसके पश्चात वह दिल्ली के सम्राट अलादीन खिलजी के पास जाााक रानी पद्मिनी की सुंदरता की खूब तारीफ की जिसे सुनने केे पश्चात खिलजी ने चित्तौड़़़़़ पर आक्रमण कर दिया। 8 माह के युद्धध के पश्चात भी खिलजी चित्तौड़ को न जीत सका। उसके बाद उसनेे छल का सहारा लियाा एवं रतन सिंह को बंदी बनाा लिया एवं उनके बदले पद्मििनी की मांग की तब पद्मिनी ने भी छल का सहारा लिया जो पालकिया खिलजी के यहांं जाने वाली थीी उनमें पद्मिनी एवं उनकी दास के स्थान पर गोरा और बादल एवं उनके सैनिक बैठ गए एवं खिलजी केे साथ युद्धध प्रारंभ हो गया जब खिलजी को इस बात का पता चला तो उसने दिल्लीली में विराजमान सभी राजपूतों को मौत के घाट उतार दिया।
गोरा और बादल राजा रतन सिंह की रक्षा करतेे हुए वीरगति को प्राप्त हो गए राजा जैसे तैसे चित्तौड़ पहुंचे एवं वहां युद्ध् करते हुए स्वर्ग सिधार गए। उसके पश्चात रानी पद्मिनी ने अपनी सभी दासी यो केे साथ जोहर करने का निर्णय लिया रानी पद्मिनीी ने कहाां की सभी पुरुषों नेे अपने सर पर केसरिया पहन लिया है अब हमारीी बारी है कि हम अपने स्वाभिमाान और इस मिट्टी की रक्षाा करें जब खिलजी चित्तौड़ पहुंचा तो उसे पद्मिनी की राख के सिवा कुछ ना मिला।
भगवा है पद्मिनी की जोहर की ज्वाला,
मिटाती अमावस्य लुटाती उजाला
नया एक इतिहास क्या रच डाला,
चिता एक जलने हजारों खड़ी थी,
पुरुष तो मीटे नारिया सब हवन की,
नलल केे पदों पर जलने को खड़ी थी,
मगर जोहर में घिरे कोहरो मे धुए के घनी,
बलि के क्षणों में धड़कता रहा यह पूज्य भगवा हमारा।
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