बहू पेट से है
बहू पेट से है
भाग - 7 : ब्रेड पिज्जा और घाट की राबड़ी
रितिका ने ब्रेड पिज्जा सर्व किया। प्रथम ने तो बिना चखे ही ब्रेड पिज्जा का बखान करना शुरू कर दिया। यह देखकर लाजो जी से जब रहा नहीं गया तो वे तपाक से बोली "हां, ब्रेड पिज्जा तो आज पहली बार ही बना है ना नाश्ते में ? पर ये बता कि जब तूने इसे चखा ही नहीं तो तुझे कैसे पता चला कि यह कैसा बना है?" "सिंपल मम्मा , इसका रंग रूप देखकर हर कोई बता सकता है कि यह कितना स्वादिष्ट बना होगा ? क्यों पापा , है ना यह मम्मा की तरह खूबसूरत?" बड़ी ही चालाकी से प्रथम ने तूफान का मुंह पापा की ओर मोड़ दिया था।
बच्चे लोग भी बेचारे अमोलक जी को बेवजह ही फंसा देते हैं। बेचारे अमोलक जी , न उनसे निगलते बनता है और ना ही उगलते। मगर यहां तो सिर बिल्ली के जबड़ों में फंसे चूहे की तरह था इसलिए कहना पड़ा "वाकई, आपकी तरह ही खूबसूरत बना है , देवी जी।" यह कहकर उन्होंने अपनी जान बचाई ।
जब प्रथम ने ब्रेड पिज्जा की तारीफ लाजो जी की खूबसूरती से की तो रितिका नाराज हो गई और इशारों ही इशारों में उसने प्रथम को बता दिया कि उसे आज सोफे पर ही सोना पड़ेगा। बस, आदमी यहीं मात खा जाता है। बेचारा पति , दिन भर इसी जुगत में रहता है कि रात में तो कम से कम उसे गुलाबी बांहों का हार मिल जाये। अगर वह भी नहीं मिला तो फिर जीवन का आनंद ही क्या ? जब रितिका ने इशारे से बताया कि उसे सोफे पर सोना है आज तो प्रथम की तो जान हलक में ही अटक गई इसलिए प्रथम चट से बोल पड़ा
"मेरा मतलब है कि ये ब्रेड पिज्जा मम्मा और रितिका की तरह ही खूबसूरत है।"
पास में बैठी हुई टीया अब तक चुप सी थी। वह ब्रेड पिज्जा का मजा ले रही थी। जब उसने सुना कि खूबसूरती के कसीदे काढे जा रहे हैं और उसमें उसका नाम नहीं है तो उसने भूखी शेरनी की तरह प्रथम को देखा।
टीया को इस तरह घूरते देखकर प्रथम की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। उसे अपनी एक और भूल का अहसास हो गया था। जब औरतों का "गिरोह" बैठा हो तो मर्दों को किसी एक औरत की खूबसूरती का प्रशस्ति गान नहीं करना चाहिए। यह एक सार्वभौमिक नियम है। जो इसका पालन नहीं करता है उसकी गति प्रथम की तरह होती है।
अमोलक जी अनुभवी आदमी हैं इसलिए वे अक्सर चुप ही रहते हैं। मगर प्रथम को तो आधी रोटी पर दाल लेने का गजब का शौक है। तो अब यह दाल जूतों में बंटेगी, यह तय है। वह अब तक चाकी के दो पाटों के बीच में ही फंसा हुआ महसूस करता था खुद को। मगर उसे आज ज्ञात हुआ कि चाकी के तीन पाट होते हैं और इनसे बचना किसी भी तरह संभव नहीं है। आज उसका कचूमर बनना लगभग तय है।
इस संकट से उसे मोबाइल ने उबार लिया। यह मोबाइल वैसे तो खुद बहुत से संकट लेकर आता है मगर कभी कभी यह हमें संकटों से उबार भी लेता है। आज प्रथम के लिए मोबाइल वरदान साबित हो गया। लाजो जी का मोबाइल घनघना उठा।
लाजो जी ने फोन उठाया " हैलो दीदी"
शीला चौधरी का फोन था "कैसी हो लाजो जी?"
"बहुत बढिया। आप कैसी हैं दी?"
"बहुत बहुत बढिया। क्या कर रही हो?"
