Blogger Akanksha Saxena

Drama

5.0  

Blogger Akanksha Saxena

Drama

बवाल 'एक झंझावत कथा' पार्ट-1

बवाल 'एक झंझावत कथा' पार्ट-1

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आज उत्तर प्रदेश के भिमारी जिले में मेरी पहली पोस्टिंग भिमारी जिले की डी.एम गौरी संघाल के रूप में हुई, मुझे मेरा ऑफिस मिला सामने अपनी कुर्सी देख मैं मन ही मन बहुत खुश हुई। आज डी.एम की कुर्सी पर बैठ ऐसा लगा मानो ज़िंदगी की सारी थकान मिट गयी क्योंकि बड़ी मुसीबत झेल के मैं यहाँ तक पहुँची थी। ऑफिस में सभी लोगों द्वारा मिल रहा सम्मान देख, मैं फूले न समा रही थी। ऐसा लग रहा था मानो, आज खुद की किस्मत पर खुद को जलन हो जाये। सच कहूँ तो आज में बहुत खुश थी। कुछ दिनों में मैंने महसूस किया कि यहाँ सभी मुझे अजीबोगरीब नज़रों से देखते हैं…पता नहीं क्यों.. पर कुछ तो बात थी जिसे जानने की जिज्ञासा मेरे मन मे घर कर गई।

मैं सोचने लगी, दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच गयी और ये लोग यहीं अटके हुये हैं जो आज भी महिला प्रशासनिक अधिकारी को इस तरह घुरते हैं। मैं मन ही मन सोचने लगी कि सचमुच इन लोगों का कुछ नहीं हो सकता। मैंने ऑफिस में बैठ-बैठे पूरे जिले के गाँव–क़स्बों को नज़दीक से देखने का मन बनाया क्योंकि मैं उन लोगों को उनकी परेशानियों से निजात दिलाने की पूरी कोशिश करना चाहती थी। ऑफिस के लोग यह विचार सुन कर खुश तो थे पर उनकी आँखें और चेहरा कुछ और ही बोल रहा था। मैंने सच जानने का निश्चय किया कि ये अजीब व्यवहार मेरे साथ आख़िर क्यों ? मैंने निश्चय किया कि मैं एक दो दिन में इनसे स्पष्ट पूछँगी। दूसरे दिन हम और ऑफिस के कुछ लोग गाड़ी में बैठ जिला भिमारी के एक छोटे से कस्बे बाबरपुर को घूमने निकले। जब मैंने गाड़ी में बैठे-बैठे खिड़की से बाहर के नज़ारे देखे तो मुझे बहुत गुस्सा आया। सामने पुल की दीवारें बेहद भद्दे विज्ञापनों से रंगी पड़ी थीं। उन पर कुछ यूँ लिखा था…”देखो ! गधा मूत रहा है” और हद तो तब हो गयी जब मैंने देखा कि, उसी दीवार पर लोग टॉयलेट भी कर रहे हैं। पुल की दूसरी दीवार पर लिखा था “यह प्लाट बिकाऊ है’ वहीं दूसरी तरफ लिखा था कि “काफिलाज़ पशु आहार खिलाए और भैंस रानी का दूध बढ़ायें”

ये सब देख मैं हैरान थी कि कैसे घटिया विज्ञापनों से जिले के फ्लाई ओवर को गंदा किया जा चुका है। फिर आगे बढ़ी तो देखा कि लोगों ने सड़क के किनारे लगे पेड़ों तक को नहीं बख़्शा था जिन पर लिखा था,” बाबा बंगाली मनचाहा प्यार पाने के लिये वशीकरण के लिये सम्पर्क करें”

“बवासीर खूनी पेचिस, दस्त कब्ज़ के लिये मिलें”

“दयानंद ऐकेडमी प्ले स्कूल में आयें और अपने बच्चों का फ़्यूचर चमकायें” लोगों का यह बेशर्मी से भरा मनमाना रवैया देखकर मैं अपने ऑफिस लौट आयी। ऑफिस में आकर बैठी ही थी कि मिश्रा जी ने कहा, ”मैडम, अब क्या सोचा आपने ? मैंने कहा कि मुझे शहर, कस्बे और गाँव सब साफ-सुथरे चाहिये और तुरन्त पुल के दीवारों पर लिखे ये घटिया प्रचार सब साफ करवाओ अगर फिर भी कोई न माने और दोबारा लिखे तो पूरे पाँच हज़ार रूपये का जुर्माना देय हो। ये बात समाचार पत्रों में छपवा दीजिये आप। फिर थोड़ी देर बाद मीडिया के कुछ लोग आये और कुछ बातें करके चले गये। ऑफिस के लोग मुझे टकटकी लगा के देख रहे थे ।

