चंबा
चंबा
भाईसाहब वो पेंटिंग कितने की है ? और विशाखा ने दीवार पर लगी उस खुबसूरत पेंटिंग की तरफ इशारा करते हुए कहा। जी नहीं मैडम ये पेंटिंग बहुत खास है बेचने की नहीं है, श्यामलाल ने विशाखा की तरफ मुस्कुरा कर कहा।
क्या हुआ मेरी जान ?
देखो ना अक्षय ! मुझे वो पेंटिंग कितनी अच्छी लग रही है और ये भाईसाहब मुझे वो पेंटिंग देने से मना कर रहे हैं।
अरे दे दीजीए भाईसाहब वर्ना चंबा से मुंबई पहुँचते पहुँचते मैडम हमारी जान ले लेंगी, अक्षय ने विशाखा को ताना मारते हुए कहा।
कुछ एसे ही ढेर सारी शारारते और बेशुमार प्यार से भरा हुआ था अक्षय और विशाखा का रिश्ता जो कुछ महीनों पहले एक दूसरे के मिस्टर एंड मिसेज बने थे। अक्षय जो मुंबई के एक मल्टीनेशनल कंपनी मे CA था विकेंड पर अपने हनीमून के लिए विशाखा के साथ हिमाचल की हसीन वादियों में घूमने के लिए आ गया, यहां चंबा में शापिंग के दौरान विशाखा को श्यामलाल की शाप पे रखी हुई एक पेंटिंग पसंद आ गयी।
कहते हैं श्यामलाल के पास भी बनिये का दिमाग था। किसी भी चीज को बड़े से बड़े दामों पे बेचने का हूनर था। दिमागी खेल खेलने में तो जैसे जनाब ने Phd. कर रखी थी। मगर फिर आज अचानक ऐसा क्या हो गया जो उस पुरानी पेंटिंग को श्यामलाल बेचना नहीं चाहता !
देखिए भाईसाहब मुझे सिर्फ यही पेंटिंग चाहिए। मैं इस पेंटिंग के आपको अच्छे पैसे दे दूंगी और विशाखा अपनी जिद् पे अड़ी रही।
भाईसाहब मै आपसे रिक्वेस्ट करता हूं आप प्लीज मेरी वाइफ को ये पेंटिंग दे दिजीए,अक्षय ने बहुत ही पोलाइट लहजे मे श्यामलाल को समझाने की कोशिश की।
उस पेंटिंग को अपनी दोनों बांहो मे भीच कर श्यामलाल ने कहा आप नहीं जानते साहब ये पेंटिंग मेरे लिये कितनी अनमोल है। वैसे तो इस पेंटिंग के पीछे बड़ी लम्बी कहानी है।
कहानी ? कैसी कहानी ? दोनों ने एक साथ पूछा।
राजू मैडम और साहब के लिए दो कप चाय लाना, राजू को चाय का आर्डर देते हुए श्यामलाल ने एक लंबी सांस भरते हुए कहा कुछ रिश्ते शायद हमेशा के लिए अधूरे ही रह जाते हैं, ये पेंटिंग एसे ही एक रिश्ते का प्यारा सा सबूत है।
चाय के कप से एक सीप लेकर श्यामलाल ने कहा, दरअसल बात तीस साल पुरानी है, ये तस्वीर मैंने जैनब के लिए अपने हाथों से बनाई थी। जैनब वो शेख मोहल्ले वाले इनायत चाचा की बेटी और मेरे बचपन का प्यार।
क्या जैनब कि शादी कहीं और हो गयी। विशाखा ने चाय पीते हुए पूछा।
और एक ठंडी सांस भरते हुए श्यामलाल ने कहा - कहीं और हो जाती तो ही ठीक था कम से कम बेचारी बेमौत मारी नहीं जाती,
अक्षय ने पूछा - is she no more ?
उसके सवाल को बीच मे रोकते हुए शयामलाल ने कहा श्यामू ! जी हां श्यामू कहती थी वो मुझे प्यार से हम लोग अक्सर चंबा देवी के मंदीर के पिछे मिला करते थे। कभी कभी झील के किनारे एक दूसरे का हाथ पकड़ कर घंटों एक दूसरे से बातें किया करते थे। ये जात धर्म तो हम दोनों के लिए मानो सिर्फ एक छोटी सी बात थी। चंबा की इन्हीं खूबसूरत वादियों के बीच एक दूसरे को गले लगा कर साथ जीने मरने की कसम खाई थी हम दोनों ने। हिजाब पहन कर जब वो मोहम्मदी मस्जिद में जाती थी तो सजदे मे वो झुकती थी और दुआंए मेरी कुबुल हो जाती थी।
मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था वो क्या कहते हैं, आप शहर वालों की भाषा में bad luck.
इस बार दोनों ने एक साथ पूछा- क्या आपने अपने और उनके मांबाप से बात करने की कोशिश नहीं की ?
"कोशिशें और मेहनत हर बार रंग नहीं लाती साहब" इस बार कहते कहते श्यामलाल का गला भर गया।
मैंने अपने बाबूजी को बहुत समझाने की कोशिश की मगर वो नहीं माने, उसके घरवालों का जवाब भी ना में ही था, हम दोनों ने एक साथ चंबा छोड़ कर भाग जाने की सोची उस रात मै ठीक 8 बजे बस स्टेशन पहुंच गया मगर वो ,
फिर दोनो ने पूछा -मगर वो क्या।
श्यामलाल ने कहा - वो नहीं आ सकी। उसके घर वालों ने उसे एक कमरे में बन्द कर दिया था जहां उसने खुदकुशी कर ली।
आज मेरी जैनब तो मेरे पास नहीं मगर इस पेंटिंग मे मुझे अपनी जैनब का मुस्कुराता हुआ चेहरा साफ दिखाई देता है, वैसे मै ये पेंटिंग बेचने नहीं वाला था मगर आप दोनो का प्यार देख कर मैं आपको ये पेंटिंग दे देता हूं।
अक्षय ने श्यामलाल के कंधे पर हाथ रख कर कहा -मै समझ सकता हूं भाईसाहब कहो कितने की है ये पेंटिंग ?
वैसे तो अनमोल चीजो का कोई भाव नहीं होता मगर आपको ये पेंटिंग मे सिर्फ दस हजार रूपए मे दे देता हूं, श्यामलाल ने मुद्दे पर आते हुए कहा।
अक्षय और विशाखा खुशी खुशी पेंटिंग लेकर चले गये।
उनके जाने के बाद दुकान मे काम करने वाला नौकर राजू श्यामलाल को दात देते हुए कहने लगा भाई मान गये सेठ जी आपको सालों से गोदाम मे रखी उस पुरानी तस्वीर जिसे कल तक कोई दो सौ रूपए में भी खरीदने को तैय्यार नहीं था आपने अपनी मनगढ़ंत कहानी से उसे दस हजार रूपए में बेच दिया, वाह उस्ताद।
हा हा हा एक बहुत बड़े ठहाके के साथ नोट गिनते हुए श्यामलाल ने कहा- ये दुनिया है मेरे दोस्त यहां धर्म और भावनाओं से ज्यादा और कुछ नहीं बिकता।