पुनः प्रयागराज

पुनः प्रयागराज

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आज फिर रोज़ की तरह मैं सुबह उठ कर नहा धोकर जब मैं तैयार होकर नाश्ता करने के लिए नाश्ते के की मेज पर आया तभी नाशते के साथ मेरी पत्नी आज का समाचारपत्र मुझे देकर वापस रसोई में अपने काम के लिए गयी। तभी नाश्ता करते हुए मैंने सरसराती हुई नज़रों से समाचारपत्र के मुख्य समाचारों पर नज़र डाली। तभी शायद एक समाचार ने मेरी दृष्टि को उस पर रुकने के लिए बाध्य किया। वह समाचार था, हमारे शहर से संबंधित, समाचार कुछ इस तरह से थे कि, की हमारे मुख्यमंत्री श्री योगी जी ने हमारे शहर का नाम आज से प्रयागराज कर दिया है। उस समाचार को पूरा पढ़ने के बाद ही मैंने समाचार पत्र को मेज पर रखा। उसी के साथ मेरा नाश्ता भी समाप्त होगया। मैंने घड़ी की ओर देखा तो समय 7ः15 हों गये थे, और शायद अब घड़ी मुझ से बोल रही थी की मेरे विद्यालय जाने का समय होगया है। मैं नाश्ते की मेज से उठ कर हाथ मुँह धोने चला गया, फिर उसके बाद मैंने अपने कमरे में जा कर अपना बैग उठाया और बाहर आया और अपनी पत्नी से मैंने कहा, विद्यालय के लिए जा रहा हूँ शाम तक आता हूँ। यह सुनकर मेरी पत्नी ने मुझे देखा और मुझे मुस्कुराते हुए विदा किया।

मैं रास्ते भर यह सोचता रहा कि, की 444 साल बाद ही सही प्रयागराज से क्या खोया हुआ अस्तित्व लौट आएगा। मैं कुछ कहुँ या न कहुँ पर प्रयागराज इस शब्द से ही कितनी पवित्रता, कितनी शांति झलकती है। देखते ही देखते कब रास्ता खत्म हुआ और मेरा विद्यालय आ गया पता ही नहीं चला।

मैंने विद्यालय में प्रवेश किया तभी सभी वहाँ पर एक दूसरे का अभिनंदन कर रहे थे। कुछ बच्चों ने मेरे पास आकर अभिनंदन किया तो मैंने मुस्कराते हुए अभिनंदन स्वीकृति में सिर हिला दिया। तभी सभा प्रार्थना की घंटी बज गयी। सभी ने प्रार्थना स्थल पर इकठ्ठा होकर प्रार्थना की। उसके पश्चात सभी अपनी कक्षा में गए। मैं भी अपनी कक्षा में आया बच्चों ने मेरा अभिनंदन किया, मैंने भी अभिनंदन स्वीकार किया। बच्चों को बैठने के लिए बोला तथा उनकी उपस्थिति लेने के बाद, मैंने श्यामपट्ट पर प्रयागराज लिखा। 

बच्चों ने बोला यह कौन सा पाठ है? गुरु जी!

गुरु जी- बच्चों यह हमारे शहर का नाम है। 

एक शिष्य हाँ! गुरु जी यह नया नाम हैं, मैंने भी सुना है। 

गुरु जी- नहीं! यह नया नहीं, वास्तविक नाम हैं।

दूसरा शिष्य - वास्तविक नाम यह कैसे गुरु जी ? 

गुरु जी- हाँ! पहले हमारे शहर का नाम यही था, प्रयागराज। प्रयाग दो शब्दों से मिल कर बना है, प्र यानी के प्रथम याग अर्थात यज्ञ। इसी शहर में पहला यज्ञ हुआ था इसलिए इसे प्रयाग कहते है। 

एक शिष्य - वह यज्ञ किया किसने था ?

 गुरु जी - इसके पीछे भी दो मान्यताएं है। पहली यह कि, की सृष्टि का निर्माण करने से पहले ब्रह्मा जी ने यहीं दशाश्वमेध घाट पर यज्ञ किया था। दूसरी मान्यता यह की आर्यों ने यहाँ माँ सरस्वती के घाट पर पहला यज्ञ किया था।

इसिलए इस नगरी को प्रयाग कहते हैं। इसे तीर्थराज प्रयाग भी कहा जाता है, क्योंकि पुराणों के अनुसार जहाँ पर यज्ञ अनुष्ठान जप तप हो, उस स्थान को तीर्थ माना जाता है। 

तीसरा शिष्य - लेकिन गुरू जी आपने तो तीर्थराज और प्रयागराज बोला इसमें राज शब्द क्यों जुड़ा है? इसका क्या अर्थ हुआ?

