बिंदी

बिंदी

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उस छोटे से घर मे जब वो ब्याह के आयी तो उसे लगा कि वो किसी महल मे आ गयी है! अपनी किस्मत पर रश्क होता उसे लगता है, जैसे कल की ही बात है। पति जयेश के उदास चेहरे को देखकर "क्या हुआ जयेश आप उदास क्यों है? क्या मुझसे शादी करके आप खुश नहीं है!"

"ये तुम क्या कह रही हो निशा! तुम्हें पाकर तो जैसे मुझे सब कुछ मिल गया।"

"फिर क्या बात है?"

"मेरी छुट्टी कैंसिल हो गयी है, मुझे बॉर्डर पर वापस जाना है, परसों ही निकलना है।"

निशा का गुलाबी चेहरा ये सुनते ही मुरझा गया!

"सुनो निशा चलो खेत तरफ घूमने चलते हैं... थोड़ा मन बहल जायेगा।"

"ठीक, मैं अभी आई।"

निशा शीशे के सामने बाल ठीक करने लगी। पीछे से जयेश आकर

"निशा तुम कितनी खूबसूरत हो... चलो रहने भी दो..."

"परसों तो चले जाओगे तो फिर कौन तारीफ करेगा!"

"बस इतनी सी बात... देखो तुम्हारे माथे पर ये जो बड़ी सी बिंदी है... मेरे जाने के बाद जब भी शीशे के सामने खड़े होना, ध्यान से देखना मैं तुम्हारी बिंदी मे मुस्कुराता हुआ नज़र आऊँगा, तुम समझ लेना मै तुम्हारी तारीफ कर रहा हूँ।"

"अच्छा जी ठीक है... ठीक है... अब चलें!"

"निशा... निशा वो बहुरिया उठ चल तू भी लल्ला को देख ले आखिरी बार... निशा..."

"क हुआ काकी ये आ गये का?"

"हे भगवान ये तो लल्ला के मौत के खबर सुन के सुध बुध खो बैठी है।"

पूरा गांव इस मातम के पल मे उमड़ पड़ा। जीवन हो या मौत... रस्मेंं तो निभानी ही है।

"हे भगवान कैसे इसकी चूड़ियां उतारे... अभी साल भी न पूरा हुआ।"

पड़ोस की काकी रोते हुये निशा की चूड़ियां उतारने लगती हैं।

"हां सिदूर भी पोछ दो... ये बिंदी भी उतारो..."

जैसे काकी का हाथ बिंदीं पर गया... निशा ने जोर का धक्का दिया।

"पगला गयी हो काकी हमरी बिंदी काहे उतार रही..."

भाग कर शीशे के सामने

"देखो जयेश तुम देख रहे हो न... अरे सच्ची तुम तो मेरी बिंदीं में मुस्कुरा रहे... हे भगवान मेरा सिंदूर कैसे फैल गया..."

सिंदूर की डिबिया उठाकर जैसे ही सिंदूर भरने चली...सासु माँ आकर

"न बिटिया... लल्ला नहीं रहा... संभाल अपने आप को।"

"नही अम्मा ऐसे न कहो।"

दोनो निढाल होकर एक दूसरे से लिपट कर रोने लगती है। वहाँ मौजूद सभी की आँखों से आँसू रोके नही रूक रहे।


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