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अशोक जोशी

Inspirational Others

3.9  

अशोक जोशी

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बेटे-बेटियां

बेटे-बेटियां

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विकास और दिवाकर बचपन के दोस्त होने के साथ साथ अच्छे पड़ोसी भी थे। विकास उच्च आय वर्ग परिवार से था वहीं दिवाकर मध्यम आय वर्ग परिवार से संबंध रखता था, विकास ने सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया था और पी.डब्ल्यू.डी विभाग में असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर कार्यरत था दूसरी और दिवाकर ने बी.ए करने के बाद सरकारी स्कूल में अध्यापक का कार्य करता था।

दोनों की शादियाँ भी करीब करीब साथ साथ ही हुई थी। विकास की पत्नी अपर्णा उच्च घराने की अपने साथ ढेर सारा दहेज लेकर आई थी वहीं दमयंती मध्यम आय वर्ग परिवार से शादी होकर आई थी। दोनों ही परिवार की कोई तुलना नही कर सकते थे, उनके रहन सहन में जमीन आसमान का फर्क था। अपर्णा को जो मिलता था उसमें भी वह दुखी रहती थी, जबकि दमयंती अपने पति की आमदनी से खुश भी थी और कम रूपये पैसों में घर चलाने में माहिर भी थी।

समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था और अपर्णा दो जुड़वां बेटों की माँ बनीं और दमयंती को भी दो जुड़वां संतानों का सुख मिला और वे दोनों बेटियां थी।

विकास को अपने काम और रुपया कमाने से और अपर्णा को अपनी किटी पार्टियों से फुर्सत नहीं थी और दोनों बेटों की परवरिश की जिम्मेदारी उनकी नौकरानी के भरोसे थी तो उन्हें संस्कार भी नौकरानी वाले ही मिल रहें थे। इस मामले में दिवाकर और दमयंती का नजरिया बिलकुल उलटा था, उन्होंने यह स्वीकार कर लिया था उनकी दोनों बेटियां भी किसी बेटों से कम नहीं है और दोनों मिलकर अपनी सामर्थ्य अनुसार दोनों बेटियों का पालन पोषण कर रहे थे।

अपर्णा की नौकरानी को बच्चों को संभालने के बीच में व्यसन करने की आदत थी और वह उसे पूरा भी पूरा कर लेती थी और उसकी यह हरकतों को दोनों छोटे बच्चे ताकते रहते थे।

> विकास के पास अब अच्छी धन दौलत थी उसको दिवाकर के घर के पास रहना खटकने लगा था इसीलिए उसनें एक पॉश एरिया में अपना नया घर खरीद लिया, दिवाकर से उसका मिलना जुलना ना के बराबर हो गया।

विकास के दोनों बेटे पढ़ाई में कमजोर थे और तीन बार फेल भी हो गए थे और जब तक वे पी.यू.सी करते तब तक दिवाकर की बेटियों ने ग्रेजुएशन खतम कर लिया था और अब वे एम.बी.ए की तैयारी कर रही थी।

ग्रेजुएशन करते करते विकास के दोनों बेटों सुरेश और राजेंद्र को पसीना आ गया, वहीं दिवाकर की बेटियां दीक्षा और राजश्री का एम.बी.ए करने के बाद दोनों का सिलेक्शन दो अलग अलग मल्टीनेशनल कंपनियों में हो गया था।

अब विकास और अपर्णा को भी समझ में आने लगा था की बच्चों की परवरिश नौकरानी पर छोड़ने के क्या परिणाम हो सकते है, अपनी भूल समझ में आते आते काफी देर हो गई थी।

शहर में जितने नये ब्रिज बनाए गए थे अधिकतर में क्रेक डवलप हो गए थे और स्थानीय जाँच होने तक विकास को संस्पेंड कर दिया गया, कहते है जब समय खराब चलता है तो हर जगह असफलता हाथ लगने लगती है। दूसरी और दिवाकर की दोनों बेटियों ने एक अलग ही मुकाम हासिल कर लिया था। अब दोनों बेटियों ने अपना घर शहर के पॉश एरिया में बनवाने का निर्णय ले लिया था।

रुपये-पैसे और समय का हमेशा आदर करना चाहिए, रुपया और समय कब हाथ से निकल जाए कोई भी कुछ कह नहीं सकता....

यह भी बात तय है कि अच्छे संस्कार बच्चों को सही दिशा में प्रगति करने में सहायक सिद्ध होते है।

यहीं बात विकास की समझ में जल्दी आ जाती तो उसके साथ वह नहीं होता जो अब हो रहा है।

बुरा वक्त कभी कह कर नहीं आता यह हम आजकल रोजाना पढ़ भी रहें है और देख भी रहें हैं।



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