 गुरु जी- यहाँ पर यज्ञ हुए है, किन्तु बड़े-बड़े यज्ञ हुए है। इसलिये बड़े यज्ञ का स्थान होने के कारण प्रयागराज हुआ। इसी प्रकार से तीर्थों में इस नगरी का स्थान बड़ा होने के कारण ऐसा बोला जाता है। आर्यों का मानना था कि, की यहाँ पर साढ़े तीन करोड़ तीर्थ स्थल है। स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल में एक-एक करोड़ तथा वातावरण में 50 लाख हैं। इतना ही नहीं इस नगरी को सात्विक धार्मिक स्थल भी माना जाता है। वैसे तो यह पूरी नगरी धार्मिक स्थल है।

लेकिन कुछ मुख्य धार्मिक स्थल है जैसे संगम, वेणीमाधव, अलोपी देवी, ललिता देवी, नागवासुकी, शिवकुटी, मनकामेश्वर, बड़े हनुमान जी का मंदिर आदि। इस नगर का उल्लेख रामायण काल में भी कई बार मिलता है। जैसे जिसे बड़े हनुमान जी का मंदिर बोला जाता है, उसे बंधवा के हनुमान जी या लेटे हनुमान जी भी बोला जाता है। /यान से देखने पर ऐसा दिखता है उनके एक कंधे पर राम जी तथा दूसरे कंधे पर लक्ष्मण जी बैठे हैं। ऐसा भी माना जाता हैं की यह हनुमान जी धरती के नीचे से आयें हैं, और हर सावन के महीने में माँ गंगा हनुमान जी का स्पर्श करने आती है। उसी तरह से मनकामेश्वर मंदिर की भी कथा है कि, की अयो/या से वनवास के लिए जाते समय चित्रकूट जाने के लिए इस नगरी का भी उद्धार राम जी सीता जी और लक्ष्मण जी ने किया था। जहाँ अब मनकामेश्वर मंदिर हैं, वहीं पर सीता जी ने शिव जी की आराधना करने के लिए कहा था। ऐसा माना जाता है की राम जी ने ही वहाँ पर एक शिवलिंग की स्थापना करके सीता जी के साथ शिव जी की पूजा करके ही आगे की ओर अग्रसर हुए।

इस नगरी को त्रिवेणी भी कहते है।

एक और शिष्य - त्रिवेणी क्यों ?

 गुरु जी- त्रिवेणी इसलिये क्योंकि यहाँ पर गंगोत्री से निकली माँ गंगा, यमुनोत्री से निकली माँ यमुना और माँ सरस्वती का मिलन होता है। तीन नदियों का जहां मिलन होता है, उसे संगम कहते है। तीन नदियों के मिलने को त्रिवेणी भी कहते है। पुराणों में भी इसका वर्णन है। जब समुद्र मंथन हुआ था, तब धरती पर समुद्र से निकले अमृत कुम्भ से चार जगह पर अमृत की कुछ बँदे गिरी थी, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन तथा प्रयागराज। जिसकी वजह से माघ के महीने में पहले तो हर 6 साल में अर्ध कुम्भ, 12 साल में कुम्भ और 144 सालों में महाकुम्भ लगता था। किन्तु बाद में 6 साल में अर्ध कुम्भ और 12 साल में कुम्भ जो होता था, उसी को महाकुम्भ भी कहने लगे। अब आधुनिक समय में हर साल कुम्भ का आनंद लिया जा सकता है और हर 6 साल में अर्ध कुम्भ का भी आनंद लिया जा सकता है। 

एक और शिष्य- अरे वाह ! इतनी सारी जानकारी मेरे नगर की है। यह तो मुझे पता ही नहीं था। मैं तो बस यही सोचता था की मेरे नगर में केवल महान व्यक्तित्व वाले लोगों ने ही जन्म लिया हैः- जैसे पंडित नेहरू जी, श्री मदन मोहन मालवीय जी, श्रीमती इंदिरा गांधी जी, श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ जी, श्री हरिवंशराय बच्चन जी, श्रीमती महादेवी वर्मा जी, श्री अमिताभ बच्चन जी, श्री /यान चंद जी आदि। किन्तु इस बात से अनभिज्ञ था की यह नगरी ही खुद में महान है। किन्तु इसका नाम इलाहाबाद कैसे पड़ा?

गुरु जी- इसका नाम इलाहाबाद मुगल शासक अकबर ने रखा था, सन् 1575 में जिसका अर्थ था, ईश्वर की धरती, किन्तु आज 444 साल बाद इस नगरी को इसके पुराने नाम के रूप में खोया हुआ अस्तित्व मिल गया। 

बच्चे आपस मेंः- एक बच्चा दूसरे से- मैं तो अपने दिल्ली वाले भुआ के बेटे को भी बताऊंगा। दूसरा बच्चा- बिल्कुल मैं भी अपने देहरादून वाले चाचा जी और उनके पूरे परिवार को बताऊंगा, यही के यह नगरी खुद में कितनी महान और ऐतिहासिक है। इसी के साथ घंटी बज जाती है, सभी बच्चे खड़े होकर गुरु जी को प्रणाम करते है। अतः गुरु जी बच्चो को बैठने के लिए कहते है और कक्षा से चले जाते हैं।


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