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siddharth sharma

Drama Tragedy

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siddharth sharma

Drama Tragedy

बेसाहरा कश्ती

बेसाहरा कश्ती

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कितनी पत्थर दिल औरत है! अरे बेटे कि मौत का जरा भी अफसोस ,कुछ इसी तरह के ताने नूरजहाँ बाग की तमाम औरतो के बीच गूंज रहे थे, लेकिन बत्तीस वर्षीय नरगिस के उपर इसका कोई असर नही हुआ,क्योकि वो जानती थी कि दुनिया के तानो से दूर डल झील का पानी उसके हौसले को सलामी दे रहा था। क्यूकि यही डल झील का पानी गवाह था नरगिस कि उस दर्द भरी जिंदगी का जिसमें कभी कश्ती चलाते वक्त नरगिस के आंसू टपक जाया करते थे।

        नरगिस अपने माता पिता के साथ कश्मीर के कुपवाडा़ जिले मे एक छोटे से घर मे रहती थी,,उस समय नरगिस को सिर्फ एक ही शख्स से बहुत प्यार था, वो थे उसके वालिद अब्दुल मौमीन जो पेशे से एक केमिकल कंपनी मे मजदूर थे।

    ये क्या अब्बू आज फिर आपको खांसी मे खुन आ गया, जब कंपनी ने आपको मुफ्त मेडीकल चेक-अप कि पालिसी दी है तो आप करवाते क्यू नही,,,अपने पिता को पानी देते हुए नरगिस ने कहा

   लेकिनअब्दुल के पास नरगिस के इन चुभते हुए सवालो का कोई जवाब ना था,,,अब्दुल अपने आप मे गुनहगार महसूस कर रहा था क्योकि वो अपनी बेटी के सवालो का जवाब देने मे असमर्थ था,,,,,,भला क्या जवाब देता वो नरगिस को,इसे विशेषता कहें या खामी मगर मध्यमवर्गीय घरो के मुखिया मे एक बात होती है।वो अपने उपर आई बड़ी से बड़ी समस्याओं को किसी से साझा नही करते।

          अब्दुल भी अपनी जिन्दगी के उन्ही हालातों मे था केमिकल कंपनी मे काम करते हुए विषैली गैसों के प्रभाव से उसे pulmonary ulceration जैसी बिमारी हो गयी ।

          

     आमदनी इतनी नही थी कि ठीक से इलाज हो सके और ना ही जेहन मे इतने शब्द थे कि अपनी बेटी की बातो का जवाब दे पाता। नरगिस चुपचाप स्कूल के लिये निकल गयी।


       सुना था नरगिस के स्कूल के रास्ते मे एक नदी थी जिसे कश्ती से पार करते हुए स्कूल जाना होता था। उसी कश्ती मे नरगिस कि मुलाकात होती थी इमरोज से, जी हां! बिल्कुल सही समझ रहे है आप इमरोज का लड़कपन का उस कच्ची उमर मे होने वाला प्यार था नरगिस,,,,,इमरोज नरगिस से बहुत प्यार करता था। इमरोज के अब्बु नदी मे कश्ती चला कर और मछलियाँ पकड़ कर परिवार चलाया करते थे। इमरोज और नरगिस दोनो साथ साथ स्कूल जाते थे, और उस दिन भी वो दोनो इमरोज के पिता कि कश्ती मे बैठ कर स्कूल जा रहे थे।

कहते है उस दिन नरगिस बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। इमरोज तो बस उसे देखता ही रह गया, ,।


"तेरीे पलकों के खुलने से उगता है आफताब कहीं,

सुर्ख फलक पर छा जाता उजाले का सैलाब कहीं।

फिर दूर कहीं गुलशन मे खिलते होंगे लाखो गुलाब,

चुरा लूं सबकी नजरों से जो तुझसा मिले गुलाब कहीं।

यूं तो तुझसे सवालात करने मे खूब डरता हूं "ताशी"

मगर रहता हू तेरे चारसू काश मिल जाए जवाब कहीं।


नाव से उतर कर वो दोनो स्कूल कि तरफ चल दिये,नरगिस भी इमरोज के इरादों से बखूबी वाकिफ थी।या यूं कहिये कि वो बस इमरोज के बोलने का इंतजार कर रही थी।आखिर थोड़ी सी हिम्मत जुटा के इमरोज ने नरगिस को बोला।

  नरगिस! वो मुझे,,,वो, ,,हां मुझे तुमसे कुछ बात करना है इमरोज ने अपना सर खुजाते हुए कहा

 नरगिस भी समझ गयी थी लेकिन उसने अपनी खुशियों पे काबू रखकर बड़े ही अकड़ू अंदाज मे पुछा। .क्या बात है इमरोज!

