।। अस्तित्व ।।
।। अस्तित्व ।।


परिवार की आर्थिक विपन्नता और शराबी पति की परेशानियों से तंग आकर स्नेहा ने कई बार खुदकुशी करने का सोचा। पर बच्चों की ओर देखकर उन्होंने कभी ऐसा गलत कदम नहीं उठाया। पति को समझाने की लाख कोशिश की पर कुछ फायदा नहीं हुआ। आखिर स्नेहा ने अपनी एक सहेली की सहायता से बचत गट की महिलाओं के साथ काम करना शुरू किया। परिणामस्वरूप कई महिलाओं से उसका परिचय हुआ। शासकीय योजनाओं की जानकारी मिली। गृह उद्योग के लिए कर्ज लेकर दो महिलाओं की सहायता से उन्होंने अचार पापड़ और मसाले का गृह उद्योग शुरू किया। देखते-देखते आमदनी बढ़ती गई। नेहा के दिन बदलने लगे। पिछले कुछ साल उन्होंने बहुत परेशानियों में बिताए थे पर आज वह एक प्रतिष्ठित महिला के रूप में जानी जाती है। पति महाशय ने भी एक साल पहले शराब पीना छोड़ दिया और स्नेहा को इस गृह उद्योग में हाथ बंटाने लगा।
आत्मविश्वास और मेहनत के बल पर स्नेहा ने खुद का अस्तित्व निर्माण किया और आर्थिक दृष्टि से निर्भर होकर पास पड़ोस की महिलाओं के लिए आदर्श बन गई है। आपनी सफलता का मूलमंत्र बताते हुए वह कहती हैं - "परिस्थिति से भाग कर नहीं तो उससे दो हाथ कर आदमी जिंदगी में सफल होता है। खुद का अस्तित्व, खुद की पहचान निर्माण कर सकता है। मेहनत से आत्म निर्भरता और आत्मविश्वास से सफलता यही जीवन का मूलमंत्र और अस्तित्व की पहचान है।" सच में अपने अस्तित्व की लड़ाई, मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर जीतीं जाती है। इसमें जरा भी संदेह नहीं है।