हमने कहा क्या बात है ? यह सुनकर सब तुरन्त अपने कार्यों में लग गये। मुझे लगा इन निगाहों में कुछ तो ख़ास छिपा है जो मुझे पता करना है ये सब लोग कुछ तो छिपा रहें हैं,जो मैं पता करके रहूँगी। मैं कुछ सोच ही रही थी कि तभी बाहर किसी लड़की की रोने की आवाज़ आयी और शोर मच गया। हमने अपने पास ही बैठे कमप्यूटर ऑपरेटर शशांक मिश्रा से कहा जो लड़की रो रही है उसे अंदर लाओ प्लीज़…वो बोले जी। लड़की सामने आयी और बोली “बचा लो मैडम” ! मैं उसके पास गयी और पूछी क्या हुआ ? लड़की बोली, ”मैम,दो महीने हुऐ शादी को देवर भी ज़बरदस्ती करता है और ससुर भी, पति कहता है कि मेरे घरवाले तुम से कुछ भी करें या कुछ भी कहें मुझसे ना कहना समझी। मैडम फोन भी नहीं देता कि मैं अपनी माँ से बात कर सकूं। जब मैंने चिल्लाना शुरू किया तो ननद ने मुझे बहुत मारा तभी मैंने घर के सामने का गेट खुला देखा तो भाग निकली। मैं उसने मुझे अपने हाँथ- पाँव पर जलाने, पीटने के गहरे निशान दिखाये। ये देख मेरी आँखों में आँसू आ गये। मैंने उसका हाँथ थामा तभी वो गिर पड़ी और बोली मैडम बहुत भूख लगी है, चार दिन से कुछ नहीं खाया मैम। जब तक मैं उसके के लिए कुछ कर पाती उसे जोर की हिचकी आयी, वह बोली, ” मैम शायद मुझे भगवान याद कर रहे हैं। मैं चिल्लायी मिश्रा जी ऐम्बूलेंस बुलवाओ जल्दी। मैंने उस लड़की की तरफ देखा ! वो मेरे कुर्ते को पकड़े थी और एकाएक अचानक उसके हाथ की पकड़ ढ़ीली पड़ी और वो हाथ छूट गया। मैंने उसका सर अपनी गोद में रख लिया और उसने मुझे एकटक देखते हुये अपनी अंतिम श्वांस ली। मैं उसे गले से लगा कर ज़ोर से रो पड़ी। मुझे रोते दे मिश्रा जी बोले, ”मैम,प्लीज़”। मैं उठी और कुर्सी पर बैठी।

ऑफिस के बाहर हंगामा मचा हुआ था। लड़की के परिवार वाले ऑफिस के बाहर तोड़-फोड़ शुरू कर चुके थे। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि वो लोग मेरी गाड़ी फूँक फूंक देंगे। इस घटना से पूरे जिले में ऐसा बवाल मचा था कि लोगों ने मुग़ल रोड़ जाम कर रखा था। हर जगह जनता की भारी भीड़ बड़ी – बड़ी तख्तियां लेकर चिल्ला रही थी कि ” लेखिका अरूणा नारंग को इंसाफ दिलाओ”। ” न्याय चाहिये ससुरालियों को सजा-ए -मौत चाहिये”। जब मैने सुना ये लड़की वही फेमस लेखिका अरूणा नारंग थी जिससे कभी मैं भी मिलना चाहती थी। किसी ने सही कहा है कि दुख इंसान की शक्ल व सूरत दोनों ही बिगाड़ देता हैं। सच मैं तो उनको पहचान ही न पायी कि ये अरूणा जी हैं। ओह ! माई गॉड उनके साथ इतना बुरा हुआ ?” जिनसे कभी मैं मिलना चाहती थी पर नहीं पता था कि इस तरह मेरी उनसे पहली और अंतिम मुलाकात होगी। मैंने कहा मिश्रा जी पुलिस इंस्पेक्टर से हमारी बात करवाइये अभी। मिश्रा जी ने फोन दिया हमने कहा, नमस्ते बाद में पहले अपना नाम बताइये ? अच्छा तो आपका नाम.. सावन है। आप सड़कों पर ये जो जनता का गुस्सा देख और सुन रहे हैं।

आप अरूणा नारंग जी के ससुरालियों पर तुरन्त ऐक्शन लो और सावन नाम है ना आपका, तो अपराधियों पर बरसो वो भी झूम के। मुझे सब आरोपी जेल में चाहिये। आप जानो आप क्या करेंगे, कैसे करेंगे। दूसरी बात यह कि इस सिलसिले में जो बवाल मचा है इसको भी शांत करवाइयेगा क्योंकि इससे समाज में बहुत असंतुलन हो रहा है। मैंने फोन रखा ही था कि तभी मीडिया के लोग आकर बोले, ”मैडम आपकी गाड़ी जल गयी है आप क्या कहना चाहेंगी ? मैंने कहा, ”गाड़ी नही उस बेटी की बात करिये जो ज़ुल्म का शिकार हुई। एनीवे उसे न्याय मिलेगा और ज़रूर मिलेगा।” मीडिया ने कहा, ”ये जो बवाल मचा है आप उसका क्या करेंगी ? मैंने कहा, ”जिनकी बेटी के साथ ऐसा हुआ उनसे जाकर पूछो, गुस्सा फूटना स्वाभाविक है पर मेरी सभी लोगों से अपील है कि, धैर्य रखें, कानून दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा देगा, किसी को बख्शा नही जाएगा। मिश्रा जी बोले, ”मैडम बॉडी पोस्टमार्टम के लिये भेज दी गयी है।” मैंने हाँ में सिर हिलाया तभी मैंने देखा ऑफिस के लोग रोज़ की तरह आज भी मुझे घूर रहे हैं। मैं खड़ी हुई और जब तक कुछ बोल पाती….कि सभी एक साथ खड़े होकर बोले, ”मैम आपको देख “ईरा मैडम” की याद आ गयी, हम लोग आपको जब भी देखते हैं तो हर-पल उनको आप में पाते हैं। अब मेरे समझ आया कि ये लोग मुझे क्यूँ घूरते थे। 

मैंने कहा, ”कौन ईरा ?

