अस्तित्व
अस्तित्व
और यह मेरी आखिरी गिट्टी और मेरी मीनार सबसे लम्बी", पत्थर और गिट्टी जोड़ जोड़ कर लंबी मीनार बनाने का खेल अपनी सहेलियों के साथ करने वाली झुमकी ताली बजाकर किलक रही थी।
एक बार फिर से वह इस गिट्टी वाले खेल में जीत गई थी।
"अरे झुमकी तू हर बार कैसे जीत जाती है बता" सहेली ममता के पूछने पर झुमकी अपनी गिट्टी के मीनार के पास खड़ी होकर इतरा कर अपनी जीत का जश्न मनाती उसे बताने वाली थी कि तभी पीछे से आई उसकी मां मालती झट से कमर से रखा उसका हाथ खींचती उसे वहां से ले जाने लगी और झुमकी की बनाई विजयी मीनार धराशाई हो गई थी।
"चल री झुमकी... काम पर आज फिर देर हो जाएगी नहीं तो"
बड़ी जतन से सजाई अपनी मीनार को यूं गिरते देख झुमकी बिलख गई मां से हाथ छुड़ाती बोली," नहीं जाती मैं.... तूने मेरी मीनार गिरा दी"
"ओह अब इसे मनाना पड़ेगा", बड़बड़ाती हुई मालती उससे पुचकारते हुए बोली," चल रही मेरी लाडो.... तुझे तो पता है मिश्राइन के यहां आज कथा है.... अगर बखत से ना पहुंचे तो पचास बातें सुनने को मिल जाएंगी.... जितनी देर में मैं बर्तन निपटाऊंगी उतनी देर में तू आंगन की धुलाई कर देना"
"अम्मा मैं नहीं जाती आज... मेरे हाथ दुख रहे हैं.... कल तो तुमने नीला की छत की झाड़ू लगवाई थी मुझसे.... पूरी रात कमर और हाथ दुखी है मेरे"
" चल रही चल ...अभी इतनी देर से खेल रही थी तो तेरे हाथ पैर ना दुख रहे थे", स्वयं भी बेहद थकी मालती को अब झुमकी पर गुस्सा आ रहा था वह उसका कान खींचती उसे वहां से ले जाने लगी।
अब मालती तेजी से डग भर रही थी और पीछे साथ आती झुमकी को बुझे मन से सिर झुकाए धीरे धीरे चलते देखकर परेशान हो रही थी.... वह भी क्या करें.... काम ही इतने सारे थे उसके पास..... बिना झुमकी की मदद के पूरे होने मुश्किल हो जाते थे।
मालती अपनी ग्यारह वर्षीय पुत्री झुमकी के साथ अपनी बस्ती के साथ लगी सोसाइटी में झाड़ू पोछा बर्तन करने जाती थी.... उच्च मध्यमवर्गीय परिवारों के यहां काम करने से उसे अच्छी पगार मिल जाती थी.... ज्यादा पैसे के लालच में उसने ज्यादा काम पकड़ लिए थे जब उसे अकेले काम करने में दिक्कतें आने लगी तो उसने अपनी पुत्री झुमकी को उसकी बहुत छोटी अवस्था से ही अपने साथ काम पर ले जाना शुरू कर दिया था।
साथ चलती झुमकी को मालती नजर भर कर देख रही थी... उसके दूध से धुले हाथ पैर काम की अधिकता से मैले हो चले थे.... सोसाइटी थोड़ी दूर थी ...पैदल तेज चलने पर झुमकी का विरासत में उससे पाया श्वेत वर्णी चेहरा तप कर लाल हो गया था... हमेशा खिलखिलाती अपनी पुत्री का यू सुस्त चेहरा उसे अच्छा नहीं लग रहा था.... उसे मनाने हेतु उसने उसके पास जाकर उसकी गुदगुदी कर दी.... अब झुमकी खिलखिला रही थी और प्रसन्नता से उसके साथ चल रही थी... अपनी चंचल पुत्री को यूं खिलखिलाते देख मालती की आंखों में आंसू आ गए थे।
उसे आज भी याद है जब वह कमल के साथ ब्याह कर बस्ती में आई थी तो उसके सुंदर रूप का देख कर उसकी सास बलैया लेते नहीं थकती थी.... बस्ती में उसकी मुंह दिखाई की रस्म जो चली तो उसके अप्रतिम रूप सौंदर्य के चलते हफ्ते तक चली।
शुरू में तो कमल उसके रूप सुंदर पर रीझकर उसके आगे पीछे घूमता रहता था पर धीरे-धीरे कमल की सच्चाई उसके सामने आ गई थी.... शराब का बेहद लती कमल नशे और जुए का भी आदी था।
