बाल मजदूरी
बाल मजदूरी
आज प्राचार्य पद से अनूप जी की सेवानिवृत्ति का दिन था।
चूँकि वे बहुआयामी प्रतिभा एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी होने के साथ ही, गरीबों के मसीहा भी थे, अतः आज उनकी सेवानिवृत्ति पर पुराने सहकर्मी, निवर्तमान विद्यार्थी और ग्रामीणों से विद्यालय प्रांगण खचाखच भरा था।
बहुत ही आदर पूर्वक अनूप जी को मंचासीन किया गया और बारी-बारी से सभी ने अपने उद्गार प्रकट किए। अनूप जी भी हर्ष और विषाद के मिश्रित भाव से अतीत के गलियारों में खो गए, कि किस प्रकार पिता की असमय मृत्यु के बाद, माँ ने हमें मजदूरी करके पाला। कभी काम न मिलता तो फाँकों पर भी गुजरती थी।
थोड़ा समय बीता और मैं कुछ बड़ा हुआ। विद्यालय से लौटने के बाद और छुट्टी वाले दिन, मैं भी माँ के कामों में हाथ बँटाता, जिसके लिए मुझे अलग से कोई मजदूरी तो नहीं मिलती, पर हाँ, मेरे काम करने से माँ को अगले दिन काम मिलने में थोड़ी कम कठिनाई होती। थोड़ा और बड़ा हुआ, तो मुझे भी काम मिलने लगा, जिससे कॉपियों का खर्च निकल जाता था। पुस्तकें तो अपने सहपाठियों को गणित और अंग्रेजी फिर से समझाने के बदले मांग कर पढ़ता था मैं......
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मंच संचालक ने संबोधित किया "अब आदरणीय अनूप जी अपने जीवन के अनुभव हमसे साझा करेंगे, कि उनकी सफलता का राज क्या है।"
अनूप जी की तंद्रा टूटी, उनकी आंखों में अतीत के आंसू झिलमिला रहे थे। उन्होंने जीवन का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अंत में यह कहा- "यदि आप मेरे इस जीवन को सफल मान रहे हैं, तो इसका श्रेय, माँ की तपस्या, मेहनत और मेरी लगन के अतिरिक्त, उस समय बाल श्रम पर कड़ाई से प्रतिबंध का न होना है, यदि मैं बचपन में मजदूरी नहीं कर पाता, तो आज मजदूर ही होता।