मिश्रा जी बोले, आज से पाँच साल पहले इस जिले की पहली महिला डी.एम आदरणीय ईरा सिंघल जी थीं जिनकी पहली इसी जिले में हुई थी। वह इसी आफिस में इसी अंदाज में वर्क करती थीं।

मिश्रा जी के ज़ुबान से इरा मैडम के लिए आदरणीय शब्द सुन कर ही मैं समझ गई वो ज़रूर कोई अहम शख्सियत होंगी। मैंने पूछा अभी वह कहाँ है, उन से कैसे मलाक़ात हो सकती है ? यह सुन उन सब की आँखे भर आयीं। हमने सोचा लगता है उन्होंने इस जिले के लिये बहुत अच्छा काम किया है तभी ये लोग इतनी इज्ज़त से उनको याद कर रहें है। काश ! मैं भी अच्छे काम कर पाऊं जो मुझे भी ऐसी इज्ज़त नसीब हो। मैं ने फिर पूछा अरे बताओ न वो कहाँ मिलेंगी फिर भी सभी खामोश रहे,तभी…सामने खड़े पियून ने कहा,” मैडम, वो ईरा मैडम गुमनाम हो गयीं कोई नहीं जानता वो कहाँ गयीं।” मिश्रा जी बोले, ”हाँ, कोई नहीं जानता वो कहाँ गयीं, इतना कह कर वो रो पड़े….। मैं तो देखते रह गयी कि सब के सब आँसू पोछ रहे हैं मैंने पूछा, ”क्या उनको ढूंढने में आप सब मेरी मदद करेंगे। उन्होंने कहा- हाँ बिल्कुल।

मैं कहा, ”पहले आप लोग मुझे उनके बारे में सब कुछ बतायें जो भी आप जानते हों।

मिश्रा जी बोले, ”मैम,वो सब तो मीडिया में उस समय बहुत हाईलाइट था। याद करें आज से पाँच साल पहले राष्ट्रपति भवन का वो लाखों करोड़ों महिलाओं का धरना जिसमें बड़ी संख्या में पुरूष भी शामिल थे। इस धरने को देश का सबसे बड़ा ” ”बवाल” नाम दिया जा चुका है और ईरा मैडम को उनके विरोधी “बवाली” ही कहा करते थे।

वह सब बोलते थे डी.एम नहीं ”बवाली” आ रही हैं। कचहरी में ऑफिस की दशा सुधार लो वरना चारों ओर बवाल ही मचेगा। मैंने कहा, ”हाँ,कुछ साल पहले मैंने टी.वी पर देखा तो था पर अचानक प्रसारण रोक दिया गया था। फिर कोई बात बाहर न आ सकी ….है ना। मिश्रा जी बोले, ”हाँ मैम, मुझे याद है ईरा मैम स्टेज पर माइक से बोल रहीं थी और जब वह अपने प्रशंसको के बीच आने के लिए जैसे हीं मंच से नीचे उतरीं कि बस वहीं भीड़ में कहीं गुम हो गयीं या गुम कर दीं गयीं पता नहीं। उनके गुम होने के बाद वो ‘बवाल’ मचा था कि पूरे देश में आगज़नी मची थी। ना जाने कितने लोगों ने उनके लिये ट्रेन के सामने लेट कर प्रदर्शन किया था और बहुत लोग मारे-पीटे भी गये। वह ऐसा साल था जब देश की जेलें नवयुवतियों नवविवाहिताओं महिलाओं और पुरुषों से भर गयी थीं।

मैंने कहा कि हाँ उस समय मेरा एग्ज़ाम का समय नज़दीक था और मैंने खुद को स्टडी रूम में कैद कर लिया था। मैं उन दिनों कड़ी मेहनत से एग्ज़ाम की तैयारी में जुटी थी। इसलिये ये सब जो देश में हुआ हमने कुछ करीब से जानने की कोशिश नहीं की पर मिश्रा जी इतनी महान महिला अचानक गुम कैसे हो गयी ? यह बात सुनकर मिश्रा जी बोले, ” यही तो पूरा देश जानना चाहती है मैम…! हमने कहा मिश्रा जी आप पाँच साल पुराने सभी अख़बार मंगवाइये और इसके लिए आज और अभी से ही जुट जाइये, ठीक है। दूसरी बात यह कि जिसको जो भी पता चले मुझे बताना। अगर कोई ख़ास गुप्तचर टीम बनानी हो तो बना लीजिये हम सब साथ हैं पर यह सारी बातें अभी अपने तक ही रखना। मिश्रा जी ने कहा, ”ओके मैम।” गौरी संघाल ने नेट पर अपने तरीके से खोजबीन करना शुरू किया और फिर उन्होंने यू ट्यूब पर ईरा जी के वीडियो सर्च किये। वो रात भर इस केस से जुड़ी कड़ी को ढूँढ़ने और जोड़ने का प्रयास करती रहीं।