"बहू रितिका ने नाश्ते में ब्रेड पिज्जा बनाया है। उसी का आनंद ले रही थी।" उन्होंने रितिका की ओर देखकर थोड़ा और जोर से कहा "बहुत स्वादिष्ट बनाती है रितिका ब्रेड पिज्जा। पेट भर जाता है मगर मन नहीं भरता है।"
लाजो जी की बात सुनकर चौधराइन को बड़ा धक्का लगा। उनकी बहू ने तो आज तक कुछ भी बनाकर नहीं खिलाया है और लाजो जी की बहू अभी दो साल पहले ही तो आई है और वह ब्रेड पिज्जा बनाकर सास कोखिला भी रही है। आजकल कौन सी बहू ऐसा करती है ? और ये लाजो जी पता नहीं कैसी सास हैं जो उसकी प्रशंसा भी कर रही हैं। ये अपना "सास धर्म" भूल गई हैं क्या ? लेकिन ये बातें कहने की थोड़ी होती हैं , ये तो दिल में रखने की होती हैं जिन्हें वक्त जरूरत काम में लिया जा सके। आने दो लाजो जी को लेडीज क्लब में।"
"अच्छा सुनो ना लाजो जी , आज एक खास मौके पर हमने 'घाट की राबड़ी' बनाई है। भाईसाहब को बहुत पसंद है ना घाट की राबड़ी। मुझे पता है कि तुम्हें राबड़ी बनाना नहीं आता है। और घाट की राबड़ी बनाना तो बहुत कठिन काम है जो तुमसे हो नहीं सकता है। मैं "घाट की राबड़ी" बहुत अच्छी बनाती हूं। मेरे हाथ की बनी घाट की राबड़ी की तारीफ कई बार कर चुके हैं भाईसाहब। इसलिए दीपिका के हाथों भिजवा रही हूं मैं। भाईसाहब ने अभी नाश्ता तो नहीं किया है ना?"
लाजो जी सोचने लगी कि किस तरह चौधराइन ने यह कहकर कि मुझे राबड़ी बनाना नहीं आता है ,सरेआम मेरी बेइज्जती की है। मगर फोन पर लड़ने में कुछ फायदा नहीं है। वो तो कभी लेडीज क्लब में ही सबके सामने उनकी क्लास लेंगी। अभी तो पीछा छुड़ाया जाये उनसे। इसलिए लाजो जी ने कहा
"अच्छा दीदी, भेज दो"
"अभी रुको , ये बताओ कि 'छाछ' के लिए घर में दही है या नहीं ? अगर नहीं हो तो वह भी भिजवाऊं क्या?"
अब लाजो जी को मिर्ची लगना स्वाभाविक था। यह तो हद हो गई। इतनी बेइज्जती ? काश कि चुल्लू भर पानी होता और वह उसमें डूब जाती। पर ये चुल्लू भर पानी कहीं मिलता ही नहीं है और दिल के अरमान दिल में ही रह जाते हैं डूबकर मरने के। हालांकि घर में सचमुच दही नहीं था मगर वह चौधराइन के सामने इसे कैसे स्वीकार करतीं ? नाक नहीं कट जाती उनकी ? वैसे भी बेचारी नाक न जाने कितनी बार कट चुकी थी। अब तो वह दिखनी भी बंद हो चुकी थी। लेकिन नाक तो नाक है। नहीं दिखे तब भी माना तो जायेगा ना कि नाक है अभी भी। नाक दिखाने के लिए वे तुरंत बोली
" दीदी, आजकल गर्मी में दूध कोई पीता ही नहीं है इसलिए तीन किलो दूध का रोज ही दही जम रहा है। आपको चाहिए तो बताओ?"
शीला चौधरी चहकते हुए बोली "अरे लाजो जी, आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है। दरअसल दही कुछ कम पड़ गया है आज। आप तो जानती ही हैं कि चौधरी जी को छाछ राबड़ी बहुत पसंद है। जिस दिन छाछ राबड़ी बनती है न , उस दिन उनका नाश्ता, लंच और डिनर सब छाछ राबड़ी का ही होता है। ऐसा करो, आप तो दीपिका के हाथ किलो दो किलो दही भिजवा देना। इतना काफी है।"
झूठ किस तरह गले पड़ जाता है यह आज लाजो जी ने देख लिया। घर में नहीं हैं दाने और अम्मा चली भुनाने। जब खुद ने ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी हो तो ना दोष कुल्हाड़ी को दे सकते हैं और ना ही पैर को। हां, दही और राबड़ी को हजार लानतें भेजी जा सकती हैं। पर अब लानतें भेजकर भी दही तो पैदा नहीं हो सकता है। अब क्या करें ? अचानक उन्हें कुछ याद आया
"दीदी, एक बात है। सोचती हूं बताऊं या नहीं ?"
"अरे, बताओ ना इसमें सोचने की क्या बात है?"
"वो क्या है दीदी, कि आज सुबह एक बिल्ली आ गई थी। वो मोटी सी काली काली जो अपने घरों में ही घूमती रहती है सौतन सी?"
"हां, तो क्या हुआ ? बिल्ली झूठा कर गई क्या दही को?"
"अरे नहीं दीदी। बिल्ली बेचारी तो बहुत समझदार है। वह दही नहीं खाती है केवल मलाई मलाई चाटती है। तो उसने सारी मलाई चट कर ली है। दही वैसा का वैसा ही है। कहो तो उसे भिजवा दूं ? तीन चार किलो तो होगा। उससे खूब छाछ बनाना और राबड़ी के साथ चौधरी जी को लंच डिनर सब करवाना।" लाजो जी ने सारा बदला अभी ही ले लिया। उधार कौन छोड़े?"
क्रमश:
