भिक्षुक साहूकार
भिक्षुक साहूकार
एक गाँव में श्रीकांत और सुधाकर नाम के दो भाई रहते थे। दोनो बचपन से ही अनपढ़ थे। वह दोनों मछली का व्यापार करके अपना जीवन व्यतीत करते थें। एक बार उनके घर में एक भिक्षुक आया।
उसने दरवाजे पर दस्तक दी श्रीकांत ने दरवाज़ा खोला उस भिक्षुक ने श्रीकांत से बोला में बहुत भूखा हूँ। क्या महोदय कुछ मेरी मद्द़ करेंगे। श्रीकांत अंदर गया उसने अपने मछली के टोकरे से एक मछली निकाली और बाहर आकर उस भिक्षुक को एक मछली देदी। यह देख कर भिक्षुक खुश होगया, और श्रीकांत को आशीष देकर चला गया। दूसरे दिन वह फिर आया। तब उसने पुनः उन्ही के घर का दरवाज़ा खटखटाया इस बार सुधाकर ने दरवाज़ा खोला, उसे देख कर उस भिक्षुक ने उससे भी वही बोला। मुझे भूख लगी है कुछ दे दीजिये। सुधाकर ने इस बार उसे एक मछली न देकर मछली पकड़ने का कांटा दे दिया।
वह लेकर वह भिक्षुक सोच में पड़ गया कि, की मैं इस काँटे का क्या करूंगा। तभी सुधाकर उसकी चेहरे की भावभंगिमा देकर बोला यह मछली पकड़ने का कांटा है। तो वह भिक्षुक बोला मैं इसका क्या करूँगा। तो सुधाकर बोला मैं तुम्हे बताता हूँ।
वह अपना घर बंद करके उसको समुद्र के किनारे ले गया। वहाँ वह उसे उसका प्रयोग करना सीखाने लगा। काफी समय बीतने के बाद जब भिक्षुक को वह काम सीखने में आनंद आने लगा। तो सुधाकर उस भिक्षुक के आनंद के द्वारा उसके आँखों में आयी चमक को मुस्करा कर देखने लगा। यह देख कर भिक्षुक भी उसके चेहरे के भाव को समझ गया। देखते ही देखते सूर्यास्त होने लगा। दोनो खड़े हुए और उस भिक्षुक ने सुधाकर का धन्यवाद किया और कांटा लेकर चला गया।
दिन प्रतिदिन बीतते गए। दोनो भाई रोज़ की तरह अपना काम करते और घर आ जाते थे। एक दिन अचानक जब दोनों भाई घर लौट रहे थे। तभी एक व्यक्ति उनके सामने आया। दोनो भाई उसको पहचान नहीं पा रहे थे। तभी उसने अचानक से सुधाकर के पैर छू लिए और बोला आपने मुझे पहचाना नहीं। दोनो भी एक दूसरे का मुँह देखने लगे। तभी उस ने बोला मैं वहीं भिक्षुक हूँ जिसको आपने मछली पकड़ने का कांटा दिया था। तो सुधाकर ने कुछ सोचते हुए बोला। हाँ, हाँ अरे! तुम तो वही हो।
तो इस पर भिक्षुक ने बोला मैं आज जो भी हूँ आपकी वजह से हूँ। आपने मेरा जीवन बदल दिया। मेरा उद्धार कर दिया।
आपने जो भिक्षा उस दिन दी थी वैसी भिक्षा मुझे किसी ने नहीं दी। धन्य है आप और आप की सोच। मैं सदैव इस भिक्षा का और आप का ऋणी रहूंगा।
शिक्षा:- “कभी किसी को धन देकर उसको एक दिन का भोजन नहीं दो। उसको जीवन भर का व्यवसाय दो।”