  इमरोज के चेहरे पर बारह बजे हुए थे बड़ी मुश्किल से इमरोज ने कहा कि नरगिस मै तुमसे प्यार करता हूं। नरगिस ने इमरोज कि तरफ गुस्से से देखा और फिर थोड़ी देर बाद मुस्कुरा कर चली गयी। इमरोज को उस का जवाब मिल गया था उस दिन दोनो ही बहुत खुश थे। लेकिन वो कहते है ना कि खुशियां ज्यादा देर तक स्थाई नही रहती।

          शाम को जब नरगिस घर आई तो उसके घर के एक कोने मे अपनी मां को बैठ कर रोते हुए देखा, और सामने थी पिता अब्दुल की लाश, नरगिस का गला सूख गया, उसे तो मानो ये पुरा आसमान भारी बोझ लगने लगा। उस दिन नरगिस अपने आप को दुनिया कि सबसे अकेली महीला समझ रही थी,,,,जब उसी के सामने उसके अब्बु का जनाजा उठाया जा रहा था, ,,,,,इस सदमे ने दिमाग पे बहुत गहरा असर डाला,,वैसे ही नरगिस को भी इस सदमे से उबरने के लिये ठीक से तैय्यार भी नही थी कि,एक भयंकर भूकंप ने कुपवाड़ा को तबाह कर दिया, ,,,,इस भूकंप कि चपेट मे कई मासूम लोग आ गये जिनमे नरगिस कि मां भी शामिल थी। उसी मे इमरोज का पुरा परिवार तबाह हो गया लेकिन जैसे तैसे इमरोज नरगिस को बचा कर वहां से भागने मे कामयाब रहा।


    रात उन्होने एक अस्तबल मे शरण ली राहत कि सांस लेते हुए इमरोज ने नरगिस कि तरफ देखा उसे फक्त खालीपन के कुछ भी नजर नही आया,,,नरगिस को तो अपनी आंखो पर अभी तक यकीन नही आ रहा था,,,,नरगिस का हलक सूख चूका था और रोते रोते आंखे लाल हो चुकी थी,,,बेचारी नरगिस शहर छोड़ते हुए ठीक से अपनी मां का मरा हुआ चेहरा भी ना देख सकी। शायद खुदा को यही मंजूर था ये सोचते हुए नरगिस अपनी तकदीर को मन ही मन कोस रही थी।

    देखो नरगिस! हमारे मौजूदा साहारे तो हमसे छिन गये लेकिन अब यही हमारे लिये बेहतर होगा कि हम एक दूसरे का सहारा बनें। इमरोज ने नरगिस का हाथ थाम कर बोला,,,नरगिस ने भी इमरोज के इस फैसले का स्वागत किया,,,ना जाने कहां से आ गयी थी उसमे ये सारे फैसले कि ताकत,,,,इमरोज और नरगिस श्रीनगर आ गये यहां उन्होने अपना छोटा सा आशियाना बनाया,,,,जो किसी भी प्यार के मंदिर से कम ना था।

जहां नरगिस इमरोज के साथ बेहद सुकून महसूस करती थी।शुरूआती दौर मे उन्हे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा,लेकिन दोनो के दरमियां इतना अटूट इश्क था कि सारी परेशानियां उन्होने एक साथ झेल ली,,,,।

    जिन्दगी बेहद सुकून से चल रही थी मगर नरगिस को आज भी वक्त के उन पुराने पन्नों का अहसास होता था जिसमे एक एक करके उसके सभी सहारे छिन गये,,इधर इमरोज ने दिन रात कड़ी मेहनत से एक कश्ती खरीदी और फिर उस कश्ती से वो अपने पुश्तैनी काम को अंजाम देने लगा, ,,,वो डल झील मे अपनी कश्ती से सैलानियों को बैठा के, खूबसूरत वादीयो के नजारो से रुबरु करवाता था।

