भूत वाली रात
भूत वाली रात
विशु सोलह वर्ष की बच्ची हैं जो गर्मियों की छुट्टियां मनाने नानी के घर हर साल की तरह इस बार भी माँ और छोटी बहन तोषी के साथ आई है।
इतने सालों से चले आ रहे रिवाज ही कह लीजिए नानी नातिन निभा रहे हैं, अब आप पूछेंगे कौनसा रिवाज ? ?
यह ऐसा रिवाज है जो हर घर में बरसों से चला आ रहा है, नानी -दादी का कहानियां सुनाना और बच्चों का साथ बैठ कर सुनना।
विशु- नानीईईईईई •••• आज की कहानी।
नानी बोली "ये देखो, बुला तो ऐसे रही है जैसे गाना गा रही हैI"
विशु- "मेरी प्यारी नानी के लिए तो गाना भी गा दु " और चालु हो जाती हैं। "ये रातें ये मौसम नदी का किनारा ये चंचल हवा " इतने में नानी उसे हल्के से हाथ से डपटते हुए बोली बस बस अब आजा।
"ये लड़की कितनी भी बड़ी क्यूँ ना हो जाए इसकी कहानियाँ सुनने की ललक कभी कम नहीं होती" नानी हँसते हुए बुदबुदाया हुए बोली।
विशु शिकायती लहजे में- "नानी कोई अनसुनी कहानी सुनाना बचपन वाली चूहे और चुहिया की नहीं।"
नानी बोली "चल तेरे गीत ने एक किस्सा याद दिलाया वही सुनाती हूँ।"
विशु और तोषी तकिया गोदी में ले के बैठ गई नानी से कहानी सुनने और नानी ने शुरु किया बोलना।
तो एक बार की बात हैं तेरे नाना जी खेत पर फसल की निगरानी के लिए हर रोज की तरह ठहरे उस दिन पूर्णिमा थी तो चांद भी अपनी चाँदनी को संग लाया था।
नाना जी ने अपने नियमानुसार पहली पहर की क्यारी कर के थोड़ा आराम किए।
( क्यारी करना- खेत में गेहूं जैसी फसलो को कुछ इस तरह बोया जाता हैं की क्यारियाँ बनाई जाती हैं ताकि मेड का रुख बदलने से पानी का रुख बदल सकते है इसका परिणाम यह होता है की पूरे खेत की फसल में पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाया जा सके)
अफवाहें गाहे-बगाहे सुनने को मिलती की, रात को किसी ना किसी को बहुत बार भूत दिखे हैं, पर नाना जी को किसी का डर कभी था ही नहीं, उनके लिए भूतो का अस्तित्व ना के बराबर ही था।
कोई चोर या कोई सांप ना आए बस यह ध्यान रखते थे। आखिर बहुत दिनों से चोरी की घटनाओं का सुनना आम हो गया था। रात को खेत में बहुत से सांप सपोले घूमते हैं यही सोच के खेत के एक कोने में छोटा सा कमरा बना के रखे थे जहां वो काम खत्म करने के बाद सोते थे।
इसी तरह दूसरी पहर भी बीती तीसरी पहर की क्यारी कर देता हूँ सोच के फावड़ा ले के क्यारी पलटने गए, आ ही रहे थे कि उन्होंने कुछ देखा॰॰॰॰॰॰
विशु नानी से चिपकते हुए बोली "भूत था क्या!!!!"
नानी बोली "डर है तो छोड़ दो कहानी और सो जाओ"
पर विशु को तो सुनना था, "वह बोली नानी आप सुनाओ।:
नानी बोली ठीक हैं फिर सुनो- "तेरे नाना जी ने एक आदमी की परछाई देखी जिसके हाथ में कुछ था। वह सोचे कोई मेरा पीछा कर रहा है उन्होंने तरकीब निकाली वह तेज चलने लगे तो परछाई भी उनके पीछे पीछे जाती। अब नाना जी को गुस्सा आने लगा।
नानाजी बोले "कौन है भाई क्यूँ पीछा कर रहा है क्या चाहिए तुझे।"
पीछे से कोई प्रत्युत्तर नहीं आया नाना जी का गुस्सा बढ़ने लगा, पता नहीं क्या मुसीबत हैं ? ? ना कुछ बोल रहा है, ना कुछ सुन रहा हैं!!! नाना जी का गुस्सा काबु से बाहर हुआ और हाथ जो फावड़ा लिए थे उस से वार करने के लिए फावड़ा उठाया ।
इतने में नाना जी देखते हैं सामने वाले ने भी अपने हाथ से कुछ उठाया जैसे उनके वार का जवाब दे रहा हो। बहुत देर मशक्कत करने के बाद नाना जी थक गए और बोले "जा भाई जो करना है कर मैं तो चला।"
उन्होंने उस परछाई पर ध्यान देना छोड़ दिया थोड़ी दूर चलने के बाद अचानक से नाना जी हसने लगे।
विशु- "क्यूँ नानी, नाना जी क्यूँ हसने लगे ? ?"
नानी बोली "अरे मेरी प्यारी गुड़िया क्यूँ की नाना जी को वह याद आ गया जो वह काम में और ये सब होने की वज़ह से भूल गए थे।"
तोषी- "वह क्या भूले थे ?"
नानी- "चांद की रोशनी तेज थी और वह कोई और नहीं तेरे नाना जी की ही परछाई थी जो उन्हें परेशान कर रही थी।"
इतना कह कर नानी और नातिन दोनों जोर जोर से हसने लगे। उनकी हंसी सुन के विशु की माँ नींद में बोली "रात हो गई है माँ अब तो सो जाओ और इनको भी सुला दो।"
बहुत बार हमारे साथ भी इसी तरह की कई घटनाएं हो जाती हैं जिन्हें बाद में याद कर के बहुत हँसते है। यह कहानी मेरे जीवन के करीब भी है और सत्य भी, शायद मेरे कहानियाँ लिखने के प्रेरणा भी वही से मिली जिनसे बचपन से कहानियाँ सुनती आ रही हूँ कभी की राजा की तो कभी भूतो की या फिर कभी उनके समय की। आपके अनुभव जरूर कमेंट्स में शेयर करिए और आप सब के विचार भी जान के खुशी होगी।