जब तक मालती के ससुर जिंदा रहे उसे कभी रोटी पानी की चिंता नहीं हुई.... लेकिन ससुर के गुजरते ही उनका जमा करा हुआ सारा धन कमल ने नशे और जुए के चलते बर्बाद करने में समय नहीं लिया... उसकी सास भी जल्दी उसका साथ छोड़ गईं।
नशे में धुत्त कमल अपनी कोई भी इच्छा पूरी ना होने पर जो उस पर हाथ छोड़ता तो तब तक पीटता जब तक वह स्वयं ना थक जाता.... इसी के चलते वह तीन बार मातृत्व सुख से वंचित रही.... गर्भावस्था की स्थिति में कमल की बेतहाशा पिटाई से उसके तीनों अजन्मे जाते रहे और जब चौथी बार वह गर्भवती हुई तो उसकी मां उसे अपने साथ गांव ले गई जिसके कारण वह झुमकी का मुंह देख पाई।
दूध की तरह सफेद झुमकी जब हंसती थी तो मानो घंटियां बजतीं थीं... जब वह झुमकी को लेकर वापस लौटी तो झुमकी का सलोना चेहरा देखकर कुछ दिनों तो कमल शांत रहा फिर अपनी आदत से मजबूर से अपनी पुरानी स्थिति पर लौट आया था।
शराब की लत के चलते उसका शरीर जर्जर होता जा रहा था... ऐसी स्थिति में उसके लगे लगाए सब काम छूटते गये.... उसकी आदतों को देखकर अब उसे कोई भी काम पर रखने को तैयार नहीं होता था... रोटी पानी को मोहताज हो चली थी मालती .... वह कैसे अपना और नन्ही जान का पेट भरे उसे बहुत चिंता रहती थी ।
ऐसे में जब पड़ोस की विमला ने आ कर मालती को बराबर की सोसाइटी में काम करने की सलाह दी तो उसने डरते डरते कमल से इस विषय में पूछा.... नाकारा कमल तो कहां मना करने वाला था.... उसे तो स्वयं पैसे चाहिए थे अपनी नशे और जुए के लिए ऐसी में मालती के काम करने से उसका भला ही होने वाला था।
झुमकी चार वर्ष की होने जा रही थी उसे पड़ोस में खेलता छोड़कर मालती काम पर जाने लगी... पहाड़ तोड़ मेहनत के बाद जितना भी कमा कर लाती उसे कमल छीन लेता था वह बड़ी मुश्किल से कुछ पैसे अपने पास बचा पाती थी।
सोसाइटी में अच्छे काम देखकर धीरे-धीरे उसने अपने साथ झुमकी को भी ले जाना शुरू कर दिया था.... अब ज्यादा काम मिलने से उसे ज्यादा पैसा कमाने का अवसर मिलने लगा था और कमल के छीनने के बाद भी उसके पास अब अच्छी खासी रकम बच जाती थी... इसी लालच में उसे झुमकी के साथ ज्यादा से ज्यादा काम पकड़ने का चस्का लग गया था।
पैसे कमाने के जुनून में वे यह भी अनदेखा कर देती थी कि झुमकी के साथ सोसाइटी में दुर्व्यवहार होता था.... कभी सही से पूछना लगाने पर उसे किसी घर में डांट दिया जाता और कभी किसी घर में कोई क्रोकरी टूट जाने पर झुमकी की पिटाई भी लग जाती थी.... कभी किसी घर में कोई चीज गायब देखकर उसका इल्जाम झुमकी पर लगाया जाता.... तो कभी किसी घर में बच्चों के साथ खेलने पर झुमकी को डांट दिया जाता कि ,"क्यों वह हमारे बच्चों में घुसी जाती है"
सब तरफ से उपेक्षित झुमकी को रोता देखकर मालती दो बूंद आंसू बहा कर चुप हो जाती थी और फिर वापस अपनी दिनचर्या में लग जाती थी।
बस्ती में आंगनवाड़ी की कुछ कार्यकर्ता भी रहती थी उसमें एक महिला रश्मि को झुमकी बहुत प्यारी लगती थी... वह शाम को अक्सर बस्ती में वापस लौटते समय झुमकी को टॉफी चॉकलेट ले आती थी.... वह जब सुबह काम पर रोती जाती झुमकी को देखती थी तो उसका दिल भर आता था वह अक्सर मालती से कहती कि वह उसे काम पर ना ले जाया करें और उसे पढ़ने के लिए स्कूल भेजें।
पैसे कमाने में लगी मालती को कहा उसकी बातें भाती थी वह उससे कह दिया करती," मैडम जी आप मेरी बातों में ना पड़ा करें.... पैसे नहीं कमाएंगे तो हम मां बेटी खाएंगे क्या.... और आदमी को पैसे नहीं दूंगी तो वह मेरी पिटाई करेगा"
" तो तुम उससे पिटती क्यों हो... उसका विरोध क्यों नहीं करती?", मालती को समझाती हुई रश्मि कहती।
