भुतहा मकान भाग 6 : ताबीज
भुतहा मकान भाग 6 : ताबीज
राजन अपने घर आ तो गया मगर उसका सारा ध्यान ताबीज में ही था। क्या ताबीज में कुछ कलाकारी है ? ऐसा क्या है उस ताबीज में जिससे भूत भी डरते हैं ? ये कैसे पता चलेगा कि क्या क्या होता है उस ताबीज में ? इसे जानने के लिए तो ताबीज बनवाना ही पड़ेगा। ताबीज जैसी चीजें भी होती हैं इस दुनिया में और उनका असर भी होता है ? आज के वैज्ञानिक युग में कौन मानेगा भला ? आज के जमाने में अगर भूत हैं तो चमत्कारी ताबीज भी है।
यदि लालवानी जी ने भूत साक्षात देखा है तो देखा है। लालवानी जी झूठ क्यों बोलेंगे। दोनों पड़ोसी और पड़ोसन तो भक्त हैं इस भूत के। दोनों लड़कियां तो कम्प्यूटर विज्ञान से बी टेक हैं फिर भी वे दोनों इस भूत को बहुत मानती हैं। इसका मतलब आज के युग भी इनका अस्तित्व है। इस ताबीज को ऐंवेई कहकर तो खारिज नहीं किया जा सकता है। कुछ तो बात है इसमें जो सभी लोग इसे बहुत मानते हैं। तो क्यों ना एक ताबीज वह भी ले ले ?
ऐसा सोचकर राजन अपने बांये पड़ोसी के घर गया। दरवाजा नीलू जी ने ही खोला। नीलू जी उन्हें अंदर ले गईं और ससम्मान सोफे पर बैठा दिया। आज घर पर नीलू जी अकेली थीं। उनकी बेटी रमा घर पर नहीं थी। राजन ने ताबीज के बारे में पूछा तो नीलू जी कहने लगी कि "वह तो ऑर्डर देने पर बनता है। एक ताबीज एक हजार रुपए का है। अगर आप कहें तो बनवा देते हैं"
"कब तक बन जाएगा?"
"एक दो दिन तो लग जाएंगे "
"ठीक है। आप बनवा दीजिए। ये एक हजार रुपए रखिए। जब वह ताबीज आ जाए तब मुझे बता देना, मैं ले लूंगा"। राजन जाने लगा तो नीलू जी ने उन्हें रोक लिया
"चाय तो पीकर जाइए न। कहो तो खाना भी बना दूं ?"
"नहीं मैम। खाना तो नहीं लूंगा मैं"
"तो ठीक है, मैं आपके लिए अभी चाय बनाकर लाती हूं"
"ठीक है। जब तक आप चाय बनाएं, मैं आपका मकान देख लूं, यदि आप अनुमति दें ?"
"हां हां, क्यों नहीं। आपको अकेले ही देखना होगा। चाय पीने के बाद मैं दिखा सकती हूं"
"आप तो अपना काम कीजिए, मैम। मैं देख लूंगा"। नीलू चाय बनाने चली गई और राजन मकान देखने लग गया। थोड़ी देर में चाय बनकर आ गई और दोनों चाय पीने लगे।
चाय हो और बातें ना हो, यह असंभव है। राजन ने बातों का सिलसिला शुरू किया
"आपको इस मकान में रहते हुए कितने साल हो गए हैं ?"
"यही कोई 5-6 साल"
"और मेरे दायीं ओर वाले मकान मालिकों को?"
"वे लोग हमसे साल भर पीछे आए थे"
"और हमारा मकान कब बना?"
"यह तो अभी दो तीन साल पहले ही बना है। हमारे देखते देखते। चूंकि आपके मकान मालिक बाहर रहते हैं इसलिए ये मकान हमारी देख रेख में ही बना है"
"अच्छा तो यह बात है। क्या तब से यह मकान किराए पर नहीं चढ़ा ?"
"नहीं ऐसा नहीं है। शुरू में उठा था। मगर भूत के रहने की बात सामने आते ही फिर नहीं उठा यह"
इतने में चाय खत्म हो गई थी। राजन अपने घर आ गया। आज उसे डरना नहीं था, यह काम करना था। उसने पूरे घर की लाइटें ऑन कर दीं। पूरा घर रोशनी से नहा गया। उसने खाना मंगवाया। फिर खा पीकर यू ट्यूब पर रामचरित मानस का एक वीडियो चालू कर दिया। वह दत्तचित्त होकर रामचरित मानस सुनने लगा। आज वह भगवान श्रीराम की एक मूर्ति और ले आया था। बजरंग बली और भगवान श्रीराम जी की मूर्तियों को अगर बगल में रखकर वह सो गया।
मध्य रात्रि में अचानक उसकी नींद खुल गई। गेट के खुलने की हल्की सी आवाज आई। उसने आंखें खोलकर चारों ओर देखने की कोशिश की मगर कुछ भी दिखाई नहीं दिया। अंधेरा ही अंधेरा था चारों ओर। उसने तो सभी लाइटें जला रखी थी, फिर बंद कैसे हो गई ? वह इस बारे में कुछ सोच विचार करता इससे पहले "भूत महाराज" की पदचाप सुनाई देने लगी। आज पदचापों की आवाज कुछ तेज थीं।
उसकी निगाह सामने खिड़की पर पड़ी और उसके मुंह से एक जोर की चीख निकल गई। सामने खिड़की से बाहर एक भूत खड़ा था। वही सिर कटा भूत। उसे देखकर राजन की घिग्घी बंध गई।
उसने चिल्लाने की कोशिश की मगर गले से आवाज ही नहीं निकली। उसने पलंग से खड़े होने की कोशिश की। इतने में उसे अपने गले पर किसी की उंगलियों का आभास हुआ। जैसे उसके गले पर कोई उंगलियां फिरा रहा हो।
उसने सामने देखा तो सामने वही सिर कटा भूत खिड़की से बाहर खड़ा था और जोर जोर से अट्टहास कर, रहा था। राजन चौंक गया। यदि भूत सामने खड़ा है तो उसकी गर्दन पर, ये उंगलियां किस की हैं ? उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसके होश फाख्ता हो गए। उसके पीछे भी एक और सिर कटा भूत खड़ा था। उसके हाथ इतने लंबे थे कि वह वहीं से खड़ा खड़ा उसकी गर्दन नाप रहा था। इससे ज्यादा देखने, सुनने, समझने की शक्ति नहीं रही थी राजन में। वह पलंग पर ही बेहोश हो गया।
क्रमश :