सुबह ऑफिस पहुँच कर काम निपटाकर सब लोग पुराने मंदिर पर पहुचें। वहाँ पहुँच कर मिश्रा जी बोले मैम ये तस्वीर देखो ! मैम मंच से उतर रहीं हैं और ये महिलायें उनके हाथ पकड़े हंस रही हैं। यह सुनकर विनय शर्मा बोले मैम मैं आपके ऑफिस में पत्र टाईप करता हूँ मैंने पता किया है कि ये महिलायें क्रिमिनल्स हैं। मैंने कहा, ” क्या.. बात साफ-साफ कहो”? मैंने इन सब महिलाओं की तस्वीर एक बार पेपर में छपी खबर ‘ट्रेन में सक्रिय महिला ज़हरखुरानी गैंग’ में साफ देखी थी।

मैंने कहा, ” बहुत अच्छा, हम सब जल्द सच के करीब होगें। हम लोग बात कर ही रहे थे कि तभी इंस्पेक्टर सावन आकर बोले आप सब यहाँ एक साथ ?” गौरी संघाल बोलीं, ”ये लो तस्वीरें और सिर्फ पता ही नहीं करो बल्कि पकड़ो तुरन्त।” सावन बोला ये सब फोटो ! ये अखबार! मैं जो समझ रहा हूँ क्या वो सच है ?

मैंने कहा, ”हाँ ……लग जाओ….बस काम पर। सावन हो तो बरस जाओ जाकर। सावन ने कहा,”बिल्कुल,ईरा जी के लिये मैं कुछ भी करूँगा।”

सब लोग अपने घरों को चले गये। गौरी अपने ड्राईवर से कहती हैं- जगत भाई, गाड़ी जरा पास के गाँव जगतपुरा की तरफ ले चलो और पूछा, जगत भाई ये जगतपुरा गाँव का नाम तुम्हारे नाम के कारण पड़ा क्या ? ड्राईवर मुस्कुराया, कहा मैडम आप भी न…यह सुन कर गौरी संघाल हँस पड़ी और जगत भी हंस पड़ा। गौरी ने गाँव के बाहर ही गाड़ी रोक दी और गाँव में आकर किसी को ढूँढ़ने लगीं तभी एक बुजुर्ग बोले किसे ढूढ़ रहें हैं आप लोग ?

गौरी कुछ कहती तभी एक महिला बोली बाबा तुम्हारे नाती का फोन आया है…. गौरी उस महिला के घर के अंदर जाने लगीं। यह देखकर वह बाबा और वह महिला बोली अरे ! कौन हो तुम लोग। मैं तुम्हें नहीं जानती। गौरी ने कहा पर मैं तुम्हें अच्छी तरह से जानती हूँ, तुम्हारा नाम जानकी बाई और तुम्हारे बाबा का नाम केशव दयाल है न। यह सुन वह महिला गौरी को हैरानी से देखने लगी। गौरी ने कहा, ये देखो ! अखबार ईरा जी के साथ कई जगह तुम्हारी फोटो है पीछे छिपी सी खड़ी हो तुम। देखो ! जो जानती हो बताओ ? वह बोली आप मेरा नाम कैसे जानती हैं ? गौरी ने कहा, साइन्स ने बड़ी तरक्की की है, नेट है, पहचान पत्र, निवास प्रमाण पत्र, आय–जात और पूरी वोटर लिस्ट ऑनलाईन है….आज, सब पता चल जाता है।अब बताओ जो भी जानती हो ?

वह बोली, मैडम,मैं क्या लाखों लड़कियाँ ईरा मैडम के साथ थीं। उन्होंने समाज से दहेज़ खत्म कर देने का बीड़ा उठा लिया था। वो लड़कियों के आँसुओं में ही डूब के कहीं गुम हो गयीं। यह कहते-कहते वह फूट-फूट के रो पड़ी कि उनका जाना और देश की हर लड़की का असुक्षित हो जाना। गौरी संघाल ने कहा, तुम किसी को जानती हो जो उनके बारे में हमें कुछ और अधिक बता सकें क्योंकि हम उनको ढूंढ़ रहें हैं, प्लीज़ कुछ तो बताओ। वह अपनी साड़ी के पल्लू से अपने आँसू पोंछते हुयी बोली क्या सचमुच। उनके लिये प्लीज़ कहने की ज़रूरत ही नहीं है….हाँ मैं जानती हूँ वही जो उनके बारे में सब जानते हैं पर….। गौरी ने कहा पर क्या ? वो बोली,”आप खुद ही जाकर देख लो। गाँव के बाहर श्मशान है वहीं बीहड़ में एक सूखे पेड़ के नीचे लेटा एक पागल दिखेगा। गौरी ने कहा,”पागल?”। जानकी बाई बोली, ”वो पागल आज से पाँच साल पहले देश का जाना माना पत्रकार था और ईरा मैडम का ख़ास दोस्त भी था। गौरी ने कहा, ”धन्यवाद,जानकी बाई। मैडम और ड्राईवर दोनों गाँव के बाहर आकर गाड़ी में बैठ गये।

