बीती बातें याद आती हैं
बीती बातें याद आती हैं
वो शब की तीरगी, बादलों के बीच से झाँकता महताब, चर्ख में बिखरे सितारे, जिस्म को सहलाती नसीम और गुजरती रेलगाड़ी की ख़ूबसूरत आवाज़। ख़ुदा ने एक बनी ठनी रात ऐसी भी बख्शी थी मुझे।
सब कुछ वैसा ही था जैसा होना चाहिए, जिसकी हर शख्स चाह रखता है पर..हाँ इस पर पे ही तो आकर रुकता है सारा अफसाना। पर.....पर पूरा होते हुए भी बहुत कुछ अधूरा सा था।
विडंबना भी देखो ना कैसी, दिल रो रोकर बेहाल हो रहा था और आंखों का समंदर इस कदर सूखा पड़ा था कि एक बूंद भी बहाने को न मिली। दिल की जमीं का कुछ हिस्सा वीरान पड़ा था तो कुछ हिस्से में जज्बातों के तूफान में किसी अनपढ़ी किताब के सफ़हे फड़फड़ा रहे थे।
वो तूफान तबाही मचा रहा था जिसकी ख़बर दुनिया जहां को ना थी। बीती बातें याद आ रही थी। वो तुम्हारा मुझे मेरी गलतियों पर डांटना और फिर रूठ जाने पर मनाना। मेरे झल्लेपन को कैसे झेल जाते थे ना तुम। सुनो ! मेरी पागलों वाली बातें और मेरी हँसी पर जो तुम खिलखिला कर हँस दिया करते थे, जानते हो वो मुस्कान आज भी मैंने कैद कर अपने में बसा रखी है।
हाँ हाँ सब याद है.... वो बदस्तूर तुम्हारा मेरा पल दो पल का मिलना, मेरा तुमसे झगड़ना और तुम्हारा बस मुझे बोलते हुए देखते रहना, और पता लगने पर कि मैं कबसे बोले जा रही हूँ मेरा एकदम से चुप होना और तुम्हारा मुझे टकटकी लगाये निहारते रहना। वो तुम्हारी आंखों का नशीला जाम आज भी नहीं भूल पाई हूँ। जाम तो वो था जाना उसके बाद तो मानों सब शराब लगता है। गाड़ी तेज चलाने पर टोकते थे ना तुम और कितनी हिदायतें देते थे। जानते हो अब गाड़ी तेज नहीं चलाती।
तेज होने का हक तो अब मेरी धड़कनों ने अपने नाम कर लिया है। बस तुम्हारा ख्याल ही काफ़ी होता है। उन धड़कनों की आवाज़ सुनने, उन्हें जी भर महसूस करने के लिए सब कुछ थाम लिया करती हूँ। उन व्यस्त शोरगुल राहों पर अपने वीरान मन से बतियाने को गाड़ी रफ्ता रफ्ता ही चलाती हूँ। तुम्हारे मेरे दरमियाँ बातें कई अनकही है। कभी कभी वो दबाकर एक कोने में बक्से में ताला लगाकर रखे उस आखिरी अधूरी मुलाकात के पल जब बक्से का सीना चीरते बाहर आते हैं ना तो मेरे दिल के चीथड़े-चीथड़े उड़ा भीतर तक झकझोर कर रख देते हैं। तुम ही बताओ उस मुलाकात के अधूरेपन को किस उज्र से नवाजेंगे हम। कसकर कैसे एक दूसरे को आगोश में भर लिया था ना हमने।
उस कुछ लंबी, पहली और अधूरी मुलाकात में लब छूने की रस्म अदायगी तो रह ही गई थी। वो दिन था और आज का दिन है ये लब अब तक अनछुए पड़े हैं तुम्हारे इंतज़ार में, और इन मुंतजिर लबों की प्यास की गवाही मेरे अधरों का हमसाया तिल अब भी देता है। बेकरारी का ऐसा आलम है, रूह प्यासी है, ये तिश्नगी बुझने का नाम नहीं लेती। तुम ही तो एक मुसव्विर थे मेरी ज़िन्दगी के, तुम्हारे बाद अब कोई मयस्सर नहीं। कहती थी ना सब भूल गयी हूँ, हाँ भूलने के लिये सिर्फ एक पल चाहिए, वह पल जिसे लोग अक्सर मौत कहते हैं। अब और हिज़्र के सदमे सहे नहीं जाते। जी भर के रोना चाहती हूँ। इस कही अनकही दास्तां को आंसुओं में ढालना चाहती हूँ, आँखों के सूखे पड़े समंदर को कतरा भर आँसू बख्श दो ना। वो छूटी अधूरी बातें मुकम्मल कर दो, एक रात के लिये अपना काँधा उधार दे दो ना। साँसें कम होती जा रही है, एक लंबी साँस उधार दे दो ना। बीती बातें याद आती हैं.... बीती बातें याद आती हैं।

