चाय या कॉफी
चाय या कॉफी
अगर कोई मुझसे पूछे कि दुनिया में सबसे कठिन प्रश्न कौन सा है ? तो मैं तपाक से कहूंगा "चाय या कॉफी ? " । आप कहीं भी जाइये , यही प्रश्न सुनने को मिलेगा । भई, चाय / कॉफी हुई या कोई आफत हो गई । ऐसी गले पड़ी हैं दोनों कि पूरे सामाजिक ताने बाने को दोनों बहनों ने अपनी मजबूत गिरफ्त में ले लिया है । अब यह समझ नहीं आता कि दोनों में बड़ी बहन कौन सी है और छोटी बहन कौन सी है ? चाय तो घर घर में मिलती है। सबके होठों पर चढती है । मगर कॉफी ? अमीरों , अफसरों, नेताओं, बुद्धूजीवियों की शान बढ़ाती है कॉफी । कॉफी पीने पिलाने से अंग्रेजों की सी फीलिंग आती है । मतलब , शासक वर्ग की सी । और चाय पीने पिलाने से भारतीय यानी कि गुलामों की सी । या यों भी कह सकते हैं कि चाय मतलब हिंदी । जिसका कोई मान नहीं कोई अपमान नहीं । कॉफी मतलब अंग्रेजी । कुलीनता की निशानी ।
पर मेरे लिए तो दोनों ही बेकार हैं । अरे भाई , मैंने चाय और कॉफी छोड़ रखी है। लगभग 9 साल हो गए छोड़े हुए । इसलिए जब कोई पूछता है कि चाय या कॉफी ? तो मैं बड़े ठाठ से कहता हूं "ना चाय ना कॉफी" । मेरी इस आदत के कारण मेरे रिश्तेदार, मित्रगण मुझसे बहुत दुखी हैं । कहते हैं कि कुछ तो लो ? तो मुझे कहना पड़ता है कि एक ग्लास गुनगुना पानी ला सको तो ला दो ।यह काम बड़ा कठिन है इसलिए सब लोग इससे बचना चाहते हैं । चाय बनाना बहुत आसान है और ज्यादा कीमती भी नहीं है इसलिए चाय के लिए आग्रह बहुत किया जाता है ।
अब चाय की भी कई वैरायटी होती हैं । मीठी चाय और फीकी चाय । मीठी चाय में भी अलग अलग वैरायटी । बिल्कुल कम मीठी , थोड़ी कम मीठी, ठीकठाक और थोड़ी ज्यादा मीठी । खड़े चम्मच की चाय भी बहुत मशहूर है । खड़े चम्मच की चाय मतलब उसमें इतनी चीनी होती है कि अगर उसमें चम्मच खड़ा किया जाये तो वह खड़ा हो जाता है । फिल्म "कोहराम" में अमिताभ बच्चन "खड़े चम्मच की चाय पीते हैं ।
इन वैरायटीज के अलावा अदरक वाली चाय, इलायची वाली चाय, मसाले वाली चाय आदि आदि भी होती हैं । बेचारा आदमी ! कौन कौन.सी चाय पीये, समझ ही नहीं आता । इसके अलावा दूध वाली या बिना दूध वाली चाय की भी डिमांड रहती है । दूध से इतर चायों में ग्रीन टी, लैमन टी, ब्लैक टी, एंटी कोरोना टी भी मिलती हैं । मरजी अपनी अपनी । अच्छा, एक बात और है । यहां पर यह ध्यान रखना है कि चाय चूल्हे पर एकसाथ दूध, चाय, चीनी मिलाकर फिर खूब खौलाकर , छानकर चाय गरमागरम परोसी जाती है । एक तरीका और भी है जो अंग्रेजों द्वारा काम में लिया जाता था । वह है एक बर्तन में गरम उबला चाय मिक्स पानी, दूसरे में गरम दूध, तीसरे में चीनी । इस तरह ये सब सामने परोसे जाते हैं । जिसको जैसी चाहिए कि वह वैसी चाय बना ले ।
इस प्रकार इतनी सारी वैरायटी, इतना रंगबिरंगा अंदाज, स्वाद, सब कुछ निराला है चाय का । ऐसा लगता है कि चाय साली की तरह चुलबुली , नटखट, शरारती है । मगर कॉफी ? ऊंचे लोग ऊंची पसंद की तर्ज पर धीर गंभीर बनी रहती है । बड़े आदमी को बड़प्पन दिखाने में बड़ा आनंद आता है । इसलिए कॉफी बड़ी बहन की तरह चुपचाप, शांत, गंभीर मुद्रा में रहकर अपनी प्रतिष्ठा का लोहा मनवाती रहती है ।
इन दोनों बहनों ने तो कोहराम मचा रखा है । बिल्कुल उसी तरह जिस तरह बॉलीवुड पर लता मंगेशकर जी और आशा भोंसले जी का अकूत साम्राज्य था । इन दोनों गायिकाओं ने बाकी गायिकाओं को बॉलीवुड से भगा दिया । कुछ कुछ मुझे भी याद आ रहा है कि कोई जमाने में हम गर्मियों में "ठंडाई" पिया करते थे । पहले तो "ठंडाई" को घोंटना पड़ता है फिर छानना पड़ता हूं और फिर गटागट पीना पड़ता है । ठंडाई के अलावा लस्सी, छाछ, नीबूं की शिकंजी , शरबत , केशर बादाम दूध ,मलाई मार के, भी होते थे । मगर चाय, कॉफी , दोनों बहनों ने सब कुछ खत्म कर दिया । ले देकर गरीब आदमी के पास स्वागत सत्कार के लिए एक चाय ही तो है । इसी तरह थोड़ी बड़ी प्रतिष्ठा वालों के लिए कॉफी उपयुक्त रहती है ।
अब चाय कॉफी को कड़ी टक्कर मिल रही है । वो भी व्हिस्की, बीयर, शैंपेन, वोदका से । आजकल थम्सअप, कोका कोला, मिरांडा जैसे बहुत से पेय पदार्थ आ गये हैं । सॉफ्ट और हार्ड ड्रिंक्स , दोनों ही खूब काम में आते हैं । और तो और, "जब कुछ नहीं मिले तो ठर्रा से ही काम चले" । देसी दारू का नशा ही कुछ और है । देसी दारू मतलब देसी गर्ल और इंग्लिश शराब का मतलब विदेशी गर्ल । "देसी गर्ल" ने क्या खूब धूम मचा रखी है संसार में । सबकी चहेती बनी हुई है ।
कोई जमाना था जब एक पीला पीला सा शरबत हुआ करता था । नाम भूल रहा हूँ उसका । मगर घरों में खूब बनता था । बच्चे शौक से पीते थे उसको ।
समय बदला और चीजें बदल गई । अब तो केवल चाय कॉफी का एकछत्र राज्य है । बाकी कहीं पासंग में भी नहीं ठहरते हैं । बैड टी के बिना प्रैशर नहीं बनता । इवनिंग टी के बिना सुस्ती आती है । और दारू के बिना तो "मूड" ही नहीं बनता है ओए , सरदारा । बिन दारू जीकर भी क्या करना ।