ड्राईवर बोला, ”मैडम,चलें”। गौरी ने कहा,”हाँ”। गौरी और ड्राईवर दोनों शमशान के वीराने में उस पत्रकार को ढूँढ़ने लगे तभी देखा कि सामने दो छोटे बच्चे अपने सर और कन्धों पर लकड़ी का भारी गट्ठर रखें हुऐ चले आ रहें हैं और उनके साथ शायद उनका पिता भी है जो कुछ लकड़ियाँ हाथ में पकड़े हुऐ हैं। गौरी उनके पास जाकर बोली, ”छोटे बच्चों के कन्धों पर इतना भार”? वो गरीब बोला, मैडम, इससे ज़्यादा तो इनके बस्ते भारी हैं। वैसे में इतना भार बच्चों से न उठवाता पर इनको ये सीख देनी ज़रूरी है कि हम कितनी मेहनत से लकड़ियाँ बीन के लाते हैं ताकि ये पढ़ें कुछ बनें और इनको अपने बाप की तरह जंगलों, श्मशान के वीरानों में लकड़ियाँ बीनना ना पड़े और ये रोज ज़्यादा- ज़्यादा लकड़ियाँ इधर- उधर फेंकते हैं और बिना वजह जला डालते हैं तो अब ये इनकी कीमत जानेगें और फिर ऐसा न करेगें।

वहीं पास में खड़े बच्चे बोले, बाबा अब कभी लकड़ी बर्बाद नहीं करेगें। गौरी बोली, आप जैसी अच्छी सोच वाले पिता के बच्चे ही देश समाज का नाम पूरी दुनिया में रौशन करेंगे। गौरी संघाल ने पूछा, क्या यहाँ कोई सूखा बड़ा सा पेड़ है जहाँ कोई पागल रहता है ? वो ग्रामीण दूर इशारा करते हुए बोला उधर वो देखो ! सूखा पेड़, वो पागल वहीं कहीं होगा पर मैडम वो पागल पहले पत्रकार था। ईरा मैडम के गायब होने के बाद ये भी पागल हो गये। यह कहकर वो ग्रामीण आगे बढ़ गया। हमने सोचा कि वो क्या शख्सियत होगीं जिन्हें हर कोई न सिर्फ़ जानता है बल्कि इज्ज़त भी करता है। हम दोनों किसी तरह उस पेड़ तक पहुँचे तो देखा, कोई वहां लेटा हुआ है। ड्राईवर बोला,मैडम मुझे तो यहाँ दिन में ही डर से बुरा हाल है दूर- दूर तक कोई भी नज़र नहीं आ रहा। जाने ये रात में कैसे यहाँ रह पाते हैं…। मैम इंसान इतना भी अकेला रह सकता है मैंने आज देखा। गौरी ने देखा ! कि सामने पुराने सूखे पेड़ के नीचे जमीन पर गंदे और फटे कपड़ों में कोई उल्टा बेसुध पड़ा है। गौरी ने उस पत्रकार के नजदीक जाकर कहा, ”सर”! सर ! 

जमीन पर पड़े उस व्यक्ति ने आँखें खोल के धीरे से कहा, ”कौन ?” गौरी संघाल बोली, ”सर,मैं गौरी संघाल डी.एम भिमारी, प्लीज़ मुझसे बात कीजिये। वो बोला,”डी.एम ! 

पीछे खड़े ड्राइवर जगत ने कहा, ”हाँ,यह डी एम है।” 

बार-बार डीएम शब्द मानो उस जमीन पर से पड़े उस पत्रकार के कानों में ऐसे लगे मानों उसके वर्षों से सूखे कानों में आज किसी ने गर्मागर्म सरसों का तेल डाल दिया हो। उस पत्रकार की वीरान सी आँखें आज किसी अनजानी उम्मीद से चमक उठीं। वो गौरी को एकदक देखते रह गये और उनकी श्वांसे तेज चलने लगीं वो धीरे से उठे उनके होंठ हल्के से हिले तभी अचानक वो वहीं गिर के बेहोश हो गये। ड्राईवर जगत ने उनको तुरंत गोद में उठाया और गाड़ी में जाकर लिटा दिया। गौरी संघाल ने कहा,”सीधे मेरे घर ले चलो और अब वहीं इनके स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्था करेगें। ड्राईवर जगत ने कहा हाँ यही ठीक रहेगा।

गौरी ने तुरन्त डॉक्टर को नम्बर मिलाया और कहा आप लोग घर पहुंचे मैं एक मरीज को लेकर घर पहुंच रही हूँ। आज गौरी इस कहानी की पहली और मजबूत कड़ी मिलने पर बहुत खुश थीं। घर पहुँचते ही देखतीं हैं कि उनके घर में डॉक्टर बंसल और उनके साथी पहले से ही मौजूद थे। उन्होनें तुरन्त पत्रकार को बेड पर लिटाया और इलाज शुरू कर दिया। 