"अरे मरद को क्या समझाना... मैं तो उसी के घर में रह रही हूं... और ज्यादा काम तो हम औरतों के नसीबों में लिखा ही है अभी से करना सीख जाएगी तो ब्याह के बाद पराए घर जाकर इसे दिक्कत नहीं आएगी"
रश्मि समझ जाती कि मालती आसानी से नहीं समझ पाएगी पर उसे झुमकी की हालत देख कर बहुत तरस आता था लेकिन स्वयं को विवश पाकर वह मन मसोस कर रह जाती थी।
आज भी कुछ ऐसा ही दिन था जब ज्यादा काम था.... मिश्रा इन के यहां कथा थी.... मेहमान जुटे होने से बर्तनों का अंबार लगा था.... मालती को पूरे दो घंटे लगे उन्हें निपटाने में।
जब तक मालती ने बर्तन धोए तब तक झुमकी आंगन की धुलाई करती रही... थोड़ी देर में मालती ने देखा झुमकी उसे आसपास कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया कि शायद वह किसी कमरे में काम कर रही होगी लेकिन जब उसे झुमकी की कोई आवाज भी नहीं आई तो वह बर्तन छोड़ कर बराबर के कमरों में झांकने चली गई.... सारे कमरे मेहमानों से भरे थे.... झुमकी उसे कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
थोड़ी देर में उसे एक कमरे से झुमकी की घुटी घुटी आवाज आने लगी...उसने बन्द कमरा जैसे ही खोला उसका कलेजा मुंह को आ गया .... मिश्राइन के बेटे ने झुमकी को बेड पर पटक रखा था... और वह रोती झुमकी की फ्रॉक उतारने की कोशिश कर रहा था।
मालती ने क्रोध में कंपकपाते हुए मिश्राइन के बेटे को धक्का दे झुमकी को अपने सीने से लगा लिया था।
अब मिश्रा का बेटा बाहर मेहमानों में शोर मचा रहा था कि झुमकी ने उसके मोबाइल चुरा लिया था और वह उसकी तलाशी ले रहा था।
जब अपनी बेटी की बातों को सुनकर मिश्राइन ने मालती की पगार काटने हेतु उसको आड़े हाथों लिया तो मालती का सोया विवेक मानो जाग उठा वह शेरनी की तरह चिंघारती बोली," अरे कैसी औरत है तू.... एक औरत होकर एक आदमी की करतूत नहीं समझ पा रही.... खैर मना मैं तेरी रपट नहीं लिखा रही हूं... पगार तू चाट अपनी... मैं आज से तेरा काम छोड़ रही हूं"
मालती झुमकी को चिपकाए वापस बस्ती लौट रही थी.... वह घर में आकर घंटों रोती रही.... नन्ही मासूम झुमकी आज जल्दी घर आने की खुशी में अपनी सहेलियों के साथ बाहर खेलने चली गई थी....बाहर झुमकी को खेलता देखकर मालती का मन भर आया था।
थोड़ी देर में कमल ने आकर जब मालती से पैसे मांगे और मालती ने पैसे देने की असमर्थता जताई तो उसने डंडा उठाकर मालती को पीटना शुरू कर दिया.... अब मालती ने उसके हाथ से डंडा छीन कर कमल में ही दो डंडे जमा दिए थे।
कमल की पिटाई कर मालती गुस्से में हांफ रही थी।
जर्जर हो चुका कमल दो डंडों के प्रहार से ही जमीन पर लोट गया था... वह मालती का काली रूप देखकर बुरी तरह से डरकर घर से भाग गया था... देर रात जब घर लौटा तो चुपचाप रोटी खा कर सो गया।
मालती ने अपने साथ काम पर झुमकी को ना ले जाने का फैसला कर लिया था और अपने काम कम करके अपनी कमायी सारी पगार घर की जरूरत के लिए बचाने की सोच ली थी।
अगले दिन मालती रश्मि के साथ झुमकी का स्कूल में दाखिला कराने जा रही थी.... आज स्वतंत्रता दिवस था... स्कूल के गेट पर ही बच्चों को राष्ट्रीय ध्वज पकड़ाए जा रहे थे।
ध्वज पकड़े झुमकी का दमकता चेहरा उसकी खुशियों की गवाही दे रहा था.... उसे अपना बचपन जीने की आजादी जो मिल गई थी उधर मालती का मन भी संतोष से भरा हुआ था उसने अपने अस्तित्व को पहचान कमल के आतंक से आजादी जो पा ली थी।