        इन्हीं खूबसूरत वादीयो सी खशनुमा हो गयी थी इमरोज और नरगिस कि जिंदगी जब उनका छोटा सा खपरैल घर परवेज कि किलकारीयों से गूंजने लगा।जैसे जैसे परवेज बड़ा होता रहा नरगिस ने उसकी परवरिश मे कोई कमी नही छोड़ी,,,,लेकिन शायद बदकिस्मती का नरगिस से जैसे पुराना ताल्लुक हो,,,,एक दिन झील के गहरे पानी मे एक डूबती हुई महीला को बचाने के लिये इमरोज़ भी पानी मे कूद पड़ा, ,,और बदकिस्मती से ना इमरोज बच सका ना ही वो महीला,,,,,चार दिन बाद जब घर पर इमरोज कि लाश आयी तो उसे देखकर नरगिस मानो जिंदा लाश कि तरह खड़ी रही,,,,अश्को का सैलाब नरगिस को डूबो गया।

     जिन्दगी का वो हसीन सफर जो उसने इमरोज के साथ तय किया था मानो जैसे वो सब कुछ थम गया था। वो आठ साल का परवेज जिसके सर से बाप का सांया उठ चुका था, अपनी रोती हुई मां के आंसू पोछ रहा था।


     दफ्नाने के बाद नरगिस ने खुदकुशी करने कि ठान ली देखा परवेज बाहर खेल रहा है,,,नरगिस ने दरवाजा बंद किया और चाकू से अपने आप पर वार करने ही जा रही थी तभी अचानक दरवाजे पर किसी कि दस्तक हुई नरगिस ने चाकू को एक तरफ रख कर दरवाजा खोला,

             मां! मुझे पानी पीना है दरवाजे पर मासूम परवेज खड़ा था, परवेज को गले लगा कर नरगिस रो पड़ी, जैसे नरगिस कि रूह उसे कह रही थी कि रूक जा ये क्या कर रही है,,,,माना तकदीर ने तुझसे सारे सहारे छिन लिये मगर इस बच्चे से अपना एक मात्र सहारा क्यूं छिन रही है। तूने जरा भी ख्याल किया कि तेरे मरने के बाद इस बच्चे का क्या होगा?

  नरगिस ने पतवार उठाई और अपने शौहर के काम को अंजाम देने का काम करने लगी अब नरगिस अपने शौहर कि कश्ती से सैलानियों को डल झील दर्शन करवाती और उसी आमदनी से घर चलाती और परवेज कि परवरिश करती धीरे-धीरे धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य स्थिती मे आने लगा और नरगिस के होठों ने शायद फिर से मुस्कुराना सीख लिया,,,,,मगर नरगिस अनजान थी कि वक्त एक बार पुनः करवट लेगा। परवेज को ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारी हो गयी मगर नरगिस काम कि मसरूफियत के कारण, परवेज के सुखते हुए शरीर कि वजह नही समझ पा रही थी।

    और एक दिन कश्ती को किनारे लगा कर जब नरगिस घर लौटी तो तेज बुखार के कारण परवेज बिस्तर मे तड़प रहा था।नरगिस फौरन उसे अस्पताल लेकर तो गयी लेकिन अस्पताल पहुंचने तक परवेज खुदा को प्यारा हो गया।

    नरगिस कि गोद मे परवेज कि जान चली गयी,,,और नर्गिस को मानो जैसे अपनी आंखो पे यकीन ना हुआ मगर इस बार नरगिस रोई नही । अपने बेटे कि लाश को कब्रिस्तान कि ओर ले गयी । नरगिस के आंखो मे एक विशेष चमक थी,,,,दुनिया के यानी का उस पर कोई असर ना हुआ बेटे को दफ्न करने के बाद नरगिस ने फिर पतवार उठाई और चली गयी अपनी कश्ती कि ओर।


"अब मजबूत है वो शाखें जो झूक जाती थी तूफां कि मार से,

के दर्द भी शायद मिट जाता है एक नये दर्द के इंतजार से।

ये दुनिया एक दरिया है यहां डूबती है बेसहारा कश्तीयां कई,

ढह जाते है बसते हुए आशियाने उजड़ जाती है बस्तियां कई ।"


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