तभी गौरी के पास कॉल आयी, मैम आप तुरन्त इस पते पर आ जाइये आपका काम हो गया है। गौरी ने उन्हें ,”धन्यवाद”! करते हुये कहतीं है अरे ! कौन कहता है सोशल मीडिया के दोस्त काम नहीं आते। आपका फिर से शुक्रिया। यह सुनकर उस दोस्त ने  कहा, ”मैम, ईरा मैम के लिये या देश समाज के लिये कुछ करने को बड़े नसीब से मिलता और जब दोस्त बोला तो धन्यवाद कह कर शर्मिंदा ना करें। गौरी ने कहा ठीक है अब मैं ऑफिस निकलती हूँ पता आप मुझे व्हाट्सअप पर भेज दो। वहां से जाते हुए गौरी ने डॉक्टर बंसल से कहा कि पत्रकार को जैसे ही होश आये आप मुझे तुरंत कॉल करना ।

गौरी ने ड्राईवर से कहा, ”जगत, तुम थके हो तो आराम करो या घर चले जाओ मैं खुद ड्राईव कर लूँगी। ड्राईवर जगत ने कहा, ”मैम, जब तक आप सफल नहीं हो जातीं तब तक मैं कहीं नहीं जाऊँगा और आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है आप अब कभी मुझे आराम के लिये नहीं कहेगीं अब तो आराम तब ही होगा जब आप सफल होगीं। गौरी संघाल ने कहा, ”मुझे तुम पर गर्व है जो इस मिशन में तुम मेरे साथ हो वो भी अच्छे दोस्त की तरह। दोस्त शब्द सुन वो जमीन पर बैठ गया और आँखों में नमी के साथ बोला मुझे आपका ड्राईवर ही रहने दो मैं एक अच्छा ड्राईवर सिद्ध होना चाहता हूँ.. प्लीज़ मैम। गौरी ने कहा, जैसा तुम ठीक समझो, अब चलो जल्दी।

दो घंटे के सफर के बाद गौरी और जगत दोनों ठीक पते पर पहुंचे। वहाँ गौरी के दोस्त ने सामने से आकर हाथ मिलाया और उस बिल्डिंग के एक फ्लैट में ले गया और कहा यही है उस पत्रकार का ठिकाना और ये पुराना लैप टॉप और जमीन पर दरवाज़े के पास से ये दो सी.डी कैसैट मिलीं हैं। गौरी ने कहा तुरन्त पहला पार्ट शुरू करो। गौरी ने देखा ये तो राष्ट्रपति भवन के धरने की सी.डी है। उफ्फ, इतनी बड़ी भीड़,वाह ! ईरा जी की क्या बुलंद आवाज़ है.. तभी डॉक्टर बंसल की कॉल आ गयी कि मैम इनको होश आ गया है और ये कुछ कहने की कोशिश कर रहे हैं।

गौरी ने लैपटॉप बंद किया सी.डी बैग में रखीं। सीधे गाड़ी में आकर बैठ गयीं और उनके दोस्त भी अपनी गाड़ी से वापस हो गये। गौरी सीधे ही अपने रूम में पहुँचीं। जहाँ पत्रकार बिल्कुल आराम से लेटे हुये थे और उनका लुक भी बिल्कुल चैंज था। उनकी दाढ़ी भी साफ हो चुकी थी और सिर के बाल भी हल्के हो चुके थे किन्तु वह बहुत बैचेन दिख रहे थे। मैंने उनसे कहा,” अब कैसे हैं आप ? वो बोले, ठीक नहीं हूँ। गौरी ने कहा, ”सच है, ईरा जी को जानने वाला कोई भी व्यक्ति ठीक नहीं पर आप ठीक हो सकते है। मुझे उनकी बिल्कुल शुरू से पूरी कहानी सुननी है प्लीज़ हाँ बोल दीजिये। पत्रकार ने कहा, मैं आपको ज़रूर सुनाऊँगा जो भी मैं जानता हूँ उनके बारे में। कारण आप की आंखों में मुझे सत्य की तलाश का दृश्य दिखाई दे रहा है।जानतीं हैं, पूरे पाँच साल बीत गये में भी सत्य की ही तलाश में हूँ। हाँ आज सत्य को में सच ज़रूर सुनाऊँगा।”

गौरी संघाल ने कहा, ”पहले आप पूरी तरह स्वस्थ हो जाइये तभी डॉक्टर बंसल ने बाहर से आवाज़ दी मैडम ! गौरी उठी और रूम से बाहर चलीं गयीं। बाहर डॉक्टर बंसल ने बताया कि मैडम अभी उनको बहुत कमज़ोरी है और दिमाग भी कमज़ोर है अगर इन्होनें कोई गम्भीर बात सोची तो इनकी याददाश्त जा सकती है। आगरा में डॉक्टर गुरनानी है जो ऐशिया लेवल के मनोचिकित्सक हैं। पत्रकार को आगरा दिखा दें क्योंकि अधिक सोचने के कारण ये कुछ बोलते हैं और कुछ बड़बड़ाने लगते हैं।

गौरी संघाल ने कहा, ”डॉक्टर साहब हम पत्रकार की ज़िम्मेदारी आप पर सौंपतें हैं अगर आप चाहें। फिर आगें डी.एम कुछ बोल पातीं कि डॉक्टर बंसल बोले कि मैम मुझे खुशी होगी अगर मैं आपके काम आ सकूँ। डी.एम ने कहा उनको आज ही ले जाओ और पहुँच कर बात करना। गौरी जैसे ही रूम के अंदर आयीं तो पत्रकार को देख कर हैरान रह गयीं। वह बेड पर खड़े होकर बच्चों की तरह उछल-उछल कर बोल रहे थे कि मैम दिल्ली की तैयारी हो गयी है। गौरी ने पीछे मुड़कर देखा तो पीछे खड़े डॉक्टर बंसल बोले,”मैम, देखा आपने ?” बस ऐसे ही ये धीरे-धीरे पूरी तरह पागल हो सकते हैं। गौरी ने पूछा पर डॉक्टर साहब अभी तो ये ठीक थे फिर ये अचानक कैसे ? डॉक्टर बंसल बोले, मैम,इस बात का जबाव तो डॉक्टर गुरनानी ही दे सकते हैं। गौरी ने कहा, इनको डॉ गुरनानी को दिखाने ले जाइये, अब देर ना लगाइये प्लीज़। डॉक्टर बंसल ने कहा, जी मैम। तभी थोड़ी देर में बंसल क्लीनिक के कुछ डॉक्टर अपनी ऐम्बूलेंस के साथ आये और पत्रकार को अपनी गाड़ी में लिटा कर आराम से ले जाने लगे तो गौरी ने पत्रकार से कहा आप घूमने जा रहें है जल्दी वापस आना। पत्रकार बोले, ऐम्बूलेंस में कोई घूमने जाता है क्या ? मुझे पागल समझती हो। प्लीज़ मुझे मत भेजो और इतना कह कर वह बच्चों की तरह रोने लगे फिर एकाएक वहीं गिर कर बेहोश हो गये। गौरी उनकी ये हालत देख रो पड़ी तभी डॉक्टर बंसल पास आकर बोले, ”मैम, चिन्ता ना करें, हम आपको अब तभी बुलायेगें जब देश के इस महान पत्रकार को बिल्कुल स्वस्थ्य कर देगें।

गौरी संघाल ने कहा, ”धन्यवाद डॉक्टर साहब अब आप ही देखो।” डॉक्टर बंसल बोले, ”डोन्ट वरी, कह कर गाड़ी मैं बैठ कर आगरा रवाना हो गये। गौरी अंदर रूम में आकर चुपचाप बैठ गयी और पुराने अख़बारों को देखने लगी। तभी ड्राईवर जगत आकर बोला, ”मैम”.. डी.एम बोली, ”आओ,कुछ कहना चाहते हो ? जगत ने कहा, मैम क्या आपको पता है इस पत्रकार के माँ-बाप दोनों ही पत्रकार थे, उनकी लव मैरैज थी और सबसे ख़ास बात यह है कि उन्होंने अपने इस पुत्र का नाम भी ‘पत्रकार’ ही रख दिया। आज इतने मज़बूत इरादों वाले पत्रकार को यूँ डॉक्टरों के साथ जाते देख काफी दु:ख हो रहा है। गौरी संघाल बोली, ”हाँ, इनके इस नाम की कहानी हमने नेट पर पढ़ी थी। वो जल्दी अच्छे हो जायें। ईश्वर से प्रार्थना करो। जगत ने कहा, बिलकुल मैम। तभी, गौरी के पास कॉल आयी। गौरी ने कहा, ”हैलो,कोई उधर से बोला,” “चुपचाप बीस हज़ार भेज सवाल न करना समझीं।”

गौरी ने कहा, ”जगत,बैंक चलो, जगत ने पूछा आप बताओ बैंक में क्या काम है मैं खुद कर आऊं ? गौरी ने कहा, ठीक है ये लो खाता नम्बर और इस खाते में बीस हज़ार ट्रांसफर कर आओ अर्जेंट। जगत ने कहा, ”मैम ये तो आपकी पासबुक है ? ‘गौरी ने कहा, ठीक है पासबुक ही है। जगत ने आश्चर्य से कहा, ”मुझ पर इतना भरोसा मैम ? यह सुन गौरी मुस्कुराई और बोली, ”भरोसा इतना, उतना नहीं होता, भरोसा तो भरोसा होता है और मैं तुम पर पूरा भरोसा करती हूँ। जगत नम आँखों से बोला कि आपका यह भरोसा कभी नहीं टूटेगा ये मेरा वादा है, कहकर पासबुक को माथे पर लगा लिया और तेज कदमों से बाहर निकल गया।

दूसरे दिन सुबह गौरी ऑफिस पहुँचती है और कहती है मिश्रा जी जगतपुरा के प्रधान को बुलवाओ। मैं उस दिन जगतपुरा गयी थी तो मैने देखा कि उस गाँव की हालत बहुत खराब थी। गंदगी से नालियाँ बजबजा रहीं थीं और गाँव की पुलिया टूटी है जिससे स्कूली बच्चों को स्कूल आने-जाने में बहुत असुविधा हो रही है। उसको बोलो कि मैं कल फिर आ रहीं हूँ। मुझे हर तरफ सफाई चाहिये और गाँव में आकर सरकारी स्कूल की भी सफाई देखूँगी।

इधर जैसे ही आस – पास के गाँव में पता चला कि डी.एम आने को हैं तो पूरे गाँव में दिन-रात सफाई का काम होने लगा। गौरी ने कहा, ”मिश्रा जी ! दीवारें साफ हुईं ? वो जो लिखा था “बाबा बंगाली बवावसीर के लिये मिलें”। ये सुन कर आफिस में सब लोग हँस पड़े। मैडम ने कहा, कल गाँव के सभी प्रधानों और नगरपालिका के लोगों और सभी आधिकारियों की मीटिंग बुलाओ कि वे लोग आठ दिन के अंदर सब साफ सफाई करवा दें वरना सबका एक महीने का वेतन काट दिया जायेगा।

इस मीटिंग के खत्म होने के बाद से पूरे जिले के सभी विभागों के अधिकारी और कर्मचारियों की हालत पस्त थी। डर के कारण चारों तरफ सफाई चल रही थी। डी.एम ने अचानक तहसील, कचहरी और अस्पताल का औचक निरीक्षण किया तो वहाँ हड़कम्प सा मच गया। सब लोग फाईलें सम्भालनें में लग गये। डी.एम ने कहा, ”आप सभी अधिवक्ता गण यूनीफोर्म में आया कीजिये प्लीज़ और मुकदमों को जल्दी फाईनल करने की कोशिश करें ताकि लोगों को तुरन्त न्याय मिले। दो पीढ़ी बीत जातीं है लेकिन दो बीघा खेती का बंटवारा सुलझ नहीं पाता और लड़कियां तारीख़ पर आते-आते बूढ़ीं हो जाती हैं पर उनकी समस्या का निदान नहीं होता।

आप लोग अपना काम तो ईमानदारी से और जल्दी निपटाने की कोशिश करें। अपनी शक्ति को पहचानें, गलत इल्ज़ाम में फंसे लोगों के आप ही भगवान हैं। इस बात को समझें। वकील धीरे से बोले,”ईरा जैसी ही लगती हैं।” फिर दूर खड़े क्लाईन्ट लोगों से उनकी समस्यायें सुनीं और उनको भरोसा दिलाया कि मैं पी. एम. को पत्र लिखूँगी कि देश में तुरन्त न्याय की व्यवस्था हेतु सरकार कुछ ठोस कदम उठाये। इतना कह कर वो गाड़ी में बैठ अपने ऑफिस वापस आ रहीं थीं कि उन्होंने देखा कि चारों तरफ पुल की दीवारें साफ हो रहीं हैं। चारों तरफ लोग सफाई में जुटे पड़े हैं। गौरी संघाल को यह देख बहुत खुशी हुई। गौरी संघाल ने अपने घर के अंदर जैसे ही पाँव बढ़ाया कि तभी एक फोन आया गौरी ने कान में लगाया और तभी किसी ने कहा कि “पाँच हज़ार भेजो”। गौरी ने उदास चेहरे से कहा, ”ओके,अभी भेजती हूँ।” पीछे ड्राईवर जगत ने पूछा क्या बात है मैम ?” गौरी ने कहा, ”जगत,ये पाँच हज़ार रूपये, इस खाते में डाल देना। जगत ने कुछ पूछने कि कोशिश की पर वह हिम्मत न कर सका। जगत चला गइधर गौरी संघाल ने डॉक्टर बंसल को फोन मिलाया, पूछा पत्रकार कैसे हैं ? डॉक्टर बंसल ने कहा, मैम उनकी हालत में अब थोड़ा सुधार हुआ है। हाँ पर किसी व्यक्ति को सोच कर ये फूट-फूट कर रो पड़ते हैं। गौरी ने कहा,”डॉक्टर गुरनानी क्या कहते हैं ? ”डॉक्टर बंसल ने बताया, ”वो कहते है धैर्य रखो सब ठीक हो जायेगा। गौरी ने कहा, ”ठीक है,कहकर फोन रख दिया। गौरी ने कुछ देर बाद खाना खाना शुरू किया तभी कुछ सोचकर एक कॉल की पर किसी ने फोन नहीं उठाया।

गौरी ने भारी मन से खाना खाया और कुछ देर टहलीं फिर उन्होंनें इंस्पेक्टर सावन को कॉल की पूछा, इंस्पेक्टर सावन, ”वो लेखिका अरूणा नारंग जी के केस का क्या हुआ ? इंस्पेक्टर सावन ने कहा, ”मैम, सब आरोपी हिरासत में हैं, माँ कसम बेलौस डंडा बजा है सब पर कोई बख़्शा नहीं जायेगा मैडम जी, वो बेहतरीन उम्दा लेखिका थीं। हैरत हैं मेम जो लेखिका तमाम उम्र महिलाओं की समस्याओं पर लिखती रहीं वह खुद उसी समस्या का शिकार हो गईं। गौरी ने कहा, वो अपनी कहानियों और गजलों में आप बीती लिखा करतीं थीं पर कोई समझ न सका, बस यही तो विड्म्बना हैं इस देश की। इतना कह कर गौरी ने फोन रख दिया और फिर लैप टॉप पर देर रात तक इरा सिंघल के बारे में जानकारियाँ जुटाती रहीं। उसके बाद वो अपने बिस्तर पर लेटने चलीं तो उनकी खाना बनाने वाली बोली, ”मैम,वो ड्राईवर भाई ये पैकेट रख गये हैं। गौरी ने कहा, ओह ! पासबुक, ठीक है अब तुम जाओ।

क्रमशः.........


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