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राजकुमार कांदु

Inspirational

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राजकुमार कांदु

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बलि का बकरा

बलि का बकरा

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सेठ धनीराम का इकलौता पुत्र एक बार गंभीर बीमार पड़ा । गांव के डॉक्टर मुखर्जी ने उसके बचने की गुंजाइश नहीं के बराबर बताई थी फिर भी अंतिम कोशिश के तौर पर शहर के डॉक्टर रस्तोगी को एक बार दिखा लेने की सलाह दी । उसे इलाज के लिए शहर ले जाते वक्त धनीराम ने अपनी कुलदेवी का स्मरण कर बेटे की तबियत ठीक होने पर एक बलि चढ़ाने की मन्नत मान ली । संयोगवश डॉक्टर रस्तोगी का अनुभव काम आया और धनीराम का सुपुत्र धीरे धीरे ठीक हो गया । अपने बेटे की बीमारी खत्म होने से खुश धनीराम को अब अपनी कुलदेवी से मानी हुई मन्नत पूरी करनी थी ।

बलि चढ़ाने की मन्नत पूरी करना कोई आसान काम नहीं था । उनके पूर्वजों ने कभी ऐसा नहीं किया था लेकिन पुत्रमोह में घबरा कर उसने यह बलि देने की मन्नत मान ली थी । बलि देने की गरज से वह एक कसाई के पास एक बकरा खरीदने गया । कसाई ने कई बकरों को दिखाने के बाद एक हृष्ट पुष्ट बकरे की तरफ ईशारा करते हूए कहा ” सेठ जी ! वैसे तो मेरे सभी बकरे अच्छे हैं लेकिन यह जो काले रंग का बकरा आप देख रहे हैं यह उस बकरी का इकलौता बच्चा है जाहिर है इसने बहुत दिन अकेले दूध पीया होगा। इसी लीये यह दूसरों से ज्यादा मजबूत और तंदुरुस्त नजर आ रहा है ।


धनीराम ने एक नजर उस बकरे की तरफ देखा । तभी उसके नजदीक ही उसे एक काली बकरी दिखाई पड़ी जो उसकी ही तरफ देख रही थी । धनीराम कुछ देर तक उस बकरी की तरफ देखता रहा । उसे न जाने क्यों ऐसा लग रहा था जैसे बकरी उससे कह रही हो ” तुम्हारे इकलौते बेटे को बुखार ही तो हुआ था जिसकी रक्षा के लिए तुमने देवी मां से बलि देने की मन्नत मान ली लेकिन यहां तो मेरे बेटे की जिंदगी ही खत्म होनेवाली है । मैं किससे मन्नत मांगूं ? कौन मेरी सुनेगा ? “

कसाई की आवाज से धनीराम की तंद्रा भंग हुई और उसने जवाब दिया ” नहीं भाईसाहब ! अब मैंने बलि देने का विचार त्याग दिया है । जान के बदले बदले जान आज के सभ्य समाज में कहाँ जायज है ? यह पशुवत व्यवहार तो पहले नासमझी में हमारे पूर्वज किया करते थे । यदि हम भी वैसा ही करते रहे तो क्या फायदा हमारी शिक्षा दीक्षा का ? “


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