औरत और फूल

औरत और फूल

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वह औरत जिसका सौंदर्य ग्रहण युक्त चाँद सा निष्प्रभ हो गया था, जो अपने शरीर के पोर-पोर से अपनी शोषित होने की कहानी कह रही थी, निढाल-सी उस सरकारी बाग के बेंच पर बैठ गई। उसने अपनी निचाट निसंग दृष्टि बाग में दौड़ाई, देखा चारों ओर नानावर्णी फूल आह्लादक हवा में झूम रहे थे। साथ ही एक पाषाण-पट्टिका पर लिखा था 'इन नयनाभिराम फूलों को देखो, निरेखो, सूँघो, सराहो, पर तोड़ो मत।'

जाने उस औरत को क्या सूझी उसने धरती पर गिरा एक कंकड़ उठाकर पाषाण-पट्टिका पर लिखे 'फूलों' को काटकर उसकी ज़गह 'औरतों' लिख दिया।


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