Neetu Tyagi

Drama

5.0  

Neetu Tyagi

Drama

और धुंध छंट गयी

और धुंध छंट गयी

4 mins
232


नूपुर खाना लंच बॉक्स में लगा ही रही थी कि तभी सोमेश के सीढ़ियां उतरने की ठप ठप आवाज आने लगी। नुपुर भागती हुई आई पर तब तक सोमेश जा चुका था। नूपुर हताश सी सोफे पर गिर गई। आज पूरे 5 दिन हो गए थे सोमेश को इस तरह बिना बताए, बिना खाए, पिए घर से निकलते हुए। नूपुर सोच में पड़ गई। आखिर सोमेश ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है? क्यों कुछ नहीं बताता? कौन सी बात उसे खाए जा रही है? यह तब से ही चल रहा है जब से वह और सोमेश भोपाल से लौटे हैं। भोपाल! नूपुर के मन में संदेह की लहरें उठने लगी। पूरे 8 साल बाद सोमेश माँ से मिलने का वक़्त निकाल सका। व्यापार के सिलसिले में सारी दुनिया का चक्कर काटने वाला सोमेश अपने गांव व ससुराल को तो जैसे भूल ही गया था। आज सोमेश से सब कुछ पूछ कर ही रहूँगी मन में निश्चय कर लिया। पर यह क्या आज भी सोमेश 11:00 बजे आया और "खाना खा कर आया हूँ " कहकर सोने चला गया। नूपुर खाना खाते वक्त सोचती रही, घटनाओं की कड़ियां जोड़ती रही, यादों के तार बुनती और उधेडती रही। सहसा वह चौंक उठी भोपाल में सोमेश जब घूमने के लिए बाजार की ओर निकल गया था तभी से उदास था और भाई के बार-बार रुकने को कहने पर भी अगले दिन ही हम दिल्ली आ गए थे। नुपुर से अब रुका नहीं गया और सोमेश को झकझोर ते हुए बोली,


“मुझे पता है तुम सोए नहीं हो। ऐसा क्या हो गया भोपाल में जो तुम ना चैन से जी रहे हो, ना जीने दे रहे हो”


सोमेश का चेहरा क्रोध से लाल हो गया, “और क्या क्या छुपाया है तुमने नूपुर” वह चीख पड़ा


"छुपाया है मैंने, कुछ भी तो नहीं” नूपुर थोड़ा सकपका गई वह यही बोल पाई "साफ-साफ कहो"


सोमेश बताने लगा जब मैं बाजार के लिए निकला तो मुझे एहसास हुआ कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। मैंने घूम कर देखा तो एक मुस्लिम युवक मेरे पीछे - पीछे आ रहा था उसने कहा "मेरा नाम हैदर है और मैं नूपुर का दोस्त हूँ। हम कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे कैसी है? वह कहां रहती है आजकल? उसने जैसे प्रश्नों की झड़ी ही लगा दी। वह मुझे घर आने को कहता रह गया और मैं वहां से चुपचाप चला आया "


सोमेश की आंखें गुस्से से ऐसी लाल हो रही थी जैसे जल पड़ेगी। हैदर के बारे में सुनते ही नूपुर मुस्कुरा उठी पर अगले ही पल आश्चर्य से उसका मुंह खुला रह गया बस यही निकल पाया “कहीं तुम हैदर और मेरे बारे में”


तभी सोमेश चिल्ला उठा “हां, हैदर और तुम, कितनी गहराई थी तुम्हारी दोस्ती में यह मैंने उसकी आंखों में प्रत्यक्ष देख लिया था”


नूपुर व्यंग से बोली “तो यह बात है। वह मुस्लिम है इस लिए खटक रहा है। तुमने कभी मानव के लिए तो कुछ नहीं कहा, वह भी तो मेरा पुरुष मित्र है। उससे तो तुम खूब हंस-हंसकर बातें करते हो”


यह सुनकर सोमेश थोड़ा शांत होकर बोला “तुम उन लोगों को नहीं जानती हो, यह लोग कभी हमारे दोस्त नहीं हो सकते। यह सुनकर नूपुर खामोश हो गई और थोड़ी देर में उसकी रुलाई फूट गई”


सोमेश उसे चुप कराते हुए बोला, स्वर में अभी भी नफरत गूंज रही थी "नूपुर सच सच बताओ मैं उस दिन से न चैन से जी पा रहा हूँ न सो पा रहा हूँ”


नूपुर ने बताना शुरू किया " बात उन दिनों की है जब मैं 13 साल की थी। हैदर का परिवार हमारे पड़ोस में रहने आया था तब ऐसा ही शक मेरे माँ बाबूजी ने भी किया था उन पर। तभी 1 दिसंबर 1984 को अचानक चारों तरफ जहरीली गैस फैल गई। सब लोग उल्टियां कर रहे थे, दम घुट रहा था, लोग सांस नहीं ले पा रहे थे। हम सब घर से निकल पड़े। चारों तरफ लोग भाग रहे थे तभी हैदर के पिता अपनी कार में अपने परिवार को बिठाकर पास से निकले। उन्होंने अनजान होते हुए भी हमारे लिए कार रोकी पर उनकी कार लोगों से भरी हुई थी और हम बच्चों की तरफ देखते हुए बाबू जी से कहा, "बच्चों को जल्दी कार में बिठाइए मैं जल्दी ही इन्हें सुरक्षित जगह छोड़ कर आता हूँ और बाबूजी ने हमें कार में धकेल दिया। हम दोनों माँ बाबू जी कहकर आवाज लगाते रहे तब अंकल ने कहा तुम दोनों घबराओ मत मैं अभी तुम्हारे मम्मी पापा को ले आऊंगा। उन्होंने हमें इटावा पहुंचाया और कार वापस लेकर माँ बाबूजी को लेने चले गए। माँ बाबूजी तो सुरक्षित वापस आ गए पर अंकल की तबीयत खराब हो गई और जहरीली गैस ने उन्हें हमसे छीन लिया। उस दिन से हमारी जिंदगी हैदर व उसके परिवार की कर्जदार हो गई" कहते हुए नूपुर खामोश हो गई।


सोमेश की आंखों में भी आंसू आ गए पर इस बार यह आँसू पश्चाताप के थे। थोड़ी देर में सोमेश बोल उठा “नूपुर सो जाओ, कल सुबह भोपाल जाना है। हैदर ने घर आने का न्योता जो दिया था” और धुंध छठ गई। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama