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छठे प्याले वाली शाम

छठे प्याले वाली शाम

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बरसती चांदनी सब पर

चाँद किसी को मिलता नही

लपट सीने में ऐसी है

लोहा पिघले,दिल पिघलता नही

बदरंग लगती है जो

ये शाम सिन्दूरी है

शायर, एक बार फ़िरप्रेम कहानी रह गई अधूरी है!!!



उनके नैनो की भाषा

काश हम सही समझते

इशारे उनके कुछ नही थे

हम यू ही दीवाने बनते

तौफीक इज़हार का जो कर बैठे

अब महखाने के हम ही एक दिखते फितूरी है

शायर, एक बार फ़िरप्रेम कहानी रह गई अधूरी है!!